बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

नीतीश कुमार हैं फेंकू नंबर वन

मित्रों,इन दिनों भाजपा के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हालत कुछ ऐसी ही है जैसी कि विराटनगर के मैदान में अर्जुन की थी। मोदी ने कुछ बोला नहीं कि सारे धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार हिन्दू-अहिन्दू नेता एकसाथ टूट पड़ते हैं उनपर कि उन्होंने यह गलत बोला,वह गलत बोला,ये फेंका,वो फेंका। जबकि सच्चाई तो यह है कि फेंकनेवाले और झूठे वादे-दावे करनेवाले विपक्ष में ही ज्यादा हैं। इनमें से कई तो ऐसे भी हैं जिनका इस मामले में इस वसुधा पर जोड़ ही नहीं है।
                मित्रों,अगर कभी फेंकने का ओलंपिक कहीं हुआ तो निश्चित रूप से उसके सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित किए जाएंगे बिहार के निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी। यह श्रीमान् तो राज्य में सिर्फ वही कर देने के वादे और दावे करते फिरते हैं जो इनके बूते में ही नहीं है। जब ये विकास-यात्रा पर होते हैं तब धड़ल्ले से रास्ते में पड़नेवाले हर गाँव-शहर में थोक में शिलान्यास करते हैं और दिन के बदलने के साथ ही उनको भूल जाते हैं। ये कभी पटना में मेट्रो ट्रेन चलाते हैं तो कभी पटना के बगल में नया पटना बसाते हैं। अभी कुछ ही दिन पहले इन्होंने पटना से बख्तियापुर तक गंगा किनारे छः लेन की सड़क बनाने की योजना का शिलान्यास किया है जो शायद गंगा पर बिदूपुर और बख्तियारपुर के सामने बननेवाले दो महासेतुओं के साथ ही इसी शताब्दी में बनकर पूरी हो जाएगी। कभी इन्होंने राज्य के लोगों से वादा किया था कि आगे से संविदा पर बहाली नहीं की जाएगी लेकिन एक बार फिर जैसे ही दिन बदला,सूरज ने पूर्वी क्षितिज पर दस्तक दी नीतीश जी वादे को भूल गए। दिनकटवा आयोगों का गठन करने और इस प्रकार पटना उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को उपकृत कर निवर्तमान जजों को सुखद संकेत देने के मामले में सुशासन बाबू केंद्र सरकार से भी कई कदम आगे हैं। कदाचित् इन आयोगों का गठन ही इसलिए किया गया है कि इनकी रिपोर्ट कभी आए ही नहीं। फारबिसगंज न्यायिक आयोग,कुसहा बांध न्यायिक आयोग इत्यादि इसकी मिसाल हैं। बिहार में (कु)कर्मियों और अ(न)धिकारियों की भर्ती करने के लिए गठित बिहार लोक सेवा आयोग व बिहार कर्मचारी चयन आयोग इन दिनों सिर्फ नाम के लिए या उम्मीदवारों को धोखा देने के लिए परीक्षाएँ आयोजित करते हैं बाँकी सारी सीटें तो पर्दे के पीछे पैसे लेकर बेच दी जाती हैं। इसी प्रकार इन्होंने 2010 के चुनावों के समय वादा किया था कि अगली पारी में राज्य से भ्रष्टाचार को समूल नष्ट कर दिया जाएगा लेकिन हुआ मनमोहन-उवाच की तरह उल्टा और घूस की रेट लिस्ट में बेइन्तहाँ बढ़ोतरी हो गई। इन श्रीमान् के शासन में हर सरकारी दफ्तर-स्कूल-थाने भ्रष्टाचार के सबसे बड़े अड्डे बन गए हैं लेकिन ये फिर भी चाटुकार मीडिया द्वारा सुशासन बाबू कहे जाते हैं। कहने को तो राज्य में निगरानी विभाग है जो बराबर लोगों को घूस लेते रंगे हाथों गिरफ्तार भी करती है लेकिन आज तक शायद किसी रिश्वतखोर को इसने सजा नहीं दिलवाई है। रिश्वतखोर जब जेल से छूट कर आता है तो और भी ज्यादा ढिठाई से घूस लेने लगता है। इसी प्रकार इस विभाग ने दिखाने के लिए कुछ मकान जब्त भी किए हैं लेकिन जिस प्रदेश के कदाचित् 90 प्रतिशत मकान भ्रष्टाचार की देन हैं,जहाँ छतदार मकानवाला जमीन्दार चार-चार बार इंदिरा आवास का पैसा उठाता है और असली जरुरतमंद मुँहतका बना रहता है वहाँ एक-दो दर्जन मकानों को जब्त करने से भ्रष्टाचार का क्या उखड़ जानेवाला है आप सहज ही सोंच सकते हैं। राज्य में अफसरशाही की हालत इतनी खराब है कि छोटे-छोटे अफसर भी मंत्रियों तक की नहीं सुनते। तबादलों ने राज्य में उद्योग का रूप ले लिया है।
                         मित्रों,इस व्यक्ति ने मीडिया को अभूतपूर्व विज्ञापन द्वारा कृतज्ञ बनाकर पूरी दुनिया में यह झूठी अफवाह फैला दी है कि बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह से सुधर गई है जबकि सच्चाई तो यह है कि आज भी यहाँ रोजाना दर्जनों अपहरण होते हैं,बैंक लूट होती है। बिहार पुलिस का गठन ही मानों सिर्फ घूस खाने,जनता पर अत्याचार करने व बलात्कार करने के लिए हुआ है अनुसंधान करना और आतंकी कार्रवाई रोकना तो इसकी कार्यसूची में ही नहीं है। पहले बोधगया और अब पटना में आतंकियों ने सफलतापूर्वक बम फोड़े और बिहार पुलिस केंद्र से चेतावनी मिलने के बावजूद मूकदर्शक बनी रही और कदाचित् आगे भी बनी रहेगी। बनी भी क्यों न रहे जबकि मुख्यमंत्री ही आतंकियों को अपना बेटी-दामाद बताते हैं। मुजफ्फरपुर में अपने घर से 18 सितंबर,2012 की रात से अपहृत 11 वर्षीय लड़की नवरुणा का आज तक महान बिहार पुलिस सुराग तक नहीं लगा पाई है जबकि जाहिर तौर पर इसके पीछे उन स्थानीय भू-माफियाओं का हाथ है जिनको स्थानीय नेताओं व प्रशासन का वरदहस्त प्राप्त है।
                         मित्रों,भाजपा कोटे से पथनिर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव के अथक परिश्रम से राज्य की सड़कें चिकनी क्या हुई,चंद्रमोहन राय की तत्परता से अस्पतालों और जलापूर्ति विभाग में सुधार क्या हुआ कि नीतीश जी ने मीडिया में विकास के बिहार मॉडल की हवा चला दी। जब विकास हुआ ही नहीं तो विकास का मॉडल कैसा? कई बार श्रीमान् ने उद्योगपतियों के साथ पटना में बैठकें की लेकिन पलटकर कोई उद्योगपति बिहार नहीं आया। जब राज्य के अधिकांश हिस्सों में सरकारी अधिकारी नक्सलियों को बिना लेवी दिए दफ्तरों में बैठ नहीं सकते तो फिर उद्योगपति उनसे कैसे निबटेंगे?
                                मित्रों,फिर एक दिन अचानक नीतीश जी ने यू-टर्न लिया और कहा कि राज्य का सुपर स्पीड में विकास तो हुआ है लेकिन उस विकास के कारण राज्य और भी ज्यादा पिछड़ गया है इसलिए उनके राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। कैसा विकास है यह जिसमें केवल शराब-विक्रय से प्राप्त आय ही बढ़ती है? हर मोड़,हर चौराहे पर कम-से-कम एक-एक शराब की दुकान। खूब पीयो क्योंकि इससे राज्य का विकास होगा। उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि अगर विशेष राज्य का दर्जा मिल भी गया तो उद्योगों के लिए जमीन कहाँ से लाएंगे या फिर उद्योग भी उनकी बातों की तरह हवा में ही स्थापित हो जाएंगे? पिछले कई वर्षों से स्कूली छात्र-छात्राओं को सिरिमान जी साईकिलें बाँट रहे हैं। मुखियों को शिक्षक बहाली का अधिकार देकर स्कूली शिक्षा का तो बंटाधार कर दिया और बाँट रहे हैं साईकिल और छात्रवृत्ति। क्या साईकिलें व पैसे पढ़ाएंगे बच्चों को?
                                         मित्रों,श्रीमान् ने भाजपा का दामन छोड़ा सीबीआई के डर से और भाजपा की पीठ में खंजर भोंककर उल्टे भाजपा पर ही विश्वासघात का आरोप लगा रहे हैं। बिहार में एक और नेता हुआ करते हैं लालू प्रसाद यादव जी। हवाबाजी में ये नीतीश जी से थोड़ा-सा ही कम हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में इन्होंने सीरियस मजाक करते हुए वादा किया कि अगर नीतीश साईकिलें बाँट रहे हैं तो मैं छात्र-छात्राओं को मोटरसाईकिलें दूंगा। इतना ही नहीं इन्होंने मुखियों द्वारा बहाल किए गए अयोग्य शिक्षकों को पुराने शिक्षकों जितना वेतनमान देने की भी घोषणा कर दी। अब इन्हीं से पूछिए कि मोटरसाईकिल और वेतन के लिए ये पैसा कहाँ से लाएंगे,चारा घोटाला फंड से या अलकतरा घोटाला निधि से?
                                         मित्रों,हमारे राष्ट्रीय युवराज का नाम भाई लोगों ने भले ही पप्पू रख दिया हो मगर सच्चाई तो यह है कि फेंकने में इनका भी कोई सानी नहीं है। अभी कुछ ही दिन पहले इन्होंने दिल्ली मेट्रो को शीला सरकार की देन ठहरा दिया जबकि यह परियोजना जापान सरकार के सहयोग से वाजपेयी सरकार द्वारा लाई गई थी। कई-कई बार ये पंचायती राज को अपने स्व. पिता की देन बता चुके हैं जबकि भारत में पंचायती राज 1993 में तब लागू किया गया जब केंद्र में नरसिंह राव जी की सरकार थी। इसी प्रकार ये सूचना क्रांति को भी अपने पिताजी की देन बताते हैं जबकि सूचना क्रांति को सर्वाधिक बढ़ावा तब मिला जब वाजपेयी प्रधानमंत्री और प्रमोद महाजन सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार मंत्री थे। इंतजार करिए लोकसभा चुनावों तक ये लाल किला और कुतुबमीनार को भी क्रमशः नेहरू और इंदिरा द्वारा निर्मित बताएंगे। इसी प्रकार केंद्र व उप्र की सरकारों में भी फेंकुओं की कोई कमी नहीं है। कोई 32 रुपए कमानेवाले को अमीर बता रहा है तो कोई दो रुपए में भरपेट भोजन कर लेता है तो कोई हजार रुपए में टेबलेट बाँट रहा है तो कोई घोटाले करके भ्रष्टाचार मिटाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित कर रहा है तो कोई गरीबों की झोली से प्रति व्यक्ति प्रति माह 10 किलोग्राम अनाज छीनकर भोजन की गारंटी दे रहा है तो कोई गरीबों को कागज पर शिक्षा का अधिकार देने में लगा-भिड़ा है। काम शून्य सिर्फ हवाबाजी। जब भी आतंकी हमला हुआ तो उनींदी मुद्रा में बोल दिया कि किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा और फिर सो गए,जब पाकिस्तान ने जवानों को मारा तो ऊंघते हुए कह दिया कि कड़े कदम उठाए जाएंगे और सो गए। जब चीन ने घुसपैठ की तो घुसपैठ होने से ही मुकर गए और चीन की एक दंडवत यात्रा कर ली। कहने को तो सेना के लिए बंदूक की गोली और टैंक का गोला तक नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री के अनुसार हमारी सेना किसी भी खतरे से निबटने में सक्षम है। अर्थव्यवस्था रसातल में पहुँच चुकी है लेकिन प्रधानमंत्री औसत के आधार पर इसे राजग कार्यकाल से अच्छा सिद्ध कर रहे हैं। महँगाई तो न जाने कब से अगले सप्ताह से ही कम हो जानेवाली है। मैं पूछता हूँ कि अगर पटेल कांग्रेस के गौरव हैं तो क्यों उनको पूरी तरह से पार्टी द्वारा भुला दिया गया और तभी क्यों उनकी याद आई जब नरेंद्र मोदी ने उनकी विश्व की सबसे बड़ी व ऊँची प्रतिमा स्थापित करने की घोषणी की? छोटे युवराज अखिलेश यादव ने तो खेल के सारे नियम ही पलट दिए हैं। मुजफ्फरनगर में जो पीड़ित पक्ष है उसे ही जेलों में ठूस दिया गया है और जो व्यक्ति दंगों के दौरान अधिकारियों को कोई कार्रवाई नहीं करने के निर्देश दे रहा था अभी भी उप्र सरकार में कैबिनेट मंत्री ही नहीं सुपर चीफ मिनिस्टर बना हुआ है।
                                      मित्रों,अब आप ही बताईए कि वास्तव में बड़ा या सबसे बड़ा फेंकू कौन है? दरअसल राजनीति के मैदान में हर कोई फेंकू है और कुछ तो नीतीश की तरह ऐसे भी हैं जिनको कुछ करना आता ही नहीं है सिर्फ फेंकना आता है। अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि हमारे सभी राजनेताओं में सबसे बड़ा फेंकू कौन है-
हँस-हँस बोले मधुर रस घोले विरोधियों पर बदइंतजामी से उतारे खीस।
झूठ भी बोले सच से अच्छा का सखी मोदी ना सखी नीतीश।।

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