मित्रों,हाथी और चींटी से संबंधित बहुत-से चुटकुले आपने पढ़े होंगे और पाया होगा कि उन सबमें चीटियों का उनके छोटे आकार और बलहीनता के लिए मजाक उड़ाया गया है। मगर हम ऐसा करते समय भूल जाते हैं कि चीटियाँ शायद दुनिया की सबसे मेहनती और अनुशासित जीव हैं। यह अपने शारीरिक भार से कई गुणा ज्यादा वजन भी मजे में उठा लेती हैं। लेकिन किसी हाथी को चीटियों के गुणों से या उसके जीने-मरने से क्या लेना-देना? हाथी तो जब भी चलेगा तो इस बात से बेफिक्र होकर ही कि उसके पाँव के नीचे कोई छोटा जीव-जंतु न आ जाए। तभी तो केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी जिसे केंद्रीय कानून मंत्री हाथी की उपमा देते हैं ने जान-बूझकर आम-आदमी को यानि चीटियों को कुचल-कुचलकर चलना शुरू कर दिया है। यह हाथी दरअसल आदमखोर हो गया है और शाकाहारी तो बिल्कुल भी नहीं रह गया है।
मित्रों,यह सही है कि इस हाथी में इन दिनों अपार बल है। वह पागल भी हो गया है और इसलिए अपने देश को ही उजाड़ने लगा है,तहस-नहस करने लगा है। बलवान हो भी क्यों नहीं उसके पास सलमान खुर्शीद जैसे ऑक्सफोर्ड रिटर्न जो हैं। मुश्किल यह है कि ऑक्सफोर्ड इंगलैंड में है और वहाँ के जंगलों में हाथी होता नहीं इसलिए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन के नाती खुर्शीद साहब को हाथी के बारे में पढ़ाया भी नहीं गया होगा। वहाँ के पाठ्यक्रम में तो भेड़ियों के बारे में जानकारी देनेवाले पाठ ही होंगे जो वहाँ के जंगलों में पाए जाते हैं। अगर ऑक्सफोर्ड में हाथी के बारे में पढ़ाया जाता तो खुर्शीद साहब ऐसा बयान हरगिज नहीं देते कि हाथी का चींटी क्या बिगाड़ लेगी? तब उनको यह पता होता कि अगर हाथी की सूंड में चींटी घुस जाए तो हाथी की मौत हो जाती है। इस अवस्था में पहले तो हाथी पागल होकर आत्मविनाशक हो जाता है,अपना ही नुकसान करने लगता है और अंत में मर जाता है।
मित्रों,मैं अपने एक आलेख "बालकृष्ण की गिरफ्तारी के निहितार्थ" में काफी पहले केंद्र सरकार को हाथी और आमआदमी को चींटी से संबोधित कर चुका हूँ। अपने उस आलेख में भी मैंने यह बताया था कि एक अकेली चींटी भी अगर हाथी की सूंड में घुस जाए तो इत्ती-सी जीव उसकी जान भी ले सकती है। अगर मेरे उस आलेख को खुर्शीद साहब ने पढ़ा होता तो वे इस तरह का बचकाना बयान नहीं देते लेकिन वे क्यों मुझे पढ़ने लगे? जब उनके लिए आज के भारत का सबसे बड़ा यूथ आईकॉन बन चुका अरविंद केजरीवाल ही चींटी के समान है तो मैं तो शायद उनके लिए जीवाणु होऊंगा जिसे नंगी आँखों से देखा भी नहीं जा सकता।
मित्रों, सलमान खुर्शीद अपने जमाने में किस स्तर के विद्यार्थी रहे होंगे पता नहीं लेकिन इन दिनों साहब कभी राजनीतिज्ञों का इतिहास नहीं पढ़ते हैं यह तय है। आश्चर्य है कि वे हमसे काफी बड़े हैं फिर भी भारतीय राजनीति में कब,क्या और क्यों हुआ उनको पता नहीं है? हमने खुद ही नंगी आँखों से लालू-कल्याण के सूरज को राजनीति के आसमान पर चढ़ते और फिर उतरते देखा है। मुझसे कुछ साल बड़े मेरे भाइयों-बहनों ने इसी कांग्रेसी हाथी पर सवार इंदिरा गांधी को पहले तो जेल भेजते हुए और फिर जेल जाते भी देखा है। मैंने खुद 80 के चुनाव में "पूड़ी-कचौड़ी तेल में,इंदिरा गांधी जेल में" के नारों से आकाश को गुंजायमान होते हुए देखा है। लोकतंत्र में जनता कब किसे उठाकर रद्दी की टोकरी में फेंक दे,कब चींटी को हाथी और हाथी को चींटी बना दे कोई नहीं जानता। फिर भी अगर सलमान खुर्शीद अपने और अपने भाग्य के ऊपर इतरा रहे हैं तो इसे उनका बचपना ही मानना और समझना पड़ेगा। कहा भी गया है-
भीलन लूटी गोपिका वही अर्जुन वही बाण।
पुरूष बली नहिं होत है समय होत बलवान।।
मित्रों,आलेख के प्रारंभ में ही मैंने इस बात का जिक्र किया है कि भ्रष्टाचार शास्त्र के परम् विद्वान और हेराफेरी के जानेमाने विशेषज्ञ खुर्शीद साहब के अनुसार कांग्रेस पार्टी एक हाथी है और चूँकि खुर्शीद साहब भी कांग्रेस में हैं तो प्रश्न यह भी उठता है कि आखिर वे इस हाथी का कौन-सा भाग हैं? खैर ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई करने के कारण हो सकता है कि उनको हाथी का भूगोल पता नहीं होगा। कोई बात नहीं उनको पता नहीं है तो क्या हुआ हमें तो पता है और अच्छी तरह पता है। जनाब खुर्शीद साहब कांग्रेसरूपी हाथी का खानेवाले दाँत,पेट,आँत,दिल,दिमाग,सूंड,पूँछ तो हो सकते नहीं क्योंकि यह सब तो सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार का कोई लायक-नालायक सदस्य ही हो सकता है। इन दिनों पूँछ पर राबर्ट बाड्रा का दावा सबसे मजबूत लगता है जिस पर हथौड़ा पड़ते ही इन दिनों हाथी पागल-जैसा हो गया है। बचे दिखाने के दाँत तो यह ओहदा सबको पता है कि इन दिनों माननीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास है। सबसे अंत में तो हाथी की लीद ही बचती है जो जनाब खुर्शीद साहब हो सकते हैं। वैसे इस लीद में भी कई आश्चर्यजनक गुण और विशेषताएँ पाई जाती हैं जिन पर फिर कभी किसी अन्य सुअवसर पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
मित्रों,यह सही है कि इस हाथी में इन दिनों अपार बल है। वह पागल भी हो गया है और इसलिए अपने देश को ही उजाड़ने लगा है,तहस-नहस करने लगा है। बलवान हो भी क्यों नहीं उसके पास सलमान खुर्शीद जैसे ऑक्सफोर्ड रिटर्न जो हैं। मुश्किल यह है कि ऑक्सफोर्ड इंगलैंड में है और वहाँ के जंगलों में हाथी होता नहीं इसलिए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन के नाती खुर्शीद साहब को हाथी के बारे में पढ़ाया भी नहीं गया होगा। वहाँ के पाठ्यक्रम में तो भेड़ियों के बारे में जानकारी देनेवाले पाठ ही होंगे जो वहाँ के जंगलों में पाए जाते हैं। अगर ऑक्सफोर्ड में हाथी के बारे में पढ़ाया जाता तो खुर्शीद साहब ऐसा बयान हरगिज नहीं देते कि हाथी का चींटी क्या बिगाड़ लेगी? तब उनको यह पता होता कि अगर हाथी की सूंड में चींटी घुस जाए तो हाथी की मौत हो जाती है। इस अवस्था में पहले तो हाथी पागल होकर आत्मविनाशक हो जाता है,अपना ही नुकसान करने लगता है और अंत में मर जाता है।
मित्रों,मैं अपने एक आलेख "बालकृष्ण की गिरफ्तारी के निहितार्थ" में काफी पहले केंद्र सरकार को हाथी और आमआदमी को चींटी से संबोधित कर चुका हूँ। अपने उस आलेख में भी मैंने यह बताया था कि एक अकेली चींटी भी अगर हाथी की सूंड में घुस जाए तो इत्ती-सी जीव उसकी जान भी ले सकती है। अगर मेरे उस आलेख को खुर्शीद साहब ने पढ़ा होता तो वे इस तरह का बचकाना बयान नहीं देते लेकिन वे क्यों मुझे पढ़ने लगे? जब उनके लिए आज के भारत का सबसे बड़ा यूथ आईकॉन बन चुका अरविंद केजरीवाल ही चींटी के समान है तो मैं तो शायद उनके लिए जीवाणु होऊंगा जिसे नंगी आँखों से देखा भी नहीं जा सकता।
मित्रों, सलमान खुर्शीद अपने जमाने में किस स्तर के विद्यार्थी रहे होंगे पता नहीं लेकिन इन दिनों साहब कभी राजनीतिज्ञों का इतिहास नहीं पढ़ते हैं यह तय है। आश्चर्य है कि वे हमसे काफी बड़े हैं फिर भी भारतीय राजनीति में कब,क्या और क्यों हुआ उनको पता नहीं है? हमने खुद ही नंगी आँखों से लालू-कल्याण के सूरज को राजनीति के आसमान पर चढ़ते और फिर उतरते देखा है। मुझसे कुछ साल बड़े मेरे भाइयों-बहनों ने इसी कांग्रेसी हाथी पर सवार इंदिरा गांधी को पहले तो जेल भेजते हुए और फिर जेल जाते भी देखा है। मैंने खुद 80 के चुनाव में "पूड़ी-कचौड़ी तेल में,इंदिरा गांधी जेल में" के नारों से आकाश को गुंजायमान होते हुए देखा है। लोकतंत्र में जनता कब किसे उठाकर रद्दी की टोकरी में फेंक दे,कब चींटी को हाथी और हाथी को चींटी बना दे कोई नहीं जानता। फिर भी अगर सलमान खुर्शीद अपने और अपने भाग्य के ऊपर इतरा रहे हैं तो इसे उनका बचपना ही मानना और समझना पड़ेगा। कहा भी गया है-
भीलन लूटी गोपिका वही अर्जुन वही बाण।
पुरूष बली नहिं होत है समय होत बलवान।।
मित्रों,आलेख के प्रारंभ में ही मैंने इस बात का जिक्र किया है कि भ्रष्टाचार शास्त्र के परम् विद्वान और हेराफेरी के जानेमाने विशेषज्ञ खुर्शीद साहब के अनुसार कांग्रेस पार्टी एक हाथी है और चूँकि खुर्शीद साहब भी कांग्रेस में हैं तो प्रश्न यह भी उठता है कि आखिर वे इस हाथी का कौन-सा भाग हैं? खैर ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई करने के कारण हो सकता है कि उनको हाथी का भूगोल पता नहीं होगा। कोई बात नहीं उनको पता नहीं है तो क्या हुआ हमें तो पता है और अच्छी तरह पता है। जनाब खुर्शीद साहब कांग्रेसरूपी हाथी का खानेवाले दाँत,पेट,आँत,दिल,दिमाग,सूंड,पूँछ तो हो सकते नहीं क्योंकि यह सब तो सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार का कोई लायक-नालायक सदस्य ही हो सकता है। इन दिनों पूँछ पर राबर्ट बाड्रा का दावा सबसे मजबूत लगता है जिस पर हथौड़ा पड़ते ही इन दिनों हाथी पागल-जैसा हो गया है। बचे दिखाने के दाँत तो यह ओहदा सबको पता है कि इन दिनों माननीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास है। सबसे अंत में तो हाथी की लीद ही बचती है जो जनाब खुर्शीद साहब हो सकते हैं। वैसे इस लीद में भी कई आश्चर्यजनक गुण और विशेषताएँ पाई जाती हैं जिन पर फिर कभी किसी अन्य सुअवसर पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
बहुत सुंदर आलेख..! धन्यवाद सर,
जवाब देंहटाएंमार्कण्ड दवे।