हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इन दिनों बिहार में पैकेज-पैकेज का खेल
चल रहा है। तेरा पैकेज इतने का तो मेरा इतने का। मगर सवाल उठता है कि
पैकेज होता क्या है? क्या अपने घर में रखे पैसे को विभिन्न मदों में खर्च
करना पैकेज देना होता है या फिर पैकेज का मतलब है कहीं बाहर से पैसों की
प्राप्ति कर फिर उसको खर्च करना? जहाँ तक मैं समझता हूँ कि अपने दांयें हाथ
से पैसे उठाकर बांयें हाथ को दे देने को किसी भी तरह से पैकेज देना तो
नहीं ही कहा जाना चाहिए।
मित्रों,फिर भी अगर हम यह मान भी लें कि नीतीश कुमार जी ने बिहार के खजाने से बिहार के लोगों को 2 लाख करोड़ से ऊपर का पैकेज दे दिया तो क्या बिहार सरकार इस पैकेज तो तुरंत लागू करने जा रही है? इतिहास के आईने में अगर हम झाँकें तो पाते हैं कि 1942 में सर स्टेफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में क्रिप्स मिशन ने भारत का दौरा किया था। मिशन का कहना था कि हम भारत को डोमिनियन स्टेटस तो देंगे लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति व विजय-प्राप्ति के बाद। जाहिर है कि ब्रिटिश सरकार द्वितीय विश्वयुद्द में किसी भी तरह भारतीयों की सहायता चाहती थी। चूँकि प्रथम विश्वयुद्ध से पहले और के दौरान किए गए अपने वादों से ब्रिटिश सरकार युद्ध जीतने के बाद मुकर चुकी थी और उसका दमन-चक्र पहले से भी ज्यादा भीषण हो गया था इसलिए कांग्रेस ने अतीत से सीख लेते हुए क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव को पूरी तरह से नकार दिया। गांधी ने प्रस्ताव को पोस्ट डेटेड चेक की संज्ञा दी अर्थात् यह प्रस्ताव एक ऐसे बैंक चेक के समान है जिस पर वर्तमान की नहीं बल्कि भविष्य की तारीख डाली गई है और वह बैंक भी ध्वस्त हो जानेवाला है।
मित्रों,नीतीश कुमार जी का कथित पैकेज भी एक पोस्ट डेटेड चेक के समान है जिसको जनता तभी भुना पाएगी जब वो नीतीश कुमार जी की बातों पर भरोसा करके एक बार फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज कर देती है। अगर हम सन् 1942 के भारत से आज के बिहार की तुलना करें तो पाते हैं क्रिप्स मिशन यानि नीतीश सरकार बिहार के लोगों से कह रही है कि हमने जो-जो पिछली बार नहीं किया इस बार जरूर कर देंगे लेकिन पहले हमें जिताओ तो। तब तो भारत की जनता ने क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को सिरे से नकार दिया था तो क्या इस बार बिहार की जनता पोस्ट डेटेड चेक पर भरोसा कर लेगी? दूसरी ओर नरेंद्र मोदी के पैकेज पर अमल शुरू हो भी गया है।
मित्रों,अब हम जरा-सा विश्लेषण कर लेते हैं कथित पैकेज में निहित कथ्य का भी। वास्तव में यह पैकेज सिर्फ व्यय का पैकेज है इसमें आय की बात कहीं की ही नहीं गई है। पैकेज में यह तो कहा गया है हम यह फ्री देंगे,वह फ्री देंगे लेकिन कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि हम इतने उद्योग स्थापित करेंगे या बिहार की आय में इतने की वृद्धि करेंगे या फिर इतने लोगों को रोजगार देंगे। पूरी दुनिया जानती है कि बिहार के युवाओं को रोजगार चाहिए न कि फ्री की वाई-फाई,फ्री का बिजली-पानी। बिहार के युवाओं को बेरोजगारी भत्ता नहीं चाहिए बल्कि रोजगार चाहिए,औद्योगिकृत-विकसित बिहार चाहिए जिसमें वे स्वाभिमान के साथ अपने घर-परिवार के साथ एक अच्छी और स्तरीय जिंदगी जी सकें। वास्तव में जिस दिन ऐसा होगा उसी दिन से बिहार स्वाभिमान के साथ सिर उठाकर जी सकेगा। एक क्या हजारों स्वाभिमान रैलियों का आयोजन भी बिहार के प्राचीन और मध्यकालीन स्वाभिमान को पुनर्स्थापित नहीं कर सकती।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
मित्रों,फिर भी अगर हम यह मान भी लें कि नीतीश कुमार जी ने बिहार के खजाने से बिहार के लोगों को 2 लाख करोड़ से ऊपर का पैकेज दे दिया तो क्या बिहार सरकार इस पैकेज तो तुरंत लागू करने जा रही है? इतिहास के आईने में अगर हम झाँकें तो पाते हैं कि 1942 में सर स्टेफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में क्रिप्स मिशन ने भारत का दौरा किया था। मिशन का कहना था कि हम भारत को डोमिनियन स्टेटस तो देंगे लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति व विजय-प्राप्ति के बाद। जाहिर है कि ब्रिटिश सरकार द्वितीय विश्वयुद्द में किसी भी तरह भारतीयों की सहायता चाहती थी। चूँकि प्रथम विश्वयुद्ध से पहले और के दौरान किए गए अपने वादों से ब्रिटिश सरकार युद्ध जीतने के बाद मुकर चुकी थी और उसका दमन-चक्र पहले से भी ज्यादा भीषण हो गया था इसलिए कांग्रेस ने अतीत से सीख लेते हुए क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव को पूरी तरह से नकार दिया। गांधी ने प्रस्ताव को पोस्ट डेटेड चेक की संज्ञा दी अर्थात् यह प्रस्ताव एक ऐसे बैंक चेक के समान है जिस पर वर्तमान की नहीं बल्कि भविष्य की तारीख डाली गई है और वह बैंक भी ध्वस्त हो जानेवाला है।
मित्रों,नीतीश कुमार जी का कथित पैकेज भी एक पोस्ट डेटेड चेक के समान है जिसको जनता तभी भुना पाएगी जब वो नीतीश कुमार जी की बातों पर भरोसा करके एक बार फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज कर देती है। अगर हम सन् 1942 के भारत से आज के बिहार की तुलना करें तो पाते हैं क्रिप्स मिशन यानि नीतीश सरकार बिहार के लोगों से कह रही है कि हमने जो-जो पिछली बार नहीं किया इस बार जरूर कर देंगे लेकिन पहले हमें जिताओ तो। तब तो भारत की जनता ने क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को सिरे से नकार दिया था तो क्या इस बार बिहार की जनता पोस्ट डेटेड चेक पर भरोसा कर लेगी? दूसरी ओर नरेंद्र मोदी के पैकेज पर अमल शुरू हो भी गया है।
मित्रों,अब हम जरा-सा विश्लेषण कर लेते हैं कथित पैकेज में निहित कथ्य का भी। वास्तव में यह पैकेज सिर्फ व्यय का पैकेज है इसमें आय की बात कहीं की ही नहीं गई है। पैकेज में यह तो कहा गया है हम यह फ्री देंगे,वह फ्री देंगे लेकिन कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि हम इतने उद्योग स्थापित करेंगे या बिहार की आय में इतने की वृद्धि करेंगे या फिर इतने लोगों को रोजगार देंगे। पूरी दुनिया जानती है कि बिहार के युवाओं को रोजगार चाहिए न कि फ्री की वाई-फाई,फ्री का बिजली-पानी। बिहार के युवाओं को बेरोजगारी भत्ता नहीं चाहिए बल्कि रोजगार चाहिए,औद्योगिकृत-विकसित बिहार चाहिए जिसमें वे स्वाभिमान के साथ अपने घर-परिवार के साथ एक अच्छी और स्तरीय जिंदगी जी सकें। वास्तव में जिस दिन ऐसा होगा उसी दिन से बिहार स्वाभिमान के साथ सिर उठाकर जी सकेगा। एक क्या हजारों स्वाभिमान रैलियों का आयोजन भी बिहार के प्राचीन और मध्यकालीन स्वाभिमान को पुनर्स्थापित नहीं कर सकती।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
यह नेताओं द्वारा खेला जा रहा एक खेल है - इस में कुछ योगदान है श्री नितीश कुमार के नवजात मित्र केजरीवाल का । उन्हें आदत है अनाप शनाप घोषणाएँ करने की - वे पूरी हो सकती हैं या नहीं इसे देखने की उन्हें फुर्सत नहीं । पानी मुफ्त, बिजली मुफ्त, दंगा फसाद में मरने पर 35 लाख का अनुदान - नितीश तो सुलझे हुए व्यक्ती थे लेकिन कुर्सी पाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं ।
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