हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,जो पत्रकारिता स्वतंत्रता आंदोलन के समय मिशन थी आजकल पता नहीं क्या हो गई है और उसको सही-सही किस नाम या विशेषण द्वारा परिभाषित किया जा सकता है। शायद,इसमें से कुछेक के लिए प्रेस्टीच्यूट शब्द ही सबसे ज्यादा सही है यानि ऐसा मीडिया संस्थान जो वास्तव में वेश्याओं का कोठा है। ऐसा कोठा जहाँ पैसे देकर कुछ भी लिखवाया या दिखवाया जा सकता है।
मित्रों,अभी कुछ दिन पहले भारत के अग्रणी राष्ट्रीय चैनलों में से एक एबीपी न्यूज पर एक स्टोरी चलाई गई जिसका नाम था आपरेशन भूमिहार। देखकर मैं भी स्तब्ध था कि यह क्या दिखाया जा रहा है? मैं खुद भी बिहार के राजपूतों के एक दबंग गांव से आता हूँ जहाँ आज से 25-30 साल पहले बिना हमारी मर्जी के एक पत्ता भी नहीं हिलता था। लेकिन आज स्थितियां बदल चुकी हैं। आज हरिजन भी दुर्गा पूजा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं फिर वोट डालना तो एक छोटी बात है। कहीं कोई किसी को वोट डालने से नहीं रोकता और न ही किसी पार्टी विशेष को वोट देने के लिए दबाव ही डालता है। फिर एबीपी को कैसे ऐसे गांव मिल गए जहाँ कि कुछ जाति के लोगों ने आजादी के बाद से ही कभी मतदान नहीं किया है।
मित्रों,उस दिन स्टोरी को देखने से ही संदेह की स्थिति बन रही थी कि कहीं यह स्टोरी प्लांटेड तो नहीं है और किसी राजनैतिक दल विशेष के इशारे पर चुनाव को बैकवर्ड और फारवर्ड की लड़ाई साबित करने का कुत्सित प्रयास तो नहीं है? आज जब जहानाबाद के उन इलाकों में मतदान शुरू हुआ तो सच्चाई आईने के तरह साफ हो गई। जिन गांवों के बारे में एबीपी न्यूज में दावे किए गए थे वहाँ इस समय भारी मतदान हो रहा है और कहीं कोई रूकावट नहीं है। न्यूज चैनल की थेथरई तो देखिए कि यही चैनल आज चीख-चीख कर कह रहा है कि हमारे स्टोरी दिखाने का असर हुआ है और गैरभूमिहार जातियों को पर्याप्त सुरक्षा दी गई है जिसके कारण वहाँ के लोग आजादी के बाद पहली बार मतदान कर रहे हैं। यद्यपि आज मतदाताओं से संवाददाता यही पूछ रहे हैं कि आपको कोई रोक तो नहीं रहा है यह नहीं पूछ रहा कि आपने पहले भी वोट डाला था या नहीं।
मित्रों,दरअसल हुआ यह था कि पहले चरण के मतदान के बाद नवादा से खबर आई थी कि भाजपा समर्थकों को भाजपा को वोट देने के कारण राजद समर्थकों ने मारा-पीटा था। कदाचित् इस खबर की काट के लिए एबीपी चैनलवालों ने यह संदिग्ध स्टोरी चला दी। सवाल उठता है कि क्या उस खास इलाके में पहली बार चुनावों में कड़े सुरक्षा प्रबंध हुए हैं जिसके चलते लोग निर्भय होकर मतदान कर रहे हैं? क्या पहले के चुनावों में वहाँ कभी सुरक्षा-प्रबंध नहीं होता था? फिर सुरक्षा देनेवाले जवान तो वहाँ कुछ घंटों के लिए हैं अगर एक जाति का उस इलाके में इतना ही आतंक होता तो क्या वे मतदान कर पाते? क्योंकि उनके मन में यह भय होता कि सुरक्षा-बलों के जाने के बाद उनका क्या होगा? जाहिर है कि उनके मन में ऐसा कोई भय नहीं है तभी वे भारी संख्या में मतदान कर रहे हैं।
मित्रों,पता नहीं हमें शर्म क्यों नहीं आती? एक बार तो हम गलत स्टोरी चलाते हैं और फिर बेहयाई से उसका बचाव भी करते हैं। माना कि एबीपी न्यूज सहित कई मीडिया संस्थानों की विचारधारा एनडीए की विचारधारा से मेल नहीं खाती लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि झूठी सच्चाई रच दी जाए। हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को नियंत्रित करनेवाली संस्था से भी अनुरोध करेंगे कि इस मामले की गहराई से निष्पक्ष जाँच करवाई जाए जिससे यह पता चल सके कि न्यूज चैनल की ऐसी क्या मजबूरी थी कि उसने यह बेबुनियाद खबर चलाने की जुर्रत की और ऐन चुनाव के समय मतदाताओं को दिग्भ्रमित किया।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
मित्रों,अभी कुछ दिन पहले भारत के अग्रणी राष्ट्रीय चैनलों में से एक एबीपी न्यूज पर एक स्टोरी चलाई गई जिसका नाम था आपरेशन भूमिहार। देखकर मैं भी स्तब्ध था कि यह क्या दिखाया जा रहा है? मैं खुद भी बिहार के राजपूतों के एक दबंग गांव से आता हूँ जहाँ आज से 25-30 साल पहले बिना हमारी मर्जी के एक पत्ता भी नहीं हिलता था। लेकिन आज स्थितियां बदल चुकी हैं। आज हरिजन भी दुर्गा पूजा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं फिर वोट डालना तो एक छोटी बात है। कहीं कोई किसी को वोट डालने से नहीं रोकता और न ही किसी पार्टी विशेष को वोट देने के लिए दबाव ही डालता है। फिर एबीपी को कैसे ऐसे गांव मिल गए जहाँ कि कुछ जाति के लोगों ने आजादी के बाद से ही कभी मतदान नहीं किया है।
मित्रों,उस दिन स्टोरी को देखने से ही संदेह की स्थिति बन रही थी कि कहीं यह स्टोरी प्लांटेड तो नहीं है और किसी राजनैतिक दल विशेष के इशारे पर चुनाव को बैकवर्ड और फारवर्ड की लड़ाई साबित करने का कुत्सित प्रयास तो नहीं है? आज जब जहानाबाद के उन इलाकों में मतदान शुरू हुआ तो सच्चाई आईने के तरह साफ हो गई। जिन गांवों के बारे में एबीपी न्यूज में दावे किए गए थे वहाँ इस समय भारी मतदान हो रहा है और कहीं कोई रूकावट नहीं है। न्यूज चैनल की थेथरई तो देखिए कि यही चैनल आज चीख-चीख कर कह रहा है कि हमारे स्टोरी दिखाने का असर हुआ है और गैरभूमिहार जातियों को पर्याप्त सुरक्षा दी गई है जिसके कारण वहाँ के लोग आजादी के बाद पहली बार मतदान कर रहे हैं। यद्यपि आज मतदाताओं से संवाददाता यही पूछ रहे हैं कि आपको कोई रोक तो नहीं रहा है यह नहीं पूछ रहा कि आपने पहले भी वोट डाला था या नहीं।
मित्रों,दरअसल हुआ यह था कि पहले चरण के मतदान के बाद नवादा से खबर आई थी कि भाजपा समर्थकों को भाजपा को वोट देने के कारण राजद समर्थकों ने मारा-पीटा था। कदाचित् इस खबर की काट के लिए एबीपी चैनलवालों ने यह संदिग्ध स्टोरी चला दी। सवाल उठता है कि क्या उस खास इलाके में पहली बार चुनावों में कड़े सुरक्षा प्रबंध हुए हैं जिसके चलते लोग निर्भय होकर मतदान कर रहे हैं? क्या पहले के चुनावों में वहाँ कभी सुरक्षा-प्रबंध नहीं होता था? फिर सुरक्षा देनेवाले जवान तो वहाँ कुछ घंटों के लिए हैं अगर एक जाति का उस इलाके में इतना ही आतंक होता तो क्या वे मतदान कर पाते? क्योंकि उनके मन में यह भय होता कि सुरक्षा-बलों के जाने के बाद उनका क्या होगा? जाहिर है कि उनके मन में ऐसा कोई भय नहीं है तभी वे भारी संख्या में मतदान कर रहे हैं।
मित्रों,पता नहीं हमें शर्म क्यों नहीं आती? एक बार तो हम गलत स्टोरी चलाते हैं और फिर बेहयाई से उसका बचाव भी करते हैं। माना कि एबीपी न्यूज सहित कई मीडिया संस्थानों की विचारधारा एनडीए की विचारधारा से मेल नहीं खाती लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि झूठी सच्चाई रच दी जाए। हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को नियंत्रित करनेवाली संस्था से भी अनुरोध करेंगे कि इस मामले की गहराई से निष्पक्ष जाँच करवाई जाए जिससे यह पता चल सके कि न्यूज चैनल की ऐसी क्या मजबूरी थी कि उसने यह बेबुनियाद खबर चलाने की जुर्रत की और ऐन चुनाव के समय मतदाताओं को दिग्भ्रमित किया।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कॉल ड्राप पर मिलेगा हर्जाना - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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