हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अगर आपने भारतेंदु साहित्य को पढ़ा होगा तो पाया होगा और कदाचित् पढ़ा भी होगा उनकी एक रचना को जिसका नाम है वैदिक हिंसा हिंसा न भवति। खैर ये तो बात हुई डेढ़ सौ साल पहले की लेकिन आज वोट बैंक और कुत्सित राजनीति की बदौलत इस श्लोक का स्वरूप बदल गया है और आजकल इस प्रसिद्ध श्लोक के उलट धर्मनिरपेक्ष हिंसा हिंसा न भवति वास्तविकता बन गई है।
मित्रों,आज भी चकरा गए होंगे कि हिंसा भी कहीं धर्मनिरपेक्ष और सांप्रदायिक होती है। परंतु सच्चाई यही है कि इस समय हिंसा भी भारत में दो प्रकार की हो गई है-एक जो हिंदू करें और दूसरी जो मुसलमान करें। जो हिंसा हिंदू करते हैं उसका आकार चाहे जितना छोटा हो,प्रभावित होनेवाले लोगों की संख्या चाहे जितनी कम हो वह हिंसा सांप्रदायिक हिंसा होती है और जो हिंसा मुसलमान करते हैं उससे चाहे हजारों लोग मारे जाएँ वह धर्मनिरपेक्ष होती है और जो हिंसा धर्मनिरपेक्ष हो वह हिंसा ही कैसे हो सकती है।
मित्रों,हमारी बिकाऊ मीडिया और धूर्त बुद्धिजीवियों का मानना है कि चाहे मुसलमान सैंकड़ों गोधरा कर डालें उनके खिलाफ किसी भी तरह के कदम नहीं उठाए जाने चाहिए। गोधरा की आगजनी,मानव-दहन धर्मनिरपेक्ष होता है। उस आग में जलनेवाले को दर्द नहीं होता, दर्द तो सिर्फ मुसलमानों को होता है। मुसलमान चाहें तो खुलेआम सड़कों पर गोहत्या करें क्योंकि वह हिंसा तो हिंसा होती ही नहीं है न। गाय भी अपने पूजक हिंदुओं की तरह सांप्रदायिक होती है इसलिए गाय के न तो खून होता है,न छटपटाहट और न ही दर्द। लेकिन कोई हजरत मोहम्मद के चरित्र के बारे में कुछ नहीं कह सकता भले ही वो सच्चाई पर आधारित हो,फैक्ट हो क्योंकि हजरत मोहम्मद मुसलमानों के पूज्य हैं और मुसलमान या उनके पूज्य तो गलती कर ही नहीं सकते क्योंकि वे तो एकजुट होकर वोट डालते हैं। लेकिन अगर कोई कला के नाम पर हिंदुओं के पूज्यों-पूजनीयों को अपमानित करता है ऐसा वो निर्भय होकर कर सकता है क्योंकि तब उसका कृत्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत माना जाएगा। क्या ऐसा इसलिए नहीं क्योंकि हिंदू एकजुट होकर वोट नहीं डालते??
मित्रों,प. बंगाल की मुख्यमंत्री का आँख मूंदकर मानना है कि मालदा में ढाई लाख मुसलमानों द्वारा हिंदुओं की संपत्ति के साथ की गई तोड़-फोड़ को सांप्रदायिक हिंसा नहीं कहा जाना चाहिए। तो फिर क्या कहा जाना चाहिए,धर्मनिरपेक्ष हिंसा??? हिंदुओं को जो नुकसान हुआ क्या वो नुकसान नहीं था,हिंदुओं ने जो खून-पसीना बहाकर धन कमाया क्या वो खून-पसीना खून-पसीना नहीं था? दादरी या कहीं भी एक मुसलमान की हत्या हो जाए तो वह धर्मनिरपेक्षता की हत्या होती है क्योंकि मुसलमान तो धर्मनिरपेक्ष होते हैं न। आज पूरी दुनिया मुसलमानों से परेशान है,जेहादी या फसादी हिंसा से परेशान है। अगर मुसलमान धर्मनिरपेक्ष होते तो ऐसा क्यों होता?? हम हिंदू गलत हो सकते हैं लेकिन क्या पूरी दुनिया के अन्य धर्मावलंबी भी गलत हैं? पूरी दुनिया गलत है? क्या एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में तलवार लेकर पूरी दुनिया में हिंसा का तूफान पैदा कर देना धर्मनिरपेक्षता है?? हमारे यहाँ कहावत है कि मरा घोड़ा घास नहीं खाता लेकिन कई मुसलमान मानते हैं कि वे निर्दोषों को मारने के क्रम में मरने के बाद स्वर्ग जाएंगे जहाँ उनको सुंदर लड़कों-लड़कियों के साथ सेक्स का आनंद लेने का अवसर मिलेगा। कई युवक तो यौनांगों पर लौह-कवच लगाकर मरना पसंद करते हैं। कितना मूर्खतापूर्ण विश्वास है!!! मरने के बाद क्या होता है किसने देखा है या जाना है? आप कहेंगे कि हिंदू भी तो मृत्योपरांत जीवन की बात करते हैं। जरूर करते हैं पुनर्जन्म की भी और स्वर्ग-नरक की भी। लेकिन सर्वोपरि हिंदू ग्रंथ गीता कहती है कि जैसा करोगे वैसा जरूर भरोगे और इसी जन्म में भरोगे। अगला जन्म भी होगा लेकिन वह जन्म आत्मा का होगा शरीर का नहीं इसलिए स्वर्ग में हूर या गिलमा मिलने का तो सवाल ही नहीं।
मित्रों,सांप्रदायिक हिंदुओं के ग्रंथ कहते हैं कि परोपकार से बड़ा कोई पुण्य नहीं है और परपीड़ा से बड़ा कोई पाप नहीं। हमारा कोई भी ग्रंथ यह नहीं कहता कि जो तुम्हारे धर्म को नहीं माने उसका गला रेत दो,उनकी स्त्रियों के साथ सामूहिक, नारकीय बलात्कार करो,उनको बेच दो और उनका मांस पकाकर खा जाओ। जो तुमसे भिन्न मत रखे उसे तड़पा-तड़पाकर मार डालो या जबरन हिंदू बना लो बल्कि वह तो कहता है कि मुंडे-मुंडे मति भिन्नाः।
मित्रों,अगर कोई धर्मग्रंथ या धर्म इस तरह के घोर पैशाचिक कुकर्मों का समर्थन करता है तो वह ईसानों का नहीं पिशाचों का धर्मग्रंथ है,धर्म है और उसको बदल देना चाहिए या फिर मिटा देना चाहिए। अमेरिका में तो इस बार का राष्ट्रपति चुनाव ही इस्लाम और इस्लामिक कट्टरता के मुद्दे पर होने जा रहा है। शायद ऐसा इसलिए क्योंकि बहुसंख्यक अमेरिकी जो ईसाई हैं एकजुट होकर मतदान करते हैं और उनके लिए देशहित ही सर्वोपरि है जाति-पाति या साईकिल राशि या छात्रवृत्ति या आरक्षण नहीं। कहने का तात्पर्य यह कि जबतक हिंदू बँटे रहेंगे तबतक क्षुद्र स्वार्थी नेताओं की नजरों में सांप्रदायिक बने रहेंगे और जिस दिन एकजुट हो जाएंगे उसी दिन से वे ममता-लालू-नीतीश-सोनिया-माया-मुलायम आदि के लिए धर्मनिरपेक्ष हो जाएंगे। तब कोई ममता बनर्जी हिंदू होते हुए भी निर्मम होकर यह नहीं कह सकेगी कि मालदा की हिंसा सांप्रदायिक हिंसा नहीं थी या लालू यादव यह नहीं कहेंगे गोधरा में ट्रेन में आग खुद कारसेवकों ने ही लगाई थी। उसी दिन से भारत में मुस्लिम तुष्टिकरण की राष्ट्रविरोधी,विनाशक नीति का अंत हो जाएगा और हमारे छद्म धर्मनिरपेक्ष नेता प्रत्येक समस्या और हर तरह की हिंसा का विश्लेषण भी सिर्फ और सिर्फ गुण-दोष के आधार पर करने लगेंगे। तब कोई नहीं कहेगा कि धर्मनिरपेक्ष हिंसा हिंसा न भवति बल्कि सब कहेंगे कि प्रत्येक हिंसा हिंसा भवति।
देश प्रेमी लेख हेतु ' मित्र आपको बधाई ।
जवाब देंहटाएंSeetamni. blogspot. in
आपका बहुत-2 धन्यवाद मित्र।
जवाब देंहटाएंअब सनातन धर्म की रक्षा मात्र भगवान ही कर सकते हैँ। असम, बंगाल, काश्मीर गोधरा व मालदा जैसी परिस्थिति को देखकर भी यदि हिन्दू एकता नहीँ हुई तो अब क्या आशा की जाय!
जवाब देंहटाएं