शनिवार, 20 अगस्त 2011

अन्ना+मीडिया+जनता=क्रांति?


मित्रों,भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही हमारी जंग अब बेहद रोमांचक और संवेदनशील मोड़ पर पहुँच गयी है.शुरू में सख्ती दिखाने के बाद अब तक की सबसे भ्रष्ट केंद्र सरकार फिर से हमले की मुद्रा में है.उसके सारे दांव उल्टे पड़ते दिख रहे हैं और उसे थूककर चाटने जैसा काम करना पड़ा है फिर भी उसकी थेथरई नहीं गयी है.अन्ना रामलीला मैदान में ससम्मान पहुंचा दिए गए हैं जबकि दो दिन पहले तक कांग्रेस के मंत्री उन्हें पागल और भ्रष्ट बता रहे थे.लेकिन अब भी शायद उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि न तो संविधान सबसे ऊपर है और न ही संसद;बल्कि सबसे ऊपर अगर कोई है तो वह है जनता जो जब चाहे देश के हरेक चौक को तहरीर चौक बना दे.उसकी ताकत के आगे होश्नी मुबारक की तोप फायर होना भूल जाती है तो अल असद के विमान उड़ान भरने से मना कर देते हैं;देर बस उनके जागने की होती है.
                                                मित्रों,ये क्षण हमारे लिए बड़े ही हर्ष और गौरव के क्षण हैं क्योंकि यही वे क्षण हैं जब हमारे देश की आम जनता जागती हुई दिख रही है.हालाँकि ये क्षण ३७ साल के बेहद लम्बे ईन्तजार के बाद आए हैं.दोनों जागरण में बड़ा मौलिक फर्क है.तब आन्दोलन छिड़ा था देश की सत्ता बदलने के लिए और वर्तमान भारत चाहता है व्यवस्था को बदलना.सत्ता में कौन रहता है और कौन आता-जाता है से कोई सरोकार नहीं;बस व्यवस्था बदलनी चाहिए और सुधरनी चाहिए.कहते हैं कि जब अँधेरा गहराने लगे तब यह समझना चाहिए कि सबेरा अब दूर नहीं.
 .              मित्रों,भारत के आसमान पर इस समय महाघोटालों के काले व डरावने बादल छाए हुए हैं.भारतीय लोकतंत्र का कारवां इस समय भ्रष्टाचार की एक लम्बी अँधेरी गुफा में आकर फंस गया है और इससे बाहर निकालने की जिम्मेदारी हम जनता पर है.हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि हमारा मुकाबला लोमड़ियों से है और वे (कोंग्रेस और उसके मंत्री) हमारा मनोबल तोड़ने के लिए,हमारे उत्साह को कम करने के लिए और हमारे बीच फूट डालने के लिए रोज-रोज नए-नए पैतरे चलने वाले हैं.हमारे अरमानों को पूरा करनेवाले जनलोकपाल विधेयक को चालू सत्र में लाने से  बचने के लिए उन्होंने चालें चलनी शुरू भी कर दी हैं.आगे सबकुछ हमारे ऊपर निर्भर करता है,हमारी संघर्ष-क्षमता पर निर्भर करता है.हमें इस कांग्रेस पार्टी के इन शातिर लोगों पर लगातार दबाव बनाए रखना होगा और इस तरह से बनाए रखना होगा कि वह उत्तरोत्तर बढ़ता ही चला जाए.इसके लिए चाहे जेल भरना पड़े या कुछ भी और करना पड़े तो हमें करने के लिए तैयार रहना पड़ेगा.मैं समझता हूँ कि ऐसा गांधीवादी-मार्ग से ही संभव है और कोई मार्ग नहीं है.
                       मित्रों,जब कोई त्यागी महात्मा,मीडिया और जनता किसी अच्छे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एकजुट होकर प्रयास करते हैं तो मेरी केमिस्ट्री तो यही कहती है कि क्रांति होती है लेकिन ऐसा तभी होता है जब उत्प्रेरक के रूप में अदम्य उत्साह भी मौजूद हो.अब हमें देखना है कि सामने वाले की,सैय्याद की बाजुओं में कितना दम है;हमें अपनी ताकत का बखूबी अंदाजा है इसलिए तो हम उनसे कह रहे है कि-
खींच कर लाई है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का जमघट आज कूंचा-ए-कातिल में है ।
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें