रविवार, 14 फ़रवरी 2016

क्या नीतीश विपक्षविहीन बिहार का निर्माण कर रहे हैं?


हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,जैसी कि हमने 8 नवंबर को मतों की गिनती के दिन ही अपने आलेख में भविष्यवाणी की थी कि अब बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति इतनी बुरी होनेवाली है कि लोग लालू-राबड़ी राज यानि जंगलराज को भी भूल जाएंगे। यूँ तो नई सरकार के शपथ-ग्रहण करने के पहले से ही राज्य में अपराधियों का तांडव शुरू हो गया था लेकिन अब जो हो रहा है वह अगर यूँ ही चलता रहा तो निकट भविष्य में बहुत जल्दी ही बिहार विपक्षविहीन हो जाएगा क्योंकि सारे विपक्षी नेताओं की हत्या करवा दी जाएगी,कर दी जाएगी।
मित्रों,लोकतंत्र में विपक्ष का भी अपना महत्त्व होता है। विपक्ष सत्ता पक्ष को निरंकुश होने से रोकता है लेकिन लगता है कि लंबे समय तक विपक्ष की राजनीति कर चुके लालू-नीतीश को बिहार में विपक्ष चाहिए ही नहीं। तभी तो सत्ता पक्ष द्वारा कदाचित पृष्ठपोषित अपराधी एक के बाद एक विपक्षी नेताओं की हत्या करते जा रहे हैं। आश्चर्य का विषय तो यह है कि राघोपुर में 1995 से ही लालू-राबड़ी परिवार के खिलाफ लगातार चुनाव लड़नेवाले बृजनाथी सिंह की राजधानी पटना में एके-47 से सरेआम दिनदहाड़े हत्या कर दी जाती है और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव जो अभी राघोपुर से विधायक भी हैं बयान देते हैं कि लोजपा में अपराधियों की भरमार है। सवाल उठता है कि अपराधी किस पार्टी में नहीं हैं? सवाल यह भी उठता है कि जो राजनेता सीधे-सीधे अपराधी नहीं हैं क्या वे बेड़ा-मौका काम आने के लिए अपराधियों का लालन-पालन नहीं करते? आखिर ऐसे कौन-से लोग बृजनाथी सिंह की हत्या के पीछे थे कि हत्या के दस दिन बाद भी पुलिस ने कोई गिरफ्तारी नहीं की है और अंधेरे में ही तलवार भाँज रही है? क्या यह हत्या सीधे-सीधे बिहार के उपमुख्यमंत्री ने करवाई है? उपमुख्यमंत्री ने हत्या के बाद जिस तरह की प्रतिक्रिया दी है उससे तो यह शक और भी पुख्ता हो जाता है।
मित्रों,इतना ही नहीं पिछले 48 घंटों में एनडीए के दो और ऐसे नेताओं की हत्या 'अज्ञात' अपराधियों द्वारा कर दी गई है जिन्होंने पिछले दिनों संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में महागठबंधन के खिलाफ चुनाव लड़ा था। इनमें से एक तो मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष भी थे और एक समय लालू के हनुमान रहे शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल के खिलाफ चुनाव लड़े थे। इनकी हत्या के बाद भी राहुल तिवारी की प्रतिक्रिया ठीक वैसी ही रही जैसी कि बृजनाथी सिंह की हत्या के बाद बिहार के उपमुख्यमंत्री की थी। इन श्रीमान् का कहना था कि मरनेवाले की पृष्ठभूमि को भी देखना चाहिए। तो क्या सत्तापक्ष ने इस तरीके से बिहार को अपराधमुक्त बनाने का निर्णय लिया है? क्या कोई शरीफ या बिना राजनैतिक पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति बिहार में चुनाव जीत सकता है? क्या राहुल तिवारी के पिताजी या खुद राहुल तिवारी ने शाहपुर विधानसभा क्षेत्र में बड़ी संख्या में अपराधियों को प्रश्रय नहीं दे रखा है? अपराधियों का पालन ठीक लेकिन अपराधियों का चुनाव लड़ना गलत यह कौन-सा नैतिक सिद्धांत है?
मित्रों,मैं पूछता हूँ कि क्या नीतीश कुमार या तेजस्वी यह बताएंगे कि ये दोनों हत्याएँ किसने की और पुलिस उनको कब तक गिरफ्तार कर लेगी? या फिर उन्होंने बिहार के अपराधियों को विपक्षी नेताओं का आखेट करने की खुली छूट दे दी है जैसी छूट भारतीयों को मारने की कभी अंग्रेजों को प्राप्त थी या फिर जैसी कि राज्य में नीलगायों के बारे में हाल में दी गई है? अगर ऐसा है तो मुबारक हो भारतीय लोकतंत्र को न्याय के साथ विकास! और वर्ष 2020 के विधानसभा चुनावों में सभी सीटों पर निर्विरोध जीत के लिए महागठबंधन को अग्रिम बधाई! आज मैं बिहार की महान जनता को कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि जब उसने विकास और विनाश में से विनाश का पथ प्रचंड बहुमत से चुना है तो फिर राज्य का विनाश ही होगा। बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय!

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