मित्रों,हमें नहीं चाहिए युधिष्ठिर जैसा यथास्थितिवादी और समझौतावादी.हमें तो भीम और अर्जुन जैसे उष्म रक्तपायी चाहिए.दोस्तों,बगावत जवानी का दूसरा नाम है.जब ८० साल की अवस्था में बाबू कुंवर सिंह का खून देश की दुर्दशा को देखकर खौल सकता है,७३ साल की आयु में अन्ना हजारे युद्ध का ऐलान कर सकते हैं तो हम तो नौजवान हैं.फिर हमारा खून देश की दशा को देखकर क्यों नहीं उबाल खा रहा?
मित्रों,गुलामी सिर्फ भौतिक अवस्था का नाम नहीं है बल्कि उससे कहीं ज्यादा यह एक मानसिक दशा है.भौतिक रूप से हम भले ही १५ अगस्त,१९४७ को आजाद हो गए हों मानसिक रूप से हम आज भी गुलाम हैं,लालच के,स्वार्थ के और कायरता के.इस गुलामी से बाहर आना असंभव नहीं है क्योंकि यह ओढ़ी हुई गुलामी है.परन्तु इसके लिए हमें अपने भीतर भगत और आजाद जैसा देशभक्ति का उन्माद पैदा करना होगा.
मित्रों,अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के सर्वनाश के लिए युद्ध का शंखनाद कर दिया है.जब अन्ना की बूढी-सूखी धमनियां भारतमाता के लिए रक्त बहाने को कसमसा रही हैं तो क्या हम उनसे भी ज्यादा बूढ़े हैं?हम जिस दमघोंटू भ्रष्टतंत्र में जी रहे हैं उसे अगर जड़मूल से समाप्त करना है तो आईये हाथ से हाथ मिलाएं.कल्पना कीजिए अगर एकसाथ करोड़ों युवा हाथ धक्का देंगे तो कौन-सी दीवार नहीं ढहेगी?कहना न होगा इन्हीं युवा हाथों ने तो कभी दुनियाभर में फैले अतिशक्तिशाली अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिलाकर रख दी थी.मित्रों,अगर आपको शोषण की जगह शासन चाहिए,भ्रष्टपालिका की जगह न्यायपालिका चाहिए तो उतर आईये सडकों पर,गलियों में और रोक दीजिए भ्रष्टसत्ता और व्यवस्था के फेफड़ों की और जानेवाली हवा और खून का रास्ता.मैं जानता हूँ और मानता हूँ कि चूंकि इस बार लड़ाई अपनों से है इसलिए आसान नहीं है.लेकिन मैं आपसे यह वादा करता हूँ कि हे भारत के युवाओं,तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें भ्रष्टाचार मुक्त भारत दूंगा.इस समय मेरे पास भी आपको और देश को देने के लिए सिवाय खून और पसीने के कुछ भी नहीं है.
mai aap ke satha hu
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