शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

किनारे से निकल गए केजरीवाल



दिल्ली विधानसभा में विश्वासमत पर हुई चर्चा के दौरान अपने उत्तर में दिल्ली के नए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विपक्ष के नेता डॉ. हर्षवर्द्धन और रामवीर सिंह विधूड़ी द्वारा उठाए गए किसी भी प्रश्न का सीधे-सीधे जवाब नहीं दिया और गोल-मोल उत्तर देते हुए किनारे से निकल गए। उन्होंने यह नहीं बताया कि चुनाव प्रचार के समय उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाए थे उनका क्या होगा? उन्होंने यह भी नहीं बताया कि पिछली सरकार में हुए भ्रष्टाचारों की जाँच कब कराई जाएगी या फिर कराई जाएगी भी या नहीं। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि बिजली-पानी पर उन्होंने जो सब्सिडी का गंदा खेल शुरु किया है उसका देश की अर्थव्यवस्था पर कैसे प्रभाव पड़ेगा? अगर बाँकी सरकारों ने भी मजबूरी में इस मामले में उनका अनुशरण करना शुरु कर दिया तो पहले से ही मंदी भुगत रही अर्थव्यवस्था तो दम ही तोड़ देगी। सिर्फ भारतमाता की जय का झूठा नारा लगाने से ही तो भारतमाता की जय नहीं हो जाएगी। उनकी प्रत्येक पंक्ति में एक शब्द जरुर आ रहा था और वो शब्द था-आम आदमी। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार को आम आदमी चलाएगा। तो क्या सचिवालय में प्रेस के प्रवेश पर रोक उन्होंने एसएमएस और जनसभाओं द्वारा आमआदमी की राय लेकर लगाई है? आप चुनाव-प्रचार के समय तो हर काम प्रेस को बुलाकर किया करते थे। यहाँ तक कि शपथ-ग्रहण के लिए आते समय मेट्रो में महिलाएँ सीट पर बैठकर आपने बड़े ही ठाठ से फोटों खिंचवाया फिर मुख्यमंत्री बनते ही आपने मीडिया से दूरी क्यों बना ली? क्या उन्होंने या उनकी पार्टी ने राष्ट्रमंडल घोटाले में शीला दीक्षित को क्लिन चिट भी आमआदमी से पूछकर दी है? क्या शीला और उसके मंत्रियों के खिलाफ सबूत जुटाना भी आम आदमी का ही काम है?
इतना ही नहीं केजरीवाल ने अपने भाषण में आम आदमी की परिभाषा को भी बदल दिया। पहले जहाँ पीड़ित-दलित-शोषित-ग्रास रूट लेवल पर स्थित व्यक्ति को आम आदमी माना जाता था केजरीवाल के अनुसार आम आदमी वह है जो भ्रष्ट नहीं है और खास आदमी वह है जो भ्रष्ट है। क्या केजरीवाल बताएंगे कि कौन भ्रष्ट है और कौन नहीं का निर्णय कौन करेगा? क्या वे खुद ही इसका निर्णय लेंगे और सिर्फ वही निर्णय लेंगे? फिर तो भ्रष्टाचार और भ्रष्ट व्यक्ति की भी परिभाषा निर्धारित करनी पड़ेगी। खुद केजरीवाल भ्रष्ट हैं या नहीं इसका पता कैसे चलेगा? जो व्यक्ति अपने बच्चों की कसमें खाकर मुकर गया हो वो सच बोलता भी होगा कौन मानेगा? क्या आप कभी आयकर आयुक्त थे भी जैसा कि आप दावा करते रहे हैं? आयकर अधिकारियों का संगठन तो आपको इस मामले में भी झूठा ठहरा रहा है। केजरीवाल जी मनोहर पार्रीकर,माणिक सरकार,डॉ. हर्षवर्द्धन जैसे कई राजनेता भारत की धरती पर इस समय पहले से ही मौजूद हैं जो अपनी ईमानदारी और सच्चाई के लिए जाने जाते हैं। न तो उनको अपनी ईमानदारी साबित करने के लिए बच्चों की कसमें खानी पड़ती है और न ही किसी मान्य परिभाषा को बदलने की। ईमानदारी स्वयंसिद्ध होती है। उसको दिखावे द्वारा जबरन साबित करने की कोशिश न तो पहले कभी सफल हुई है और न तो आगे सफल होनेवाली है। हाँ,कुछ देर के लिए झूठ का सिक्का जरुर चल जा सकता है लेकिन एक-न-एक दिन तो उसकी कलई उतर ही जाती है। आपको बड़े-बड़े उजले कॉलर वाले पदाधिकारियों व धनपतियों को आम आदमी पार्टी में शामिल करना है तो करिए मगर आम आदमी की परिभाषा को तो भ्रष्ट नहीं करिए। हमारे कुछ मित्र कह सकते हैं कि भाजपा ने भी तो येदुरप्पा को वापस लिया तो मैं उन मित्रों की जानकारी के लिए बता दूँ कि येदुरप्पा भ्रष्टाचार के सारे मामलों में पहले ही कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा बरी किए जा चुके हैं। ऐसे में मैं नहीं मानता कि उनको पार्टी में वापस लेने में कोई बुराई है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि इंसाफ का तकाजा तो यह है कि जब तक कोर्ट सजा न दे दे कोई अपराधी नहीं होता,व्यक्ति ईमानदार हो या नहीं हो उसको कानून की नजरों में ईमानदार होना चाहिए लेकिन नैतिकता को तकाजा तो यही है कि व्यक्ति को न सिर्फ ईमानदार दिखना चाहिए बल्कि होना भी चाहिए। मैं आपसे नैतिकता की आशा इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि आप कथित रूप से राजनीति की मरुभूमि में नैतिकता की गंगा प्रवाहित करने आए हैं। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

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