मित्रों,कई साल पहले मेरा एक दूर का मित्र हुआ करता था,नाम मुझे याद है लेकिन अपना पत्रकारिता धर्म निभाते हुए मैं बताऊँगा नहीं.दूर का मित्र इसलिए क्योंकि वह मेरे अभिन्न मित्र प्रभात रंजन जो इस समय पटना,प्रभात खबर में संवाददाता हैं;का मित्र था.वह मेरा दूर का मित्र उन दिनों असम के एक सांसद का पी.ए. हुआ करता था.आदमी तेज-तर्रार था,ज़माने के बदलते मिजाज़ के अनुसार आसानी से खुद को ढाल लेनेवाला.वह बताता था कि दिल्ली में एक सेक्स रैकेट सांसदों के आस-पास खूब सक्रिय रहा करता है.सांसद महोदय जब दिल्ली के लिए रवाना होते हैं तभी गरम गोश्त के दलालों को खबर कर देते हैं.एक-एक रात के लिए पचास हजार से लेकर लाखों रूपये तक की फीस अदा की जाती है.ज्यादातर लड़कियां दिल्ली और आसपास के कॉलेजों में पढनेवाली हाई-फाई ग्रेड की होती हैं,जींस-पैंट वाली.उसका मानना था कि चूंकि साड़ी और सलवार-सूट वाली तो सांसदों को अपने गृह-प्रदेशों में भी मिल जाती हैं इसलिए वे अपने दिल्ली प्रवास के दौरान अपनी रातों को अक्सर जींस-पैंट वालियों के साथ रंगीन किया करते हैं.बाद में कई सांसदों की सेक्स सी.डी. मीडिया में आई जिसमें हमारे बिहार के भी कई सांसदों का अहम् योगदान रहा.फिर भी मैं आज भी तब से लेकर अब तक गंगा में बहुत सारा पानी बह जाने के बावजूद यह नहीं मानता हूँ कि नेताओं-अफसरों या न्यायाधीशों में से हर कोई शौक़ीन मिजाज़ का होता हैं.फिर भी इतना तो निश्चित है कि अगर पूरी-की-पूरी दाल काली नहीं है तो कम-से-कम दाल में कुछ-न-कुछ काला तो जरूर है.
मित्रों,हमारे नीति-नियंताओं पर मेरा यह आरोप या संदेह महज आरोप या संदेह भर नहीं है.प्रमाण के रूप में बीच-बीच में इस तरह के मामले समय-समय पर सामने आते रहे हैं.अब भंवरी हत्याकांड को ही लें जो इन दिनों हमारे समाचार माध्यमों पर छाया हुआ है.मुझे जहाँ तक लगता है कि भंवरी जो एक ७-८ हजार रूपये की मामूली वेतन पाने वाली नर्स थी,एक अतिमहत्वकांक्षी महिला थी.उसके सेक्सुअल सम्बन्ध राज्य के बड़े-बड़े नेताओं और अफसरों से थे.उसे इससे कितना आर्थिक लाभ हुआ जाँच का विषय हो सकता है लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं कि आधुनिक समाज में जब पैसा ही सबकुछ बनता जा रहा है तब कुछ महिलाएँ अपनी महत्वाकांक्षाओं को जल्दीबाजी में पूरा करने के लिए अपनी कमनीय नारी देह का सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल करती हैं.मैं नहीं मानता कि उनका ऐसा करना किसी भी तरह से महिला-सशक्तिकरण को आगे बढ़ाता है.
मित्रों,मैंने कई बार कई चैनलों,अख़बारों और डॉट कॉमों में देखा है कि कुछ लड़कियां अपने सौंदर्य द्वारा बॉस को खुश करके लड़कों के मुकाबले ज्यादा प्रोन्नति प्राप्त कर लेती हैं.कई बार बॉस खुद भी अपनी मातहत नारी देह को भोगने का उतावलापन दिखता है.इस सम्बन्ध में मुझे बिहार के एक बहुत बड़े स्वतंत्र पत्रकार द्वारा सुनाया गया एक वाकया याद आ रहा हैं.एक समय हम प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में अक्सर उनके साथ शाम की चाय पिया करते थे.उनका नाम था या है-चलिए उनके नाम को भी रहने देते हैं शायद उन्हें मेरा ऐसा करना पसंद न आए.तो जैसा कि उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी पहचान की एक लड़की को एक समाचार चैनल में रखवा दिया.नियोक्ता कभी उनका शिष्य हुआ करता था.कुछ दिन तक तो लड़की ठीक-ठाक तरीके से बिना किसी परेशानी के काम करती रही.फिर उसके नियोक्ता ने जो उसका बॉस भी था;शिमला-यात्रा की योजना बनाई और लाभुक लड़की को भी साथ चलने को कहा.उसे बताया गया कि इस दौरान उसे अपने बॉस के साथ अकेले रहना पड़ेगा और अकेले ही होटल में कमरा साझा भी करना पड़ेगा.कुल मिलाकर आप समझ गए होंगे कि उसका बॉस किए गए उपकार के बदले उससे उसका शरीर मांग रहा था.लड़की समय की मारी थी मगर खुद्दार थी इसलिए उसने वरिष्ठ पत्रकार जी को सारे घटनाक्रम से अवगत करवाया.तब उन्होंने अपने पूर्व शिष्य को पहले तो उसके टुच्चेपन के लिए जमकर फटकार लगी और फिर लड़की से नौकरी छोड़ देने को कहा.परन्तु कई बार कदाचित ऐसा भी होता है जब लड़कियां जल्दी में सफलता के शिखर पर पहुँचने के लिए खुद ही बॉस को ऑफर करने लगती हैं;शायद कुछ इस अंदाज में-सर आपका डेरा किधर है?आपने कभी अपना घर हमें नहीं दिखाया?कभी हमें भी ले चलिए न सर इत्यादि.
मित्रों,गलत दोनों तरह के लोग हैं.यौन-शोषण के लिए लगातार प्रयास करनेवाले नेता-अफसर या बॉस भी और खुद को खुद ही ख़ुशी-ख़ुशी अल्कालिक या दीर्घकालिक लाभ के लिए नरपशुओं को सौंप देनेवाली लड़कियां भी क्योंकि ऐसा करने वाली लड़कियों का वही अंत होता है जो भंवरी का हुआ और नेताओं-अफसरों का अंत वैसा ही होता है जैसा महिपाल मदेरणा का हुआ.मुझे तो यह समझ में नहीं आ रहा है कि किसी का मन अपनी पत्नी या पति को छोड़कर दूसरों के साथ भरता भी कैसे है?छिः,मुझे तो सोंचकर ही घिन्न आती है.ऐसा करना अपने जीवन-साथी के साथ सरासर धोखा है.भगवान ने हमारे यौनांगों को इसलिए नहीं बनाया है कि हम जिस-तिस के साथ चंद पैसों के लिए या किसी भी अन्य कारण से सेक्स करते फिरें.ये अंग हमें आगे आनेवाली दुनिया के लिए नेक और शरीफ संतान प्रदान करने के लिए प्रदान किए गए हैं.इसलिए मेरी जवान होती,जवान हो चुकी और बुढ़ा रही पीढ़ियों से विनम्र अनुरोध है कि आप सभी अपने जीवन-साथी के प्रति यौन-संबंधों सहित सभी क्षेत्रों में पूरी तरह से वफादार बनिए.सफलता भी प्राप्त करिए लेकिन अपनी सुन्दर काया के बल पर नहीं बल्कि अपनी योग्यता के बल पर.फिर वह सफलता आपको स्थायी सुख तो देगी ही आपके लिए गर्व का विषय भी होगी.हो सकता है कि आपकी काली करतूतें घरवालों या ज़माने की नज़रों से बची रह जाएँ लेकिन यह मत भूलिए कि आपके बच्चों में उनके ४६ गुणसूत्रों में से २३ आपके हिस्से से जाएँगे और मैं समझता हूँ कि आप चाहे जैसे भी हों आप ऐसा कभी नहीं चाहेंगे कि आपमें से आपके ख़राब गुण आपके बच्चों में जाए और वो भी वही सब करें जो आप इन दिनों कर रहे हैं.वैसे पाप छिपता नहीं है कभी-न-कभी बेपर्दा हो ही जाता है.इस सम्बन्ध में रहीम कवि क्या खूब कह गए हैं-खैर खून खांसी ख़ुशी वैर प्रीति मद्यपान;रहिमन दाबे न दबे जानत सकल जहान.
मित्रों,हमारे नीति-नियंताओं पर मेरा यह आरोप या संदेह महज आरोप या संदेह भर नहीं है.प्रमाण के रूप में बीच-बीच में इस तरह के मामले समय-समय पर सामने आते रहे हैं.अब भंवरी हत्याकांड को ही लें जो इन दिनों हमारे समाचार माध्यमों पर छाया हुआ है.मुझे जहाँ तक लगता है कि भंवरी जो एक ७-८ हजार रूपये की मामूली वेतन पाने वाली नर्स थी,एक अतिमहत्वकांक्षी महिला थी.उसके सेक्सुअल सम्बन्ध राज्य के बड़े-बड़े नेताओं और अफसरों से थे.उसे इससे कितना आर्थिक लाभ हुआ जाँच का विषय हो सकता है लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं कि आधुनिक समाज में जब पैसा ही सबकुछ बनता जा रहा है तब कुछ महिलाएँ अपनी महत्वाकांक्षाओं को जल्दीबाजी में पूरा करने के लिए अपनी कमनीय नारी देह का सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल करती हैं.मैं नहीं मानता कि उनका ऐसा करना किसी भी तरह से महिला-सशक्तिकरण को आगे बढ़ाता है.
मित्रों,मैंने कई बार कई चैनलों,अख़बारों और डॉट कॉमों में देखा है कि कुछ लड़कियां अपने सौंदर्य द्वारा बॉस को खुश करके लड़कों के मुकाबले ज्यादा प्रोन्नति प्राप्त कर लेती हैं.कई बार बॉस खुद भी अपनी मातहत नारी देह को भोगने का उतावलापन दिखता है.इस सम्बन्ध में मुझे बिहार के एक बहुत बड़े स्वतंत्र पत्रकार द्वारा सुनाया गया एक वाकया याद आ रहा हैं.एक समय हम प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में अक्सर उनके साथ शाम की चाय पिया करते थे.उनका नाम था या है-चलिए उनके नाम को भी रहने देते हैं शायद उन्हें मेरा ऐसा करना पसंद न आए.तो जैसा कि उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी पहचान की एक लड़की को एक समाचार चैनल में रखवा दिया.नियोक्ता कभी उनका शिष्य हुआ करता था.कुछ दिन तक तो लड़की ठीक-ठाक तरीके से बिना किसी परेशानी के काम करती रही.फिर उसके नियोक्ता ने जो उसका बॉस भी था;शिमला-यात्रा की योजना बनाई और लाभुक लड़की को भी साथ चलने को कहा.उसे बताया गया कि इस दौरान उसे अपने बॉस के साथ अकेले रहना पड़ेगा और अकेले ही होटल में कमरा साझा भी करना पड़ेगा.कुल मिलाकर आप समझ गए होंगे कि उसका बॉस किए गए उपकार के बदले उससे उसका शरीर मांग रहा था.लड़की समय की मारी थी मगर खुद्दार थी इसलिए उसने वरिष्ठ पत्रकार जी को सारे घटनाक्रम से अवगत करवाया.तब उन्होंने अपने पूर्व शिष्य को पहले तो उसके टुच्चेपन के लिए जमकर फटकार लगी और फिर लड़की से नौकरी छोड़ देने को कहा.परन्तु कई बार कदाचित ऐसा भी होता है जब लड़कियां जल्दी में सफलता के शिखर पर पहुँचने के लिए खुद ही बॉस को ऑफर करने लगती हैं;शायद कुछ इस अंदाज में-सर आपका डेरा किधर है?आपने कभी अपना घर हमें नहीं दिखाया?कभी हमें भी ले चलिए न सर इत्यादि.
मित्रों,गलत दोनों तरह के लोग हैं.यौन-शोषण के लिए लगातार प्रयास करनेवाले नेता-अफसर या बॉस भी और खुद को खुद ही ख़ुशी-ख़ुशी अल्कालिक या दीर्घकालिक लाभ के लिए नरपशुओं को सौंप देनेवाली लड़कियां भी क्योंकि ऐसा करने वाली लड़कियों का वही अंत होता है जो भंवरी का हुआ और नेताओं-अफसरों का अंत वैसा ही होता है जैसा महिपाल मदेरणा का हुआ.मुझे तो यह समझ में नहीं आ रहा है कि किसी का मन अपनी पत्नी या पति को छोड़कर दूसरों के साथ भरता भी कैसे है?छिः,मुझे तो सोंचकर ही घिन्न आती है.ऐसा करना अपने जीवन-साथी के साथ सरासर धोखा है.भगवान ने हमारे यौनांगों को इसलिए नहीं बनाया है कि हम जिस-तिस के साथ चंद पैसों के लिए या किसी भी अन्य कारण से सेक्स करते फिरें.ये अंग हमें आगे आनेवाली दुनिया के लिए नेक और शरीफ संतान प्रदान करने के लिए प्रदान किए गए हैं.इसलिए मेरी जवान होती,जवान हो चुकी और बुढ़ा रही पीढ़ियों से विनम्र अनुरोध है कि आप सभी अपने जीवन-साथी के प्रति यौन-संबंधों सहित सभी क्षेत्रों में पूरी तरह से वफादार बनिए.सफलता भी प्राप्त करिए लेकिन अपनी सुन्दर काया के बल पर नहीं बल्कि अपनी योग्यता के बल पर.फिर वह सफलता आपको स्थायी सुख तो देगी ही आपके लिए गर्व का विषय भी होगी.हो सकता है कि आपकी काली करतूतें घरवालों या ज़माने की नज़रों से बची रह जाएँ लेकिन यह मत भूलिए कि आपके बच्चों में उनके ४६ गुणसूत्रों में से २३ आपके हिस्से से जाएँगे और मैं समझता हूँ कि आप चाहे जैसे भी हों आप ऐसा कभी नहीं चाहेंगे कि आपमें से आपके ख़राब गुण आपके बच्चों में जाए और वो भी वही सब करें जो आप इन दिनों कर रहे हैं.वैसे पाप छिपता नहीं है कभी-न-कभी बेपर्दा हो ही जाता है.इस सम्बन्ध में रहीम कवि क्या खूब कह गए हैं-खैर खून खांसी ख़ुशी वैर प्रीति मद्यपान;रहिमन दाबे न दबे जानत सकल जहान.
इस तरह के भंवर से आज कोई भी क्षेत्र नहीं बचा| हर जगह ऐसा ही बुरा हाल है|
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
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