सोमवार, 28 दिसंबर 2015

बिहार अपहरण औद्योगिक क्षेत्र में आपका स्वागत है


हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह।
वैधानिक चेतावनी:यह रचना कदापि एक व्यंग्य नहीं है।
मित्रों,आपने अबतक विभिन्न शहरों के औद्योगिक क्षेत्रों के नाम सुने होंगे। उनमें से कईयों में इस तरह के बोर्ड भी पढ़े होंगे कि हाजीपुर,बक्सर,पटना,मुजफ्फरपुर,वाराणसी,इंदौर,नोएडा,गाजियाबाद आदि औद्योगिक क्षेत्रों में आपका स्वागत है। मगर आपने आजतक किसी अपहरण औद्योगिक क्षेत्र का नाम नहीं सुना होगा,बोर्ड पढ़ने की बात तो दूर रही। पढ़िएगा भी कैसे यह उद्योग तो सिर्फ बिहार में पाया जाता है या फिर आईएसआईएस के ईलाके में। बिहार में भी सौभाग्यवश इसके फलने-फूलने लायक मौसम 10 साल के लंबे इंतजार के बाद आया है।
मित्रों,बिहार के हर जिले में फिर से यानि पूर्ववर्ती लालू-राबड़ी सरकार की तरह फिर से इस उद्योग की वृद्धि-दर सबसे तेज हो गई है। शायद 100 या 200 प्रतिशत की वृद्धि-दर। दुर्भाग्यवश बिहार सरकार के आंकड़ों में इस उद्योग का कहीं भी उल्लेख नहीं होता। बिहार के प्रत्येक जिले और शहर में एक बार फिर से अपहरण कंपनियाँ स्थापित हो गई हैं जिनका एक सीईओ होता है और कई दर्जन निदेशक। पहले फोन या मैसेज कर पार्टी से पैसे मांगे जाते हैं। फिर घर पर गोली चलाई जाती है या बम फेंका जाता है। अगर अपहरण करना संभव नहीं हुआ तो पार्टी को सीधे यमपुरी की सैर करवा दी जाती है वैसे ही जैसे कल-परसों दरभंगा में एक पथ निर्माण कंपनी के दो इंजीनियरों को करवा दी गई।
मित्रों,इस उद्योग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पूंजी न के बराबर लगती है। मशीन के नाम पर खर्च बहुत मामूली। बस कुछेक बंदूकों,पिस्तौलों,गाड़ियों,मोबाइलों और बमों का इंतजाम करना होता है। अगर आप एक विशेष सत्तारूढ़ जाति से हुए तो पुलिस का भी डर नहीं क्योंकि आपकी जाति का कोई-न-कोई नेता थोड़े-से पैसों के बदले आपकी मदद कर देगा। कभी-कभी तो एक कंपनी को माल (अपहृत) अपने पास रखने में खतरा लगे तो वो दूसरी कंपनी के हाथों उसे बेच भी देती है। कई बार पुलिस को भी सीधे तौर पर कारोबार में साझीदार बना लिया जाता है।
मित्रों,जैसे प्रत्येक उद्योग के कई सहायक उद्योग होते हैं वैसे इस महान उद्योग के भी हैं। इसका सबसे बड़ा सहायक उद्योग है-कुटीर कट्टा और बम निर्णाण उद्योग। इस उद्योग के विकास में कई बाधाएँ भी हैं। सबसे बड़ी बाधा है प्रशिक्षित लोगों का अभाव। इसे दूर करने के लिए सरकार को चाहिए कि वो राज्य के हर प्रखंड में प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने जहाँ गोलियाँ चलाने और उत्तम स्तर के देसी कट्टा बनाने और शालीनतापूर्वक अपहरण करने की ट्रेनिंग दी जाए। शालीनतापूर्वक अपहरण करने का सबसे बड़ा लाभ होगा कि दूसरे राज्यों और देशों के लोग भी बार-बार अपना अपहरण करवाने के लिए बिहार की यात्रा पर आएंगे जिससे पर्यटन को भारी बढ़ावा मिलेगा। इस उद्योग की तीव्र अभिवृद्धि में दूसरी सबसे बड़ी बाधा है बिजली। इसके लिए लालू-राबड़ी राज के बाद निष्क्रिय अवस्था में पड़े तरकट्टी गिरोह को सक्रिय करना होगा। वैसे भी अभी जाड़े का समय है जो तरकट्टी के लिए बहुत-ही माफिक है।
मित्रों,वैशाली जिले में इस उद्योग के महान पूर्व इतिहास को देखते हुए हम बिहार सरकार से विनती करेंगे कि राघोपुर में पक्का नदी पुल के निर्माण को अनंतकाल के लिए स्थगित कर दिया जाए। पिछले अनुभव से पता चलता है कि पीपा-पुल बनने से राघोपुर प्रखंड में गांजे की खेती को गहरा धक्का लगा।
मित्रों,इस समय इस महान् ऐतिहासिक उद्योग के पक्ष में सबसे अच्छी बात जो जा रही है वह यह है कि पिछले सालों में पैसे लेकर सरकार द्वारा पोस्टिंग करने के चलते राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति लगातार गिरती ही जा रही है। उदाहरणार्थ,पिछले साल वैशाली जिले के चांदपुरा ओपी थाने के खोरमपुर में मुन्ना सिंह नामक अति गरीब की हत्या हुई। हत्यारा धनवान था इसलिए पैसे लेकर गरीबों की सरकार की पुलिस कुछ इस तरह सोई कि आज तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। इसी तरह हाजीपुर नगर थाने के लोदीपुर चकवारा में दस दिन पहले राकेश नामक टेंपो चालक को मलद्वार में लाठी घुसाकर,हाथों में कीलें ठोंककर,करंट लगाकर पड़ोसी धनपतियों द्वारा मार दिया गया लेकिन सौभाग्यवश इस मामले में भी अभी तक गरीबों की सरकार की पुलिस ने कोई गिरफ्तारी नहीं की है और आगे भी ऐसा होने की कोई उम्मीद नहीं है।
मित्रों,मैं चाहता तो था कि इस आलेख को परिणति तक पहुँचाऊँ लेकिन मैं भी इंसान ही हूँ। स्वाभाविक है कि मुझे डर भी लगता है। आपसे भी एक विनती है कि किसी को भी नहीं बताईएगा कि मैंने अपहरण-उद्योग के महिमामंडम में कुछ लिखा है वरना खुद मेरा अपहरण होने का खतरा बढ़ जाएगा। वो क्या है कि इस उद्योग से जुड़े लोग विचित्र हैं विपक्ष में लिखनेवालों पर तो अपना गुस्सा उतारते ही हैं पक्ष में लिखनेवालों को भी नहीं छोड़ते क्योंकि ऐसे लेखों को वे गलती से व्यंग्य समझ लेते हैं भले ही हम कितनी ही वैधानिक चेतावनी क्यों न दे दें।

1 टिप्पणी:

  1. ठीक इसी उद्योग के सर उठाने की संभावना ही मेरी भी पहली आशंकाओं में से एक थी ब्रज भाई | अफ़सोस है कि देश के संचालन के लिए बनाई गयी प्रणालियाँ आज इतनी दूषित हो चुकी हैं कि उन्हें दुर्गन्ध युक्त करना भी संभव नहीं हो पा रहा है , जो भी है परिणाम तो अब भुगतना ही है ...प्रशासन घोड़े पर सवार होकर पहुँच रहा है

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