शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

हिन्दू हो या मुसलमान आँसुओं का रंग समान


महुआ (वैशाली)।(निसं) जाति और धर्म  के नाम पर समाज में बहुत से सही-गलत कारनामे चलते हैं, लेकिन जिंदगी, हादसा और मौत किसी का मजहब देखकर भेदभाव नहीं करते। महुआ के सिंघाड़ा गांव के दो दोस्त अलग-अलग समुदाय के थे पर दोनों की पीड़ा एक थी। दोनों धरती पर आविर्भाव के बाद से ही अपनी-अपनी गरीबी से जूझते रहे। दोनों ने साथ ही नौकरी की तलाश की। दोनों आंध्र प्रदेश गए । मालपुर सिंघाड़ा निवासी लालदेव पासवान के पुत्र 35 वर्षीय राजीव कुमार और  रामराय सिंघाड़ा निवासी 37 वर्षीय मो.फिरोज आंध्र प्रदेश में एक ही कंपनी में नौकरी भी करने लगे थे। होनी कुछ ऐसी कि पिछले सप्ताह एक भीषण सड़क हादसे में दोनों की मौत भी साथ-साथ हुई। दोनों के शव बुरी तरह क्षत-विक्षत थे। उन्हें पहचानना मुश्किल था। दोनों के शवों को साथ ही गांव लाया गया, लेकिन सही पहचान न हो पाने से राजीव का शव कब्रिस्तान में और फिरोज का शव श्मशान पहुंच गया। लगे थे। होनी कुछ ऐसी कि पिछले सप्ताह एक भीषण सड़क हादसे में दोनों की मौत भी साथ हुई। दोनों के शव बुरी तरह क्षत-विक्षत थे। उन्हें पहचानना मुश्किल था। दोनों का शव साथ ही गांव लाया गया, लेकिन सही पहचान न होने से राजीव अनजाने में ही सही, हिंदू युवक के शव के पास मुसलिम ग्रामीणों ने मातमपुर्सी की और मुसलिम नौजवान की देह के पास हिंदू परिजनों ने विलाप किया। आंसु बहानेवाले नेत्र अलग-अलग संप्रदायों के थे मगर उनका रंग एक था। सिसिकियां भी श्मसान और कब्रिस्तान में एक-जैसी थीं। इनकी कोई अलग मजहबी पहचान नहीं थी। फिरोज के परिजन राजीव के शव को फिरोज की देह समझकर सुपुर्द-ए-खाक कर चुके थे। इधर, श्मशान में शव को जलाने से पहले उसे साफ करने और स्नान कराने के दौरान लोगों को पता चला कि शव राजीव का नहीं, फिरोज का है । फिरोज का शव लेकर जैसे ही लोग सिंघाड़ा रामराय पहुंचे, मुसलिम समुदाय के लोग भौंचक्के रह गए। आनन-फानन में कब्र से राजीव का शव निकालकर उसके परिजनों को सौंपा गया। दोबारा उन दोनों का उनके अपने-अपने धर्म  के अनुसार क्रिया-कर्म हुआ। दो जिगरी दोस्तों की मौत से जहाँ पूरे गांव में मातम का वातावरण है, लेकिन शव की अदला-बदली ने मातमी माहौल की संजीदगी बढ़ा दी है और हिन्दू-मुसलमान दोनों समुदायों को यह सोंचने पर विवश कर दिया है कि जब दर्द और आँसू के रंग एक हैं तो फिर दोनों के बीच वैमनस्यता क्यों? (http://hajipurtimes.in/ से साभार)

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