शनिवार, 8 नवंबर 2014

बनने लगीं हाजीपुर की गलियों की सड़कें मगर किसके लिए?

8 नवंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,वर्ष 2002 में जब दिल्ली गया तो मैंने पाया कि दिल्ली की सड़कों में हमेशा,सालोंभर काम लगा रहता है। सड़कों और डिवाईडरों को बार-बार तोड़ा जाता और बनाया जाता। तब मेरी समझ में यह नहीं आ रहा था कि ऐसा करके दिल्ली का विकास किया जा रहा है या फिर पैसों की बर्बादी? कहने को तो वह निर्माण दिल्ली की जनता की सुविधा के लिए हो रहा था लेकिन वास्तविकता तो यह थी कि सारा-का-सारा निर्माण कार्य केवल और केवल ठेकेदारों,इंजीनियरों,अफसरों और नेताओं के फायदे या सुविधा के लिए किया जा रहा था।

मित्रों,इन दिनों हाजीपुर की गलियों में भी कुछ ऐसा ही गंदा खेल चल रहा है और जनता जैसे दिल्ली में मूकदर्शक थी वैसे ही हाजीपुर में भी मूकदर्शक है। हमने अपनी खबरों में (नालियाँ बनीं मगर सड़कें गायब) 17 दिसंबर,2013 को बताया था कि हाजीपुर की गलियों में जिस तरह से नालियों का निर्माण हो रहा है उससे नहीं लगता कि इन पतली-पतली नाजुक पाइपों से होकर कभी एक बूंद भी गंदा पानी हमारे दुनिया से गुजर जाने तक गुजर सकेगा। इतना ही नहीं हमने यह भी लिखा था कि नाली निर्माण का ठेका लेनेवाली कंपनी ट्राईटेक ने शहर की सारी गलियों की सड़कों तोड़कर नाली के लिए षोडसी युवती की पतली टांगों सरीखी पाईप तो बिछा दिया लेकिन सड़कों को टूटी हुई ही छोड़ दिया जिससे हल्की बरसात होने बाद तो घर से निकलना तक मुश्किल हो जाता है।

मित्रों,हमारी खबर ने असर दिखाया और हाजीपुर की मेयर की कुर्सी चली गई। नए मेयर हैदर अली ने तत्परता दिखाई और कुर्सी संभालते ही कंपनी के परियोजना पदाधिकारी को निर्देश दिया कि कंपनी पहले नाली के काम में हो रही त्रुटियों को दूर करे और फिर सारी गलियों की सड़कों को दुरूस्त करे। (हाजीपुर टाईम्स का असर,नगर पार्षदों ने लगाई नाली बनाने वाली कंपनी को जमकर फटकार) कंपनी एक बार फिर से कोताही बरत रही है। नालियों को जस-का-तस छोड़ दिया गया है और सड़कों को बनाने का काम आरंभ कर दिया गया है। सवाल उठता है कि भविष्य में अगर नालियों ने काम नहीं किया तो इसकी जिम्मेदारी किस पर आएगी? तब क्या हाजीपुर नगर परिषद् ट्राईटेक कंपनी के खिलाफ किसी तरह कार्रवाई न करते हुए नालियों के लिए फिर से निविदा आमंत्रित करेगी और एक बार फिर से सड़कों को तोड़कर नालियाँ बनाई जाएंगी और दिल्ली की तरह ऐसा बार-बार किया जाता रहेगा जनसुविधा के नाम पर और दिल्ली की ही तरह हाजीपुर की जनता भी अपने ही पैसों की खुली लूट को मूकदर्शक बनकर देखती रहेगी? क्या इसी के लिए 1993 में भारत के संविधान में 73वाँ और 74वाँ संशोधन किया गया था? वह शक्तियों का विकेंद्रीकरण था या भ्रष्टाचार का? मॉनिटर तो सरकार को भी करना चाहिए लेकिन बिहार में सरकार है ही कहाँ? (मेरी सरकार खो गई है हुजूर)।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

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