मित्रों,केंद्र में मोदी सरकार कुछ ही दिनों में अपना एक साल पूरा करने
जा रही है। इस अवधि में सरकार ने कई उपलब्धियाँ प्राप्त कीं मगर सवाल उठता
है कि क्या वे उपलब्धियाँ जनता की आकांक्षाओं पर पूरी तरह से पूरा कर पाईँ
या कहीं-न-कहीं उम्मीद से कम रहीं। विदेशों में तो मोदी सरकार की खूब धूम
रही लेकिन देश में वही धूम देखने को क्यों नहीं मिल रही है? पहले दिल्ली
विधानसभा,फिर प. बंगाल निकाय चुनाव और अव यूपी के उपचुनावों में पार्टी का
प्रदर्शन क्यों शर्मनाक रहा? अगर इसी तरह से राज्यों में भाजपा का फ्लॉप शो
चलता रहेगा तो फिर कैसे पार्टी को राज्यसभा में बहुमत प्राप्त होगा?
मित्रों,इसका सीधा मतलब है कि मोदी सरकार जिस तरह उम्मीदों के पहाड़ चढ़कर सत्ता में आई थी उनको पूरा कर पाने में कहीं-न-कहीं कोई-न-कोई त्रुटि रह गई। यह त्रुटि नीतिगत स्तर पर तो है ही नीयत के स्तर पर भी है। हमने सरकार गठन के समय ही सरकार में दागियों को शामिल करने पर सवाल खड़े किए थे लेकिन तब कहा गया था कि इनके ऊपर कड़ा अंकुश रखा जाएगा। कोई भी संसदीय प्रणाली में कोई भी सरकार वास्तव में वन मैन शो बनकर अच्छा काम कर ही नहीं सकती। सरकार चलाना एक टीम वर्क था,है और रहेगा। इसलिए अच्छे प्रदर्शन के लिए अच्छी और योग्य लोगों की टीम का होना जरूरी है। नरेंद्र मोदी कोई सुपरमैन नहीं हैं कि अकेले सारे मंत्रालयों की फाइलें रोजाना चेक कर लेंगे और उन पर निर्णय भी ले लेंगे। इसलिए मंत्रालयों में ईमानदार,भरोसेमंद और कर्मठ मंत्रियों का होना जरूरी है। कुछ इसी तरह के प्रयोग बिहार में नीतीश कुमार ने भी किया था और लंबे समय तक एक साथ 18 विभागों के मंत्री रहे थे लेकिन परिणाम क्या हुआ यह सारी दुनिया जानती है।
मित्रों,इसलिए नरेंद्र मोदी जी को चाहिए कि वे अपने मंत्रिमंडल की समीक्षा करें और नकारा मंत्रियों को बाहर निकालकर वास्तव में जो लोग ईमानदार,कर्मठ और देशभक्त हैं उनको मंत्री बनाएँ। मोदी सरकार की दूसरी कमजोरी मेरे हिसाब से रही है भ्रष्टाचार के मामले में कड़क और जीरो टॉलरेंस की नीति का पालन नहीं कर पाना। यह सही है कि मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल में भ्रष्टाचार का कोई भी मामला सामने नहीं आया है लेकिन सच यह भी है कि अभी भी ईमानदार अधिकारियों को परेशान किया जा रहा है। अशोक खेमका को तो हरियाणा की भाजपा सरकार ने भी स्थानान्तरित कर दिया। अभी कल ही भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानेवाले कर्नाटक के वरिष्ठ आइएएस एमएन विजय कुमार को केंद्र सरकार की सहमति से राज्य सरकार ने जबरिया रिटायर कर दिया। इस तरह के कदमों से भ्रष्टाचार घटेगा नहीं बल्कि बढ़ेगा मोदी सरकार को यह समझना होगा। ईमानदार अधिकारियों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए न कि दंडित।
मित्रों,फिर,भ्रष्टाचार के मामले में भाजपाशासित पंजाब, छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश और राजस्थान में स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है। मोदी अपने इन क्षत्रपों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार पर कैसे अंकुश लगाएंगे अभी तक स्पष्ट नहीं है। मोदी कहते हैं कि सभी तरह की सब्सिडियों को सीधे लाभान्वितों के खातों में डाला जाएगा लेकिन ऐसा कब तक होगा कोई नहीं बताता। बैंक अधिकारी हों या प्रशासनिक अधिकारी बिना घूस लिए वे किसानों,छात्रों या अन्य ऋण के ईच्छुक लोगों का कोई काम नहीं करते हैं इस पर मोदी सरकार कैसे पूर्ण विराम लगाएगी? क्या ऋण देने की प्रक्रिया को ऑनलाईन नहीं किया जा सकता? सच्चाई तो यह है कि किसानों को केसीसी के जरिए मिलने वाले लाभ या सब्सिडी का एक बड़ा हिस्सा रिश्वत की भेंट चढ़ जाता है। इसी तरह आंगनबाड़ी,मध्याह्न भोजन योजना और मनरेगा के दी जानेवाली राशि का आधा से भी ज्यादा बड़ा हिस्सा मोदी सरकार के एक साल हो जाने के बाद भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। जनवितरण प्रणाली तो भ्रष्टाचार की नाली बनी हुई है ही। आज भी कोई युवा नए उद्यम स्थापित करने से घबराता है क्योंकि बिना रिश्वत लिए ऋण नहीं मिलता और अगर सब्सिडी है भी तो सरकारी सब्सिडी घूस देने में ही चली जाती है।
मित्रों,हमने मोदी सरकार के गठन के समय ही कहा था कि भारत की जनता को मोदी सरकार से कोशिश नहीं चाहिए बल्कि परिणाम चाहिए। कोशिशें जनता ने बहुत देख लीं और अब इंतजार की हद की भी हद हो चुकी है। सरकार काम करे,परिणाम दे और तेजी से परिणाम दे। यह सही है कि मोदी सरकार यह दिखाना चाहती है कि वो कालाधन को विदेशों से वापस लाने के लिए प्रयासरत है लेकिन जनता को प्रयास नहीं चाहिए बल्कि जनता तो यह जानना चाहती है कि पिछले एक साल में कितना कालाधन विदेश से भारत में वापस लाया गया? फिर भले हीं भारत के हर व्यक्ति के खाते में 15-पन्द्रह लाख रुपये डाले नहीं जाएँ या भले ही करदाताओं को कर देने से कुछ दिनों के लिए मुक्ति न मिले लेकिन देश के खजाने में तो पैसा वापस आए। साथ ही मोदीजी को और उनकी मंडली को यह भी समझ लेना होगा कि राजनीति में जुमले नहीं चलते इसलिए भाषण देते समय जुमलों से बचना चाहिए। इसी तरह मोदी सरकार के एक मंत्री जितेंद्र सिंह ने सरकार गठन के तत्काल बाद कहा कि धारा 370 पर पुनर्विचार किया जाएगा और अब कुछ ही दिन पहले वही मंत्री संसद में कहते हैं कि धारा 370 पर पुनर्विचार की सरकार की कोई योजना नहीं है। अगर यही करना था तो फिर सालभर पहले इस संबंध में सनसनीखेज बयान देने की क्या आवश्यकता थी? इसी तरह नरेंद्र मोदी ने खुद ही लोकसभा चुनावों के समय कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठी बोरिया-बिस्तर बांध लें लेकिन अब तक ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा। शायद यह भी एक वजह है कि भाजपा को नगरीय निकाय चुनावों में प. बंगाल में धूल चाटनी पड़ी है जबकि वह वहाँ सरकार गठन के सपने देखने लगी थी। इसी तरह सैनिकों और पूर्व सैनिकों को भी मोदी सरकार के एक साल पूरा कर लेने के बाद भी एक रैंक एक वेतन और पेंशन का इंतजार है।
मित्रों,मोदी सरकार का सबसे ज्यादा नुकसान पिछले एक साल में अगर किसी ने किया है तो वो लोग हैं मोदी के सबसे बड़े कथित हितचिंतक बड़बोले नेता। चाहे वो आदित्यनाथ हों या साक्षी महाराज या फिर गिरिराज सिंह या साध्वी निरंजना ये लोग रह-रहकर ऐसी भाषा का प्रयोग करते रहते हैं जिसको किसी भी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता। सरकार को चाहिए कि अपनी इस लगातार विषवमन करनेवाली मंडली की जुबान पर ताला लगाए फिर चाहे इसके लिए उनको कितने ही सेंटर फ्रेश क्यों न खिलाना पड़े। इसी तरह कई बार मोदी जी अपने इन हितचिंतकों की बकवास पर पूरी तरह से चुप्पी लगा जाते हैं वो भी कुछ इस तरह कि कई मर्तबा तो गुमाँ हो जाता है कि क्या अभी भी मनमोहन सिंह ही भारत के प्रधानमंत्री हैं?
मित्रों,एक गलती मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण बिल और कृषकों के मामले में भी की है। भूमि अधिग्रहण विधेयक के मामले को इतना लंबा खींचने की आवश्यकता ही नहीं थी। दोबारा अध्यादेश लाने की तो कतई जरुरत नहीं थी जबकि उसको पता है कि उसका राज्यसभा में बहुमत नहीं है। अब अगर विपक्ष ने विधेयक को फिर से राज्यसभा में पारित नहीं होने दिया तो क्या वो तीसरी बार अध्यादेश लाएगी? बल्कि सरकार को चाहिए था कि वो शुरू में ही संसद का संयुक्त सत्र बुलाती और विधेयक को पारित करवा लेती। सरकार की दूसरी विफलता यह है कि वो हताश-निऱाश हो चुके किसानों के मन में आशा का संचार नहीं कर पाई है। कृषि को अगर लाभकारी बनाना है तो उत्पादकता में क्रांतिकारी बढ़ोतरी करनी होगी ही साथ ही कृषि पर से जनसंख्या के भार को भी कम करना होगा और ऐसा तब तक संभव नहीं है जबतक कि देश में बड़े पैमाने पर छोटे-बड़े उद्योग-धंधों की स्थापना नहीं की जाती और उद्योग-धंधों की बड़े पैमाने पर तब तक स्थापना नहीं हो सकती जब तक कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को संभव न बना दिया जाए। वर्तमान कानून जो 2013 में बना था के तहत तो भूमि-अधिग्रहण कर पाना लगभग असंभव ही कर दिया गया है। मैं यह नहीं कहता कि जनता से जबर्दस्ती जमीन छीन ली जाए लेकिन स्थिति ऐसी भी नहीं हो कि विकास-कार्यों के लिए जमीन प्राप्त कर पाना नितांत असंभव ही हो जाए। मोदी सरकार को यह समझना होगा कि देश के युवा प्रतीक्षा कर पाने की स्थिति में कतई नहीं हैं इसलिए मेक इन इंडिया पर काम तेजी से और तुरंत होना चाहिए। बार-बार भूमि-अधिग्रहण अध्यादेश लाना सिर्फ समय की बर्बादी है और इसके अलावा और कुछ नहीं क्योंकि अब तक इस कानून को बन जाना चाहिए था और मेक इन इंडिया का काम पूरे जोर-शोर से शुरू हो जाना चाहिए था।
मित्रों,इसके साथ ही गांव-गांव में अनाज गोदामों,शीतभंडार गृहों की व्यवस्था भी करनी होगी और कृषि के क्षेत्र से बिचौलियों को समाप्त करना होगा तभी किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिल पाएगा और उपभोक्ताओं को भी महंगाई से स्थायी रूप से निजात मिलेगी। साथ ही अगर हो सके तो कृषि और कृषि संबंधी कार्यों में केंद्र सरकार के दखल को बढ़ाना होगा क्योंकि देखा जाता है राज्य सरकार के मातहत काम करनेवाला भ्रष्ट प्रशासन केंद्र सरकार के सद्प्रयासों को असफल कर देता है। आज ही यूपी में एक किसान की उस समय हृदयगति रूक जाने से लेखपाल के दरवाजे पर ही मौत हो गई जब उस प्राकृतिक आपदा के मारे किसान से लेखपाल ने मुआवजे का चेक देने के बदले रिश्वत की मांग कर दी।
मित्रों,इसी तरह से भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दत्तू साहब ने यह कह तो दिया है कि मुकदमों के निबटारे के लिए समय-सीमा का निर्धारण किया जाएगा लेकिन ऐसा तब तक संभव नहीं होगा जब तक राज्य सरकारें और केंद्र सरकार इस दिशा में सहयोग नहीं करतीं। अच्छा होता कि नया कानून बनाकर अधीनस्थ न्यायालयों में नियुक्ति को भी केंद्र या सर्वोच्च न्यायालय के जिम्मे कर दिया जाता। साथ ही न्यायालयों में जो प्रक्रियागत देरी होती है को भी रोकना होगा और प्रक्रिया को सरल करना होगा। इस दिशा में भी मोदी सरकार ने पिछले एक साल में कुछ नहीं किया है।
मित्रों,तीसरी बात कि मोदी जी बार-बार कौशल-विकास पर जोर दे रहे हैं लेकिन देश की सच्चाई क्या है? जब तक अवसर पैदा नहीं किया जाएगा तब तक कुशलता प्राप्त लोगों को योग्यतानुसार वेतन पर नौकरी मिलेगी कैसे? नरेंद्र मोदी बार-बार वैश्विक स्तर पर डॉक्टरों,इंजीनियरों की कमी का जिक्र करते हैं लेकिन हम तब तक दुनिया को अच्छे डॉक्टर और इंजीनियर नहीं दे सकते जब तक हम हमारी शिक्षा-प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन नहीं करें या फिर सरकारी शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण और विश्वस्तरीय न कर दें। हम भारत को तब तक विश्वगुरू नहीं बना सकते जब तक देश में शोध और अनुसंधान का माहौल नहीं बनेगा। क्या कारण है कि हमारे देश में नोबेल जीतने लायक वैज्ञानिक खोज नहीं हो पा रही है या विश्वस्तरीय शोध-अनुसंधान नहीं पा रहे हैं?
मित्रों,अंतिम बात यह कि मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी को राज्यों में गलत लोगों के साथ गठबंधन करने से बचना चाहिए था। भाजपा ने पहले महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ और बाद में जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन करके भयंकर गलती की है। शिवसेना बराबर बेलगाम बयान देती रहती है तो पीडीपी अलगाववादियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपना रही है जिससे भाजपा के साथ-साथ मोदी सरकार की भी फजीहत हो रही है। इससे तो अच्छा रहता कि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन ही रहता।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
मित्रों,इसका सीधा मतलब है कि मोदी सरकार जिस तरह उम्मीदों के पहाड़ चढ़कर सत्ता में आई थी उनको पूरा कर पाने में कहीं-न-कहीं कोई-न-कोई त्रुटि रह गई। यह त्रुटि नीतिगत स्तर पर तो है ही नीयत के स्तर पर भी है। हमने सरकार गठन के समय ही सरकार में दागियों को शामिल करने पर सवाल खड़े किए थे लेकिन तब कहा गया था कि इनके ऊपर कड़ा अंकुश रखा जाएगा। कोई भी संसदीय प्रणाली में कोई भी सरकार वास्तव में वन मैन शो बनकर अच्छा काम कर ही नहीं सकती। सरकार चलाना एक टीम वर्क था,है और रहेगा। इसलिए अच्छे प्रदर्शन के लिए अच्छी और योग्य लोगों की टीम का होना जरूरी है। नरेंद्र मोदी कोई सुपरमैन नहीं हैं कि अकेले सारे मंत्रालयों की फाइलें रोजाना चेक कर लेंगे और उन पर निर्णय भी ले लेंगे। इसलिए मंत्रालयों में ईमानदार,भरोसेमंद और कर्मठ मंत्रियों का होना जरूरी है। कुछ इसी तरह के प्रयोग बिहार में नीतीश कुमार ने भी किया था और लंबे समय तक एक साथ 18 विभागों के मंत्री रहे थे लेकिन परिणाम क्या हुआ यह सारी दुनिया जानती है।
मित्रों,इसलिए नरेंद्र मोदी जी को चाहिए कि वे अपने मंत्रिमंडल की समीक्षा करें और नकारा मंत्रियों को बाहर निकालकर वास्तव में जो लोग ईमानदार,कर्मठ और देशभक्त हैं उनको मंत्री बनाएँ। मोदी सरकार की दूसरी कमजोरी मेरे हिसाब से रही है भ्रष्टाचार के मामले में कड़क और जीरो टॉलरेंस की नीति का पालन नहीं कर पाना। यह सही है कि मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल में भ्रष्टाचार का कोई भी मामला सामने नहीं आया है लेकिन सच यह भी है कि अभी भी ईमानदार अधिकारियों को परेशान किया जा रहा है। अशोक खेमका को तो हरियाणा की भाजपा सरकार ने भी स्थानान्तरित कर दिया। अभी कल ही भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानेवाले कर्नाटक के वरिष्ठ आइएएस एमएन विजय कुमार को केंद्र सरकार की सहमति से राज्य सरकार ने जबरिया रिटायर कर दिया। इस तरह के कदमों से भ्रष्टाचार घटेगा नहीं बल्कि बढ़ेगा मोदी सरकार को यह समझना होगा। ईमानदार अधिकारियों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए न कि दंडित।
मित्रों,फिर,भ्रष्टाचार के मामले में भाजपाशासित पंजाब, छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश और राजस्थान में स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है। मोदी अपने इन क्षत्रपों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार पर कैसे अंकुश लगाएंगे अभी तक स्पष्ट नहीं है। मोदी कहते हैं कि सभी तरह की सब्सिडियों को सीधे लाभान्वितों के खातों में डाला जाएगा लेकिन ऐसा कब तक होगा कोई नहीं बताता। बैंक अधिकारी हों या प्रशासनिक अधिकारी बिना घूस लिए वे किसानों,छात्रों या अन्य ऋण के ईच्छुक लोगों का कोई काम नहीं करते हैं इस पर मोदी सरकार कैसे पूर्ण विराम लगाएगी? क्या ऋण देने की प्रक्रिया को ऑनलाईन नहीं किया जा सकता? सच्चाई तो यह है कि किसानों को केसीसी के जरिए मिलने वाले लाभ या सब्सिडी का एक बड़ा हिस्सा रिश्वत की भेंट चढ़ जाता है। इसी तरह आंगनबाड़ी,मध्याह्न भोजन योजना और मनरेगा के दी जानेवाली राशि का आधा से भी ज्यादा बड़ा हिस्सा मोदी सरकार के एक साल हो जाने के बाद भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। जनवितरण प्रणाली तो भ्रष्टाचार की नाली बनी हुई है ही। आज भी कोई युवा नए उद्यम स्थापित करने से घबराता है क्योंकि बिना रिश्वत लिए ऋण नहीं मिलता और अगर सब्सिडी है भी तो सरकारी सब्सिडी घूस देने में ही चली जाती है।
मित्रों,हमने मोदी सरकार के गठन के समय ही कहा था कि भारत की जनता को मोदी सरकार से कोशिश नहीं चाहिए बल्कि परिणाम चाहिए। कोशिशें जनता ने बहुत देख लीं और अब इंतजार की हद की भी हद हो चुकी है। सरकार काम करे,परिणाम दे और तेजी से परिणाम दे। यह सही है कि मोदी सरकार यह दिखाना चाहती है कि वो कालाधन को विदेशों से वापस लाने के लिए प्रयासरत है लेकिन जनता को प्रयास नहीं चाहिए बल्कि जनता तो यह जानना चाहती है कि पिछले एक साल में कितना कालाधन विदेश से भारत में वापस लाया गया? फिर भले हीं भारत के हर व्यक्ति के खाते में 15-पन्द्रह लाख रुपये डाले नहीं जाएँ या भले ही करदाताओं को कर देने से कुछ दिनों के लिए मुक्ति न मिले लेकिन देश के खजाने में तो पैसा वापस आए। साथ ही मोदीजी को और उनकी मंडली को यह भी समझ लेना होगा कि राजनीति में जुमले नहीं चलते इसलिए भाषण देते समय जुमलों से बचना चाहिए। इसी तरह मोदी सरकार के एक मंत्री जितेंद्र सिंह ने सरकार गठन के तत्काल बाद कहा कि धारा 370 पर पुनर्विचार किया जाएगा और अब कुछ ही दिन पहले वही मंत्री संसद में कहते हैं कि धारा 370 पर पुनर्विचार की सरकार की कोई योजना नहीं है। अगर यही करना था तो फिर सालभर पहले इस संबंध में सनसनीखेज बयान देने की क्या आवश्यकता थी? इसी तरह नरेंद्र मोदी ने खुद ही लोकसभा चुनावों के समय कहा था कि बांग्लादेशी घुसपैठी बोरिया-बिस्तर बांध लें लेकिन अब तक ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा। शायद यह भी एक वजह है कि भाजपा को नगरीय निकाय चुनावों में प. बंगाल में धूल चाटनी पड़ी है जबकि वह वहाँ सरकार गठन के सपने देखने लगी थी। इसी तरह सैनिकों और पूर्व सैनिकों को भी मोदी सरकार के एक साल पूरा कर लेने के बाद भी एक रैंक एक वेतन और पेंशन का इंतजार है।
मित्रों,मोदी सरकार का सबसे ज्यादा नुकसान पिछले एक साल में अगर किसी ने किया है तो वो लोग हैं मोदी के सबसे बड़े कथित हितचिंतक बड़बोले नेता। चाहे वो आदित्यनाथ हों या साक्षी महाराज या फिर गिरिराज सिंह या साध्वी निरंजना ये लोग रह-रहकर ऐसी भाषा का प्रयोग करते रहते हैं जिसको किसी भी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता। सरकार को चाहिए कि अपनी इस लगातार विषवमन करनेवाली मंडली की जुबान पर ताला लगाए फिर चाहे इसके लिए उनको कितने ही सेंटर फ्रेश क्यों न खिलाना पड़े। इसी तरह कई बार मोदी जी अपने इन हितचिंतकों की बकवास पर पूरी तरह से चुप्पी लगा जाते हैं वो भी कुछ इस तरह कि कई मर्तबा तो गुमाँ हो जाता है कि क्या अभी भी मनमोहन सिंह ही भारत के प्रधानमंत्री हैं?
मित्रों,एक गलती मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण बिल और कृषकों के मामले में भी की है। भूमि अधिग्रहण विधेयक के मामले को इतना लंबा खींचने की आवश्यकता ही नहीं थी। दोबारा अध्यादेश लाने की तो कतई जरुरत नहीं थी जबकि उसको पता है कि उसका राज्यसभा में बहुमत नहीं है। अब अगर विपक्ष ने विधेयक को फिर से राज्यसभा में पारित नहीं होने दिया तो क्या वो तीसरी बार अध्यादेश लाएगी? बल्कि सरकार को चाहिए था कि वो शुरू में ही संसद का संयुक्त सत्र बुलाती और विधेयक को पारित करवा लेती। सरकार की दूसरी विफलता यह है कि वो हताश-निऱाश हो चुके किसानों के मन में आशा का संचार नहीं कर पाई है। कृषि को अगर लाभकारी बनाना है तो उत्पादकता में क्रांतिकारी बढ़ोतरी करनी होगी ही साथ ही कृषि पर से जनसंख्या के भार को भी कम करना होगा और ऐसा तब तक संभव नहीं है जबतक कि देश में बड़े पैमाने पर छोटे-बड़े उद्योग-धंधों की स्थापना नहीं की जाती और उद्योग-धंधों की बड़े पैमाने पर तब तक स्थापना नहीं हो सकती जब तक कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को संभव न बना दिया जाए। वर्तमान कानून जो 2013 में बना था के तहत तो भूमि-अधिग्रहण कर पाना लगभग असंभव ही कर दिया गया है। मैं यह नहीं कहता कि जनता से जबर्दस्ती जमीन छीन ली जाए लेकिन स्थिति ऐसी भी नहीं हो कि विकास-कार्यों के लिए जमीन प्राप्त कर पाना नितांत असंभव ही हो जाए। मोदी सरकार को यह समझना होगा कि देश के युवा प्रतीक्षा कर पाने की स्थिति में कतई नहीं हैं इसलिए मेक इन इंडिया पर काम तेजी से और तुरंत होना चाहिए। बार-बार भूमि-अधिग्रहण अध्यादेश लाना सिर्फ समय की बर्बादी है और इसके अलावा और कुछ नहीं क्योंकि अब तक इस कानून को बन जाना चाहिए था और मेक इन इंडिया का काम पूरे जोर-शोर से शुरू हो जाना चाहिए था।
मित्रों,इसके साथ ही गांव-गांव में अनाज गोदामों,शीतभंडार गृहों की व्यवस्था भी करनी होगी और कृषि के क्षेत्र से बिचौलियों को समाप्त करना होगा तभी किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिल पाएगा और उपभोक्ताओं को भी महंगाई से स्थायी रूप से निजात मिलेगी। साथ ही अगर हो सके तो कृषि और कृषि संबंधी कार्यों में केंद्र सरकार के दखल को बढ़ाना होगा क्योंकि देखा जाता है राज्य सरकार के मातहत काम करनेवाला भ्रष्ट प्रशासन केंद्र सरकार के सद्प्रयासों को असफल कर देता है। आज ही यूपी में एक किसान की उस समय हृदयगति रूक जाने से लेखपाल के दरवाजे पर ही मौत हो गई जब उस प्राकृतिक आपदा के मारे किसान से लेखपाल ने मुआवजे का चेक देने के बदले रिश्वत की मांग कर दी।
मित्रों,इसी तरह से भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दत्तू साहब ने यह कह तो दिया है कि मुकदमों के निबटारे के लिए समय-सीमा का निर्धारण किया जाएगा लेकिन ऐसा तब तक संभव नहीं होगा जब तक राज्य सरकारें और केंद्र सरकार इस दिशा में सहयोग नहीं करतीं। अच्छा होता कि नया कानून बनाकर अधीनस्थ न्यायालयों में नियुक्ति को भी केंद्र या सर्वोच्च न्यायालय के जिम्मे कर दिया जाता। साथ ही न्यायालयों में जो प्रक्रियागत देरी होती है को भी रोकना होगा और प्रक्रिया को सरल करना होगा। इस दिशा में भी मोदी सरकार ने पिछले एक साल में कुछ नहीं किया है।
मित्रों,तीसरी बात कि मोदी जी बार-बार कौशल-विकास पर जोर दे रहे हैं लेकिन देश की सच्चाई क्या है? जब तक अवसर पैदा नहीं किया जाएगा तब तक कुशलता प्राप्त लोगों को योग्यतानुसार वेतन पर नौकरी मिलेगी कैसे? नरेंद्र मोदी बार-बार वैश्विक स्तर पर डॉक्टरों,इंजीनियरों की कमी का जिक्र करते हैं लेकिन हम तब तक दुनिया को अच्छे डॉक्टर और इंजीनियर नहीं दे सकते जब तक हम हमारी शिक्षा-प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन नहीं करें या फिर सरकारी शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण और विश्वस्तरीय न कर दें। हम भारत को तब तक विश्वगुरू नहीं बना सकते जब तक देश में शोध और अनुसंधान का माहौल नहीं बनेगा। क्या कारण है कि हमारे देश में नोबेल जीतने लायक वैज्ञानिक खोज नहीं हो पा रही है या विश्वस्तरीय शोध-अनुसंधान नहीं पा रहे हैं?
मित्रों,अंतिम बात यह कि मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी को राज्यों में गलत लोगों के साथ गठबंधन करने से बचना चाहिए था। भाजपा ने पहले महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ और बाद में जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन करके भयंकर गलती की है। शिवसेना बराबर बेलगाम बयान देती रहती है तो पीडीपी अलगाववादियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपना रही है जिससे भाजपा के साथ-साथ मोदी सरकार की भी फजीहत हो रही है। इससे तो अच्छा रहता कि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन ही रहता।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
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