मित्रों,आपने भी किताबों में पढ़ा होगा कि होली उल्लास और सद्भाव का या फिर असत पर सत की विजय का पर्व है परन्तु आपने यह भी पाया होगा कि किताबों में लिखी बातें अक्सर सच्चाई के धरातल पर गलत निकलती हैं.यह बड़ा ही दुखद है कि आज उल्लास और सद्भाव का त्योहार होली पियक्कड़ई का पर्याय बनकर रह गयी है.अक्सर हमारे किशोर और युवा होली के नाम पर इस दिन इस नामाकुल शराब को मुँह से लगा लेते हैं और फिर यह इस तरह उनके गले पड़ जाती है कि पूरा जीवन कब नशे में बीत जाता है पता ही नहीं चलता.होली में पहले भी नशा किया जाता था लेकिन पहले नशेड़ियों की संख्या काफी कम थी और नशे के नाम पर लोग इस दिन सिर्फ भांग पीते थे.नुकसानदेह तो भांग भी था लेकिन सिर्फ पीनेवाले की सेहत के लिए परन्तु शराब तो पूरे समाज के लिए ही हानिकारक होता है.लोग भांग खाते और फिर चुपचाप घर जाकर सो जाते थे.भांग मुफ्त में उपलब्ध होता था जबकि शराब के लिए पैसे खर्च करने पड़ते हैं, किसी को अपनी बीवी के जेवर बेचने पड़ते हैं तो कोई इसके लिए अपने घर-बार तक को बेच डालता है.
मित्रों,दरअसल होली के नाम पर पहली बार शराब पीने वाला पहली बार तो पीता है लेकिन आखिरी बार नहीं.फिर तो वो नशे में क्या-क्या कर डालता है उसे खुद भी इसकी खबर नहीं होती.कई साल हुए तब मैं कटिहार रहा करता था जहाँ मेरी केले की खेती होती थी.मेरे दलान के पास का ही एक मुसहर रोजाना महुआ की घर में बनी शराब पीता और मेरे दलान के पास से जब भी गुजरता मुझे गालियाँ देता हुआ गुजरता.फिर अपने घर में जाकर मार-पीट करता.दो-चार दिनों के बाद जब मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो एक दिन सुबह-सुबह मैं उसके घर पर जा पहुंचा और बुलाकर पूछा कि तुम चाहते क्या हो?क्या अपने हाथ-पैर तुडवाना चाहते हो तो वो बोला कि भैया मैंने किया क्या है?मैंने कहा तू रोज शाम में मुझे गालियाँ क्यों देता है तब उसने अद्भुत जवाब दिया कि वो तो शराब गाली देती है मैं नहीं देता और मेरे पैरों पर गिर गया.मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं इसका क्या करूँ लेकिन एक अच्छी बात यह हुई कि उस दिन के बाद उसने मुझे गालियाँ देना बंद कर दिया लेकिन उसने घर में चूल्हे तोड़ देना और रोजाना बीवी-बच्चों की पिटाई करना बंद नहीं किया.उसके घर में भुखमरी की स्थिति थी लेकिन ये शराब तो चीज ही ऐसी है जो मरे को भी मारती है.
मित्रों,आप अक्सर कुछ घिनौनी टाईप की ख़बरें पढ़ते होंगे कि बाप ने बेटी के साथ बलात्कार किया या ससुर के बहू के साथ अनैतिक सम्बन्ध थे.इन सब के लिए वह आदमी कतई दोषी नहीं होता.मैं नहीं मानता कि कोई भी इंसान मूल रूप से इतना गिरा हुआ हो सकता है कि अपने पूरे होशोहवास में ऐसे नीच कर्म करे.मेरा मानव और मानवता में पूरा विश्वास है.ऐसे कर्म वह करता नहीं है बल्कि उससे ऐसे कुकर्म करवाती है यह शराब.अगर आप ३० से ऊपर के हैं और अगर आप होली के वर्तमान और इसके इतिहास पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि होली क्या थी और क्या होकर रह गयी है.पहले जहाँ यह वैर मिटानेवाला पावन-सामाजिक त्योहार थी अब झगडा बढानेवाली पर्व बन गयी है.कई जगहों पर होली के दिन हिंसा की, आगजनी की घटनाएँ होती हैं जो इस त्यौहार की प्रकृति के ही प्रतिकूल है.गांवों-कस्बों में अब दरवाजों पर घूम-घूमकर होली गाने का रिवाज समाप्त होने लगा है.शरीफ लोग शराबियों के या उनकी टोली के पीछे पड़ने के डर से घर से निकलते ही नहीं हैं.सरकार की आबकारी-नीति भी दोगली है.एक तरफ तो उसने गाँव-गाँव और चौराहे-चौराहे पर शराब की दुकानें खोल रखी है तो दूसरी ओर होली पर शराब पीकर लोग हुड्गंद नहीं करें इसके लिए पुलिस को भी अलर्ट पर रखती है.यानि वो चाहती है कि लोग शराब तो पीएँ लेकिन हुडदंग नहीं करें.परन्तु उन युवाओं का क्या जो होली के दिन सिर्फ चखने के नाम पर पहली बार शराब पीते हैं और फिर आपने ही हाथों अपनी जिंदगी को ही तबाह कर लेते हैं.इसलिए सरकार को चाहिए कि वो शराब की बिक्री और निर्माण को पूरी तरह से बंद करे.सेना के जवानों को भी तभी शराब दी जाए जब वो कश्मीरादि अतिशीतल इलाकों में तैनात हों.जब वे छुट्टी पर हों तब उन्हें शराब नहीं दी जाए वरना वे गाँव में शराब-संस्कृति को बढ़ाते जाएंगे.माना कि इससे सरकार को राजस्व का नुकसान होगा लेकिन वो इतना ज्यादा नहीं होगा जितना आज युवा-शक्ति के शराब पीकर दिग्भ्रमित होने से हो रहा है.साथ ही मैं समाज और देश के सभी जिम्मेदार नागरिकों से यह अपील भी करता हूँ कि वे होली को केवल उल्लास और सद्भाव का त्योहार रहने दें पियक्कड़ों का त्योहार नहीं बनाएँ.पहली और अंतिम बार पीने की भी नहीं सोंचें क्योंकि शराब चीज ही ऐसी है जो एक बार मुँह से लग जाए तो न छोड़ी जाए,ये मीठी जहर के जैसी है न छोड़ी जाए.अंत में सभी भारतवासियों को होली मुबारक.
मित्रों,दरअसल होली के नाम पर पहली बार शराब पीने वाला पहली बार तो पीता है लेकिन आखिरी बार नहीं.फिर तो वो नशे में क्या-क्या कर डालता है उसे खुद भी इसकी खबर नहीं होती.कई साल हुए तब मैं कटिहार रहा करता था जहाँ मेरी केले की खेती होती थी.मेरे दलान के पास का ही एक मुसहर रोजाना महुआ की घर में बनी शराब पीता और मेरे दलान के पास से जब भी गुजरता मुझे गालियाँ देता हुआ गुजरता.फिर अपने घर में जाकर मार-पीट करता.दो-चार दिनों के बाद जब मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो एक दिन सुबह-सुबह मैं उसके घर पर जा पहुंचा और बुलाकर पूछा कि तुम चाहते क्या हो?क्या अपने हाथ-पैर तुडवाना चाहते हो तो वो बोला कि भैया मैंने किया क्या है?मैंने कहा तू रोज शाम में मुझे गालियाँ क्यों देता है तब उसने अद्भुत जवाब दिया कि वो तो शराब गाली देती है मैं नहीं देता और मेरे पैरों पर गिर गया.मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं इसका क्या करूँ लेकिन एक अच्छी बात यह हुई कि उस दिन के बाद उसने मुझे गालियाँ देना बंद कर दिया लेकिन उसने घर में चूल्हे तोड़ देना और रोजाना बीवी-बच्चों की पिटाई करना बंद नहीं किया.उसके घर में भुखमरी की स्थिति थी लेकिन ये शराब तो चीज ही ऐसी है जो मरे को भी मारती है.
मित्रों,आप अक्सर कुछ घिनौनी टाईप की ख़बरें पढ़ते होंगे कि बाप ने बेटी के साथ बलात्कार किया या ससुर के बहू के साथ अनैतिक सम्बन्ध थे.इन सब के लिए वह आदमी कतई दोषी नहीं होता.मैं नहीं मानता कि कोई भी इंसान मूल रूप से इतना गिरा हुआ हो सकता है कि अपने पूरे होशोहवास में ऐसे नीच कर्म करे.मेरा मानव और मानवता में पूरा विश्वास है.ऐसे कर्म वह करता नहीं है बल्कि उससे ऐसे कुकर्म करवाती है यह शराब.अगर आप ३० से ऊपर के हैं और अगर आप होली के वर्तमान और इसके इतिहास पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि होली क्या थी और क्या होकर रह गयी है.पहले जहाँ यह वैर मिटानेवाला पावन-सामाजिक त्योहार थी अब झगडा बढानेवाली पर्व बन गयी है.कई जगहों पर होली के दिन हिंसा की, आगजनी की घटनाएँ होती हैं जो इस त्यौहार की प्रकृति के ही प्रतिकूल है.गांवों-कस्बों में अब दरवाजों पर घूम-घूमकर होली गाने का रिवाज समाप्त होने लगा है.शरीफ लोग शराबियों के या उनकी टोली के पीछे पड़ने के डर से घर से निकलते ही नहीं हैं.सरकार की आबकारी-नीति भी दोगली है.एक तरफ तो उसने गाँव-गाँव और चौराहे-चौराहे पर शराब की दुकानें खोल रखी है तो दूसरी ओर होली पर शराब पीकर लोग हुड्गंद नहीं करें इसके लिए पुलिस को भी अलर्ट पर रखती है.यानि वो चाहती है कि लोग शराब तो पीएँ लेकिन हुडदंग नहीं करें.परन्तु उन युवाओं का क्या जो होली के दिन सिर्फ चखने के नाम पर पहली बार शराब पीते हैं और फिर आपने ही हाथों अपनी जिंदगी को ही तबाह कर लेते हैं.इसलिए सरकार को चाहिए कि वो शराब की बिक्री और निर्माण को पूरी तरह से बंद करे.सेना के जवानों को भी तभी शराब दी जाए जब वो कश्मीरादि अतिशीतल इलाकों में तैनात हों.जब वे छुट्टी पर हों तब उन्हें शराब नहीं दी जाए वरना वे गाँव में शराब-संस्कृति को बढ़ाते जाएंगे.माना कि इससे सरकार को राजस्व का नुकसान होगा लेकिन वो इतना ज्यादा नहीं होगा जितना आज युवा-शक्ति के शराब पीकर दिग्भ्रमित होने से हो रहा है.साथ ही मैं समाज और देश के सभी जिम्मेदार नागरिकों से यह अपील भी करता हूँ कि वे होली को केवल उल्लास और सद्भाव का त्योहार रहने दें पियक्कड़ों का त्योहार नहीं बनाएँ.पहली और अंतिम बार पीने की भी नहीं सोंचें क्योंकि शराब चीज ही ऐसी है जो एक बार मुँह से लग जाए तो न छोड़ी जाए,ये मीठी जहर के जैसी है न छोड़ी जाए.अंत में सभी भारतवासियों को होली मुबारक.
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जवाब देंहटाएं"पियक्कड़ई का त्योहार बनती होली" लेख के लिए धन्यवाद !
श्रम और लगन से लिखी गई इस पोस्ट के लिए आपकी जितनी प्रशंसा की जाए , कंम है… आभार !
शराब तो अवगुणों का भंडार ही है… सचमुच !
स्वीकार करें मंगलकामनाएं आगामी होली तक के लिए …
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♥होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार !♥
♥मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !!♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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