मित्रों,बात कई सौ साल पुरानी है। हमारे गाँव में एक चौबेजी रहा करते थे। उनको पुरोहिती का कामचलाऊ ज्ञान था लेकिन वे अपने आपको किसी महापंडित से कम नहीं समझते थे। एक दिन उन्होंने सोंचा कि वे चौबे क्यों कहलाते हैं उनके जैसे महाज्ञानी को तो कायदे से छ्ब्बे कहा जाना चाहिए। सों अपनी बड़ी-सी तोंद को संभालते हुए पंडितजी पहुँच गए काशी पंडितों की सभा में और रख दी अपनी मांग उनलोगों के सामने। सभा में आए हुए सारे पंडित आश्चर्य में पड़ गए कि वेद तो चार ही होते हैं फिर किसी को छब्बे की उपाधि कैसे दी जा सकती है? चौबे जी से जब पूछा गया कि वेद कितने होते हैं तो लगे बगले झाँकने। दंडस्वरूप चौबेजी के चौबे में से दो वेद कम कर दिए गए और बेचारे बन गए दूबे।
मित्रों,ऐसा ही कुछ भारत के तत्कालीन लौहपुरूष लालकृष्ण आडवाणी के साथ भी हुआ था। आडवाणी जी ने मुसलमानों के वोट के लालच में पड़कर मो. अली जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बता दिया था और फिर प्रधानमंत्री बन पाना तो उनके लिए सपना बन ही गया वे भाजपा के और भारत के लौहपुरूष भी नहीं रह गए। दरअसल किसी भी राजनीतिज्ञ की एक छवि होती है और राजनीतिज्ञ जितना ही बड़ा होता है उसके लिए एकदम से यू-टर्न ले पाना उतना ही कठिन और खतरनाक होता है। जाहिर है कि तब आडवाणी जी ऐसा कर पाने में असमर्थ रहे थे और दुर्घटना के शिकार हो गए थे।
मित्रों,मैं भाजपा और तदनुसार भारत के वर्तमान लौहपुरूष श्री नरेन्द्र मोदी जी से निवेदन करना चाहता हूँ कि वे हरगिज वैसी गलती न करें जैसी गलती आडवाणी जी ने तब की थी। उनको अपनी छवि में बदलाव लाना ही है,विकासवादी और प्रगतिशील दिखना ही है तो अपनी गाड़ी की धीरे-धीरे मोड़ें एकदम से यू-टर्न हरगिज न लें। मैंने माना कि शौचालय मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम शौचालय के महत्त्व को उसकी बिना देवालय से तुलना किए बता ही नहीं सकते। शौचालय अगर शारीरिक और सामाजिक गरिमा के लिए जरूरी है तो देवालय मानव की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति और उनको सचमुच का मानव बनाने के लिए अत्यावश्यक हैं इसलिए इन दोनों के बीच तुलना हो ही नहीं सकती। आप ही बताईए कि मात्र दस दिनों के अंतर पर स्वर्ग सिधारे दो महापुरूषों लाल बहादुर शास्त्री और डॉ. होमी जहाँगीर भाभा की महानता की तुलना कोई कैसे कर सकता है या फिर कोई कैसे महात्मा गांधी और मेजर ध्यानचंद के योगदान की तुलना कर सकता है?
मित्रों,मोदी जी को अपनी धर्मनिरपेक्षता को प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे एक आम हिन्दू की तरह जन्मजात धर्मनिरपेक्ष हैं और जो भी जन्मना हिन्दू राजनेता धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीटते रहते हैं दरअसल वे शर्मनिरपेक्ष हैं धर्मनिरपेक्ष तो वे हैं ही नहीं। वे तो अपने भ्रष्टाचरण को छिपाने और जेल जाने से बचने भर के लिए फैजी टोपी का दुरूपयोग करते रहे हैं। जहाँ तक सबका मत प्राप्त करने का प्रश्न है तो जिस तरह भारत की जनता वर्तमान काल में अल्पसंख्यकवादी व देशद्रोही राजनेताओं द्वारा विभिन्न हितसमूहों में बाँट दी गई है वैसे में किसी भी दल को सबका मत मिल पाना प्रायः असंभव ही है। ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि मोदी जी का हाल एकहिं साधे सब सधे सब साधे सब जाए वाला हो जाए और वे न तो ईधर को रह जाएँ और न ही उधर के बिल्कुल अपने राजनैतिक गुरू आडवाणी जी की तरह। एक और सलाह मैं उनको देना चाहूंगा कि वे जरुरत भर ही बोलें और जितना भी बोलें सोंच-समझकर बोलें तो यह उनके और देश के लिए भी अच्छा होगा क्योंकि हमारा अनुभव बताता है कि हम जितना ही ज्यादा बोलते हैं गलतियों की गुंजाईश उतनी ही ज्यादा होती है और मुँह से निकले हुए शब्द और धनुष से छूटे हुए वाणों को कभी भी वापस नहीं लिया जा सकता।
मित्रों,ऐसा ही कुछ भारत के तत्कालीन लौहपुरूष लालकृष्ण आडवाणी के साथ भी हुआ था। आडवाणी जी ने मुसलमानों के वोट के लालच में पड़कर मो. अली जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बता दिया था और फिर प्रधानमंत्री बन पाना तो उनके लिए सपना बन ही गया वे भाजपा के और भारत के लौहपुरूष भी नहीं रह गए। दरअसल किसी भी राजनीतिज्ञ की एक छवि होती है और राजनीतिज्ञ जितना ही बड़ा होता है उसके लिए एकदम से यू-टर्न ले पाना उतना ही कठिन और खतरनाक होता है। जाहिर है कि तब आडवाणी जी ऐसा कर पाने में असमर्थ रहे थे और दुर्घटना के शिकार हो गए थे।
मित्रों,मैं भाजपा और तदनुसार भारत के वर्तमान लौहपुरूष श्री नरेन्द्र मोदी जी से निवेदन करना चाहता हूँ कि वे हरगिज वैसी गलती न करें जैसी गलती आडवाणी जी ने तब की थी। उनको अपनी छवि में बदलाव लाना ही है,विकासवादी और प्रगतिशील दिखना ही है तो अपनी गाड़ी की धीरे-धीरे मोड़ें एकदम से यू-टर्न हरगिज न लें। मैंने माना कि शौचालय मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम शौचालय के महत्त्व को उसकी बिना देवालय से तुलना किए बता ही नहीं सकते। शौचालय अगर शारीरिक और सामाजिक गरिमा के लिए जरूरी है तो देवालय मानव की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति और उनको सचमुच का मानव बनाने के लिए अत्यावश्यक हैं इसलिए इन दोनों के बीच तुलना हो ही नहीं सकती। आप ही बताईए कि मात्र दस दिनों के अंतर पर स्वर्ग सिधारे दो महापुरूषों लाल बहादुर शास्त्री और डॉ. होमी जहाँगीर भाभा की महानता की तुलना कोई कैसे कर सकता है या फिर कोई कैसे महात्मा गांधी और मेजर ध्यानचंद के योगदान की तुलना कर सकता है?
मित्रों,मोदी जी को अपनी धर्मनिरपेक्षता को प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे एक आम हिन्दू की तरह जन्मजात धर्मनिरपेक्ष हैं और जो भी जन्मना हिन्दू राजनेता धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीटते रहते हैं दरअसल वे शर्मनिरपेक्ष हैं धर्मनिरपेक्ष तो वे हैं ही नहीं। वे तो अपने भ्रष्टाचरण को छिपाने और जेल जाने से बचने भर के लिए फैजी टोपी का दुरूपयोग करते रहे हैं। जहाँ तक सबका मत प्राप्त करने का प्रश्न है तो जिस तरह भारत की जनता वर्तमान काल में अल्पसंख्यकवादी व देशद्रोही राजनेताओं द्वारा विभिन्न हितसमूहों में बाँट दी गई है वैसे में किसी भी दल को सबका मत मिल पाना प्रायः असंभव ही है। ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि मोदी जी का हाल एकहिं साधे सब सधे सब साधे सब जाए वाला हो जाए और वे न तो ईधर को रह जाएँ और न ही उधर के बिल्कुल अपने राजनैतिक गुरू आडवाणी जी की तरह। एक और सलाह मैं उनको देना चाहूंगा कि वे जरुरत भर ही बोलें और जितना भी बोलें सोंच-समझकर बोलें तो यह उनके और देश के लिए भी अच्छा होगा क्योंकि हमारा अनुभव बताता है कि हम जितना ही ज्यादा बोलते हैं गलतियों की गुंजाईश उतनी ही ज्यादा होती है और मुँह से निकले हुए शब्द और धनुष से छूटे हुए वाणों को कभी भी वापस नहीं लिया जा सकता।
apane do sher hee tippanee ke liye rakhataa hoon :
जवाब देंहटाएंdost bab ban ke sadaa hamko dagabaz mile ,
dekhna hai ki aap kaun hain jo aaj mile ;
SABKO KHUSH RAKHNA NAHEEN BAS MEIN kisee ke shaayad ,
kaheen aisa na ho jo bhee mile naaraz mile .
बन्धु , तुलना तो जय राम रमेश ने की जब उन्होने कहा था कि देवालय से ज्यादा पवित्र शौचालय होते हैं
जवाब देंहटाएंऔर उन्होने यही कहा था , तुलना करने के लिये आपको दोनो मे से एक को ज्यादा श्रेष्ठ बताना है लेकिन मोदी ने यह कहा है कि पहले देवालय और फ़िर शौचालय , यानि दैनिक जीवन मे यदि किसी क्षेत्र मे शौचालय और देवालय दोनो ही न हो और वहा के लिये कोइ पैसा आये और पैसे से एक हि चीज बनाइ जा सकती हो तो फ़िर पहले शौचालय हि बनाया जाना चाहिये न कि देवालय | इश्वर मन मे हो सकता है पर शौचालय ?
बन्धु , तुलना तो जय राम रमेश ने की जब उन्होने कहा था कि देवालय से ज्यादा पवित्र शौचालय होते हैं
जवाब देंहटाएंऔर उन्होने यही कहा था , तुलना करने के लिये आपको दोनो मे से एक को ज्यादा श्रेष्ठ बताना है लेकिन मोदी ने यह कहा है कि पहले देवालय और फ़िर शौचालय , यानि दैनिक जीवन मे यदि किसी क्षेत्र मे शौचालय और देवालय दोनो ही न हो और वहा के लिये कोइ पैसा आये और पैसे से एक हि चीज बनाइ जा सकती हो तो फ़िर पहले शौचालय हि बनाया जाना चाहिये न कि देवालय | इश्वर मन मे हो सकता है पर शौचालय ?
बन्धु , तुलना तो जय राम रमेश ने की जब उन्होने कहा था कि देवालय से ज्यादा पवित्र शौचालय होते हैं
जवाब देंहटाएंऔर उन्होने यही कहा था , तुलना करने के लिये आपको दोनो मे से एक को ज्यादा श्रेष्ठ बताना है लेकिन मोदी ने यह कहा है कि पहले देवालय और फ़िर शौचालय , यानि दैनिक जीवन मे यदि किसी क्षेत्र मे शौचालय और देवालय दोनो ही न हो और वहा के लिये कोइ पैसा आये और पैसे से एक हि चीज बनाइ जा सकती हो तो फ़िर पहले शौचालय हि बनाया जाना चाहिये न कि देवालय | इश्वर मन मे हो सकता है पर शौचालय ?