रविवार, 27 मार्च 2016

डॉ. नारंग की हत्या के सबक


मित्रों,हमने कई महीने पहले एक आलेख में लिखा था कि भारत की भ्रष्ट मीडिया के लिए सांप्रदायिक हिंसा तभी होती है जब मरनेवाला मुसलमान और मारनेवाला हिंदू होता है। इसके उलट जब हिंदू को मुसलमान मारता है तो धर्मनिरपेक्ष हिंसा सांप्रदायिक हिंसा न भवति। जब एक केंद्रशासित प्रदेश का अघोषित देशद्रोही मुख्यमंत्री 250 करोड़ सालाना मीडिया में बाँटेगा तो फिर बिकाऊ वेश्या मीडिया की नीयत तो खराब होगी ही।
मित्रों,लेकिन सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति आई ही क्यों? क्यों आज कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उनकी भजभज मंडली मीडिया की नजर में हिंदुओं की जान की कोई कीमत नहीं है जबकि हिंदुओं की आबादी 80 प्रतिशत है? क्या इसके लिए स्वयं हिंदू भी या हिंदू ही जिम्मेदार नहीं हैं? एक बेवजह के विवाद में कुछ दर्जन लोग आते हैं और एक प्रतिष्ठित व्यक्ति की हत्या करके चले जाते हैं। जब डॉक्टर की हत्या हो रही थी तब उसके पड़ोसी कहाँ थे? क्यों कोई डॉक्टर को बचाने के लिए घर से बाहर नहीं निकला?
मित्रों,यह एक कटु सच्चाई है कि आज हिंदू अपने घर में हथियार नहीं रखता। अगर घर में कोई साँप भी घुस आए तो उसको मारने के लिए घर में लाठी तक नहीं होती। अहिंसा परमो धर्मः के सिद्धांत ने हिंदुओं को निर्बल बना कर रख दिया है। लेकिन इसी श्लोक में आगे यह भी कहा गया है कि धर्म हिंसा तथैव च अर्थात अहिंसा परम धर्म है परन्तु हिंसा का, धर्म के अनुसार प्रतिकार करना भी उतना ही परम धर्म है। मैं यह नहीं कहता कि हिंदुओं को कानून का उल्लंघन करके अवैध हथियार रखने चाहिए लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि 50 लाख की संपत्ति अर्जित कर ली और उसकी रक्षा के लिए 50 हजार का लाइसेंसी हथियार भी नहीं खरीदा और सरकार के भरोसे पड़े हैं। यह तो फिर दैव दैव आलसी पुकारा सदृश बात हो गई जिसकी बात सवा सौ साल पहले भारतीयों के लिए भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भारत दुर्दशा में की थी।
मित्रों,यह कटु सच्चाई है कि सरकार चाहे किसी की भी हो वो तो वोट बैंक देखकर ही काम करेगी और हिंदू वोट बैंक तो हैं नहीं। हिंदू तो जाट हैं,दलित है,क्षत्रिय हैं,ब्राह्मण हैं,कोयरी हैं,कुर्मी हैं,दलित हैं,यादव आदि आदि आदि हैं लेकिन हिंदू नहीं हैं। इससे भी आगे हिंदू लालची हैं जो साल में कुछ सौ रुपये के मुफ्त के बिजली-पानी के लिए अपना वोट देश के दुश्मनों से मिलीभगत रखनेवाले तत्त्वों को भी दे देते हैं। क्या कारण है कि जो अरविंद केजरीवाल दादरी और हैदराबाद जाने में तनिक भी देरी नहीं लगाता वही अपने ही राज्य में कथित असांप्रदायिक गुंडों द्वारा निहायत निर्दोष की बेवजह हत्या हो जाने पर अपने घर से 5 किमी दूर जहाँ कि वो एक घंटे में पैदल भी जा सकता है जाने की जहमत भी नहीं उठाता?
मित्रों,आज एक भाजपा को छोड़कर कोई भी दल ऐसा नहीं है जो राष्ट्रीय स्तर पर खुलकर हिंदू हितों की बात करता हो जबकि ऐसे दलों की एक लंबी सूची है जो मुसलमानों के सही-गलत सारे कृत्यों का पृष्ठपोषण करते हैं और दिन-रात मुसलमान-मुसलमान की रट लगाए रहते हैं। आगे कई राज्यों में चुनाव होनेवाले हैं लेकिन ऐसा लगता नहीं कि एक नारंग की हत्या हो जाने से पूरा हिंदू समाज अखिल भारतीय स्तर पर जागृत और एकजुट हो जाएगा। सतर्क रहिए,सावधान रहिए क्योंकि हो सकता है दुर्घटनावश डॉ. नारंग के बाद आपकी ही बारी आ जाए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें