9 दिसंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,आज से करीब ढाई हजार साल
पहले कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में लिखा था कि जिस राज्य के निवासियों को
न्याय नहीं मिलता वहाँ अराजकता पैदा होती है और अंततः उस राज्य का अंत हो
जाता है। अभी कुछ ही दिन पहले भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य
न्यायाधीश दत्तू ने भी भारत की न्यायिक प्रणाली पर गंभीर टिप्पणी करते हुए
कहा कि भारत की न्यायिक प्रणाली गरीब-विरोधी है। अब जब मुख्य न्यायाधीश का
ही ऐसा मानना है तो फिर इस संबंध में बहुत-कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं
है।
मित्रों,अभी कुछ ही हफ्ते पहले निठारी कांड पर कोर्ट का फैसला आया और अजीबोगरीब आया,अमीर-गरीब के बीच फर्क करनेवाला आया। जिस मकान में कई दर्जन बच्चों के साथ बलात्कार किया गया और फिर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए आश्चर्यजनक तरीके से उस मकान के मालिक को सीबीआई और कोर्ट ने निर्दोष बताते हुए बरी कर दिया। आप ही बताईए कि क्या ऐसा संभव है कि कई सालों से मकान में अनवरत जारी बलात्कारों और हत्याओं के बारे में मकान मालिक पूरी तरह से अनभिज्ञ रहे और अगर पंढ़ेर को सबकुछ पता था तो उसने पकड़े जाने तक चुप्पी क्यों साधे रखी? क्या धनवान पंढ़ेर ने सीबीआई अधिकारियों को मोटी रकम देकर उनके ईमान को खरीद नहीं लिया था? क्या गरीब नौकर कोली अपनी गरीबी के कारण ऐसा नहीं कर पाने के कारण आज फाँसी की सजा का इंतजार नहीं कर रहा है?
मित्रों,जहाँ तक ललित बाबू की हत्या के मामले का सवाल है तो खुद स्वर्गीय ललित नारायण मिश्र के बेटे ने कल कोर्ट का फैसला आने पर कहा कि एक तो फैसला काफी देर से आया है और दूसरी बात यह है कि जिन लोगों को सजा दी गई है वे पूरी तरह से निर्दोष हैं। जहाँ तक मैं और मेरे इलाके के लोग जानते हैं कि बिहार विधान परिषद् के माननीय सदस्य विजय कुमार मिश्र एकदम सही कह रहे हैं। वास्तव में इस हत्याकांड की साजिश के पीछे तथ्य यह था कि जैसा कि तब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और ललित बाबू के अनुज डॉ. जगन्नाथ मिश्र जो खुद भी बम-विस्फोट में घायल हो गए थे,ने मित्रोखिन आर्चिव्स के आधार पर आरोप लगाया था कि चूँकि तत्कालीन रेल मंत्री ललित बाबू और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रूसी खुफिया एजेंसी केबीजी से रिश्वत ली थी इसलिए सबूत मिटाने के लिए कांग्रेस नेतृत्व और उनके बिगड़ैल बेटे ने ललित बाबू की हत्या करवा दी। हालाँकि बाद में जब जगन्नाथ मिश्र को इंदिरा ने बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया तो वे चुप लगा गए। 2 जनवरी और 3 जनवरी,1975 के घटनाक्रम को देखते हुए भी ऐसा ही लगता है कि श्री मिश्र की हत्या में सीधे प्रधानमंत्री का हाथ था। जहाँ बम-विस्फोट में घायल बाँकी लोगों को तत्काल दरभंगा मेडिकल क़ॉलेज अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया वहीं स्व. मिश्र के ईलाज में जानबूझकर रेलवे के अधिकारियों ने 10 घंटे की देरी की और उनको दानापुर रेलवे अस्पताल में भर्ती करवा दिया जबकि वहाँ अच्छे डॉक्टर नहीं थे।
मित्रों,बाद में बिहार पुलिस से मामले की जाँच को सीबीआई ने अपने हाथों में ले लिया और न जाने कहाँ से चार निर्दोष आनंदमार्गियों को पकड़कर आरोपी बना दिया। वह सीबीआई उस युग की सीबीआई थी जिस युग में कहा जाता था कि इंदिरा ईज इंडिया एंड इंडिया ईज इंदिरा। पहले निठारी और अब ललित बाबू हत्याकांड में जिस तरह से सीबीआई और अदालत ने संभावित निर्दोषों को सजा सुनाई है उससे सवाल उठता है कि अगर न्याय-प्रणाली को इसी तरह से काम करना है तो फिर भारत में पुलिस,सीबीआई और न्यायालयों की जरुरत ही क्या है? क्या हमारी अनुसंधान-एजेंसी और अदालतें रोजाना सैंकड़ों-हजारों निर्दोषों को इसी तरह से सजा नहीं सुना रही है?
मित्रों,जैसा कि पीएम मोदी बार-बार कह रहे हैं कि बेकार के कानुनों को समाप्त कर न्यायिक-प्रक्रिया को सरल बनाया जाएगा उसको ध्यान में रखते हुए क्या हमें यह उम्मीद रखनी चाहिए कि वर्तमान केंद्र सरकार यानि मोदी सरकार न्यायिक-प्रक्रिया को द्रुत और पारदर्शी बनाने की दिशा में कोई प्रभावी कदम उठाएगी? क्या कभी भारत की न्याय-प्रणाली गरीब-विरोधी के बजाए निष्पक्ष हो सकेगी या फिर आगे के मुख्य न्यायाधीश भी यह कहकर अपनी लाचारी व्यक्त करने को मजबूर होंगे कि भारत की न्याय-प्रणाली आज 22वीं सदी में भी गरीब-विरोधी या अमीरों की रखैल है?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,अभी कुछ ही हफ्ते पहले निठारी कांड पर कोर्ट का फैसला आया और अजीबोगरीब आया,अमीर-गरीब के बीच फर्क करनेवाला आया। जिस मकान में कई दर्जन बच्चों के साथ बलात्कार किया गया और फिर उनके टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए आश्चर्यजनक तरीके से उस मकान के मालिक को सीबीआई और कोर्ट ने निर्दोष बताते हुए बरी कर दिया। आप ही बताईए कि क्या ऐसा संभव है कि कई सालों से मकान में अनवरत जारी बलात्कारों और हत्याओं के बारे में मकान मालिक पूरी तरह से अनभिज्ञ रहे और अगर पंढ़ेर को सबकुछ पता था तो उसने पकड़े जाने तक चुप्पी क्यों साधे रखी? क्या धनवान पंढ़ेर ने सीबीआई अधिकारियों को मोटी रकम देकर उनके ईमान को खरीद नहीं लिया था? क्या गरीब नौकर कोली अपनी गरीबी के कारण ऐसा नहीं कर पाने के कारण आज फाँसी की सजा का इंतजार नहीं कर रहा है?
मित्रों,जहाँ तक ललित बाबू की हत्या के मामले का सवाल है तो खुद स्वर्गीय ललित नारायण मिश्र के बेटे ने कल कोर्ट का फैसला आने पर कहा कि एक तो फैसला काफी देर से आया है और दूसरी बात यह है कि जिन लोगों को सजा दी गई है वे पूरी तरह से निर्दोष हैं। जहाँ तक मैं और मेरे इलाके के लोग जानते हैं कि बिहार विधान परिषद् के माननीय सदस्य विजय कुमार मिश्र एकदम सही कह रहे हैं। वास्तव में इस हत्याकांड की साजिश के पीछे तथ्य यह था कि जैसा कि तब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और ललित बाबू के अनुज डॉ. जगन्नाथ मिश्र जो खुद भी बम-विस्फोट में घायल हो गए थे,ने मित्रोखिन आर्चिव्स के आधार पर आरोप लगाया था कि चूँकि तत्कालीन रेल मंत्री ललित बाबू और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रूसी खुफिया एजेंसी केबीजी से रिश्वत ली थी इसलिए सबूत मिटाने के लिए कांग्रेस नेतृत्व और उनके बिगड़ैल बेटे ने ललित बाबू की हत्या करवा दी। हालाँकि बाद में जब जगन्नाथ मिश्र को इंदिरा ने बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया तो वे चुप लगा गए। 2 जनवरी और 3 जनवरी,1975 के घटनाक्रम को देखते हुए भी ऐसा ही लगता है कि श्री मिश्र की हत्या में सीधे प्रधानमंत्री का हाथ था। जहाँ बम-विस्फोट में घायल बाँकी लोगों को तत्काल दरभंगा मेडिकल क़ॉलेज अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया वहीं स्व. मिश्र के ईलाज में जानबूझकर रेलवे के अधिकारियों ने 10 घंटे की देरी की और उनको दानापुर रेलवे अस्पताल में भर्ती करवा दिया जबकि वहाँ अच्छे डॉक्टर नहीं थे।
मित्रों,बाद में बिहार पुलिस से मामले की जाँच को सीबीआई ने अपने हाथों में ले लिया और न जाने कहाँ से चार निर्दोष आनंदमार्गियों को पकड़कर आरोपी बना दिया। वह सीबीआई उस युग की सीबीआई थी जिस युग में कहा जाता था कि इंदिरा ईज इंडिया एंड इंडिया ईज इंदिरा। पहले निठारी और अब ललित बाबू हत्याकांड में जिस तरह से सीबीआई और अदालत ने संभावित निर्दोषों को सजा सुनाई है उससे सवाल उठता है कि अगर न्याय-प्रणाली को इसी तरह से काम करना है तो फिर भारत में पुलिस,सीबीआई और न्यायालयों की जरुरत ही क्या है? क्या हमारी अनुसंधान-एजेंसी और अदालतें रोजाना सैंकड़ों-हजारों निर्दोषों को इसी तरह से सजा नहीं सुना रही है?
मित्रों,जैसा कि पीएम मोदी बार-बार कह रहे हैं कि बेकार के कानुनों को समाप्त कर न्यायिक-प्रक्रिया को सरल बनाया जाएगा उसको ध्यान में रखते हुए क्या हमें यह उम्मीद रखनी चाहिए कि वर्तमान केंद्र सरकार यानि मोदी सरकार न्यायिक-प्रक्रिया को द्रुत और पारदर्शी बनाने की दिशा में कोई प्रभावी कदम उठाएगी? क्या कभी भारत की न्याय-प्रणाली गरीब-विरोधी के बजाए निष्पक्ष हो सकेगी या फिर आगे के मुख्य न्यायाधीश भी यह कहकर अपनी लाचारी व्यक्त करने को मजबूर होंगे कि भारत की न्याय-प्रणाली आज 22वीं सदी में भी गरीब-विरोधी या अमीरों की रखैल है?
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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