शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014

दुर्घटना ने मिटाया हिन्दू-मुसलमान का फर्क

24 अक्तूबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आपके शहर में भी बहुत सारे ऐसे विक्षिप्त और अर्द्धविक्षिप्त लोग होंगे जिनको अपना होश ही नहीं है। कोई नहीं जानता कि वे हिन्दू हैं या मुसलमान। इनके लिए न तो कोई सुख है और न ही कोई दुःख। कहीं भी कुछ भी खा लिया और कहीं भी धरती को बिछावन और ईंटों को सिरहाना बनाकर टांग पसारकर सो गए।
मित्रों,अभी-अभी शाम ढलने से पहले एक टेम्पोवाले ने एक ऐसे ही स्थिरबुद्धि वृद्ध विक्षिप्त के पैरों को रगड़ दिया। बेचारा अपनी मस्ती में हाजीपुर के चौहट्टा चौक स्थित चबूतरे पर पांव लटकाए किसी दुकानदार के दिए सिगरेट को मजे ले-लेकर पी रहा था कि एक टेम्पोवाला उसके पैर को घायल करता हुआ निकल गया। पैर फट गया था इसलिए काफी तेजी से रक्तस्राव होने लगा। लेकिन बेचारा न तो चीखा और न ही नाराज हुआ बस अंदर-ही-अंदर दर्द को पीता हुआ लेट गया। कई लोग दौड़े सड़क के दक्षिण से मैं गया तो उत्तर से पान दुकानदार मुमताज और साईकिल मिस्त्री मकसूद भी दौड़ा। हमने चौक पर स्थित सिन्हा मेडिकल हॉल के सुनील कुमार से विनती की कि रोजगार तो रोज ही होता है आज परोपकार का काम कर लो और बेचारे की मरहम-पट्टी कर दो। सुनील ने पट्टी तो कर दी लेकिन सूई देने से हिचक रहा था।
मित्रों,मुमताज तो जैसे पागल ही हुआ जा रहा था। बार-बार जख्मी वृद्ध के पास आता और फिर सुनील के पास कहने को जाता। फिर मैंने सुनील की दुकान के मालिक प्रमोद कुमार सिन्हा से निवेदन किया तो उन्होंने सुनील को इसकी अनुमति दे दी। मुमताज ने न केवल सूई देने के लिए वृद्ध का आस्तीन ऊपर किया और सूई देने के समय हाथ पकड़ा बल्कि सुनील के सूई देने के बाद काफी देर तक सूई के स्थान को सहलाता भी रहा। इसके बाद सुनील ने पानी डालकर जमीन पर गिरे खून को साफ कर दिया। फिर वृद्ध की जान-में-जान आई और वो उठकर बैठ गया। लेकिन सवाल उठता है कि आगे उसकी पट्टी को बदलेगा कौन? क्या यह घाव उस वृद्ध की जान ले लेगा?
मित्रों,यह सच्चाई है कि हर आदमी मूल रूप से न तो हिन्दू है और न ही मुसलमान। मैंने या मुमताज या मकसूद ने इस बात की चिन्ता नहीं की कि वह वृद्ध हिन्दू है मुसलमान या कुछ और। उसके बहते खून ने हम सबकी करुणा को जगा दिया। लेकिन सच्चाई यह भी है कि हमारे करने या करवाने की भी एक सीमा थी और है। कोई ऐसी व्यवस्था तो होनी चाहिए जिससे कि ऐसे बेसहारा लोगों की समुचित देखभाल हो सके। चाहे वह व्यवस्था सरकार द्वारा हो या कुकुरमुत्ते की तरह पूरे हाजीपुर में उग आए घपलेबाज गैर सरकारी संगठनों द्वारा। अपनों के लिए तो हर कोई करता है कोई परायों के लिए भी तो करे।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें