शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

चाँद

पूर्णमासी की रात में,
दूधिया आकाश में;
चाँदी-सा चमकता हुआ,
निकलता है चाँद।

रोटी-सा गोल-गोल,
भात-सा धवल श्वेत;
वृहत गोला नवनीत का,
प्रतीक प्रकाश की जीत का;
रजत रश्मियाँ लुटाता पल-पल;
जेठ की रात में,
मित्रों के साथ में;
सोते हुए मैदान में,
कहीं खेत-मध्य मचान में;
जब रह-रह के फूटते हैं हँसी के फव्वारे;
हँसते हुए आता है देता है साथ चाँद;

पूर्णमासी की रात में,
दूधिया आकाश में;
चाँदी-सा चमकता हुआ,
निकलता है चाँद।

मिलता नहीं कोई जिन्हें बोलने-बतियाने को,
दौड़ती है सारी दुनिया मारने-लतियाने को;
शीतलता देने मन को,
चीरकर विस्तृत गगन को;
प्रकट होकर रात्रि में मुलाकात करने को,
मीठी बात करने को,
दुःख-ताप हरने को;
आता है तब अपने विश्राम को त्याग चाँद;

पूर्णमासी की रात में,
दूधिया आकाश में;
चाँदी-सा चमकता हुआ,
निकलता है चाँद।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
    जन्माष्टमी पर्व की शुभकामनाएँ
    मेरे ब्लॉग

    जीवन विचार
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं