मित्रों, मेरे एक मौसा थे। नाम था नवलकिशोर सिंह। फारबिसगंज में ठेकेदारी करते थे। बड़े ठेकेदार थे इसलिए उनके दरवाजे पर अक्सर लोगों का जमघट लगा रहता था। उनका एक नौकर था विशु। मौसा अक्सर विशु को घर से चाय बनवाकर लाने को कहते और जब तक वो आंगन में दाखिल भी नहीं हुआ होता कि आवाज लगाते विशु चाय लेकर आओ। कुछ ऐसी ही व्यग्रता की बीमारी हमारे देशवासियों को भी लग गई है। वे भी भूल गए हैं कि शीघ्रता को भी समय चाहिए।
मित्रों,भूलने से याद आया कि आपकी याद्दाश्त मुझसे तो जरूर अच्छी होगी क्योंकि अपने घर में मैं महाभुलक्कड़ के रूप में जाना जाता हूँ। जब भी बाजार से 4 चीजें लाने के लिए कहा जाता है तो शर्तिया मैं 2 चीजें ही लाता हूँ। तो मैं कह रहा था कि क्या आपको याद है कि दो साल पहले जब आपने मोदी सरकार के हाथों में देश की कमान दी थी तब क्यों दी थी और तब देश की हालत क्या थी?
मित्रों,आपको याद होगा कि तब घोटाले रोजाना की बात हो गए थे और उनमें से कुछ तो अब जाकर उजागर हो रहे हैं। आपको याद होगा कि नेवी के जहाजों और पनडुब्बियों का डूबना भी तब रोज-रोज का कार्यक्रम हो गया था। बिजलीघरों में कोयला नहीं था और सेना के पास गोला-बारूद। भारत की अर्थव्यवस्था भी ध्वस्त होने के कगार पर थी। देश के विकास को न केवल लूट-खसोट द्वारा व जानबूझकर अवरूद्ध कर दिया गया था बल्कि देश रिवर्स गियर में जाने लगा था। चीन हमें चारों तरफ से घेर रहा था और हमारी तत्कालीन केंद्र सरकार मौन समर्थन देने का कार्य कर रही थी। केंद्र सरकार अपने कार्यों और नीतियों के द्वारा बहुसंख्यक हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना डालने पर आमादा थी। मानो हिंदू होना ही अपराध हो। पूर्वोत्तर और माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में भारत विरोधी शक्तियों का मनोबल इस कदर बढ़ गया था कि लगने लगा था कि सचमुच भारत तेरे टुकड़े होंगे हजार।
मित्रों,कुल मिलाकर भारत को एक असफल राष्ट्र बना दिया गया था। हमारा प्राणों से भी प्यारा देश कई तरह के असाध्य रोगों से पीड़ित 21वीं सदी के एशिया का मरीज बन चुका था। अंधकार के ऐसे ही विकराल क्षणों में नरेंद्र मोदी उम्मीद की सतरंगी किरण बनकर हमारे सामने प्रकट हुए। उनके ओजस्वी भाषणों और गुजरात में उनके द्वारा किए गए कल्पनातीत विकास-कार्यों को देखते हुए आपने-हमने उन पर अपना विश्वास व्यक्त किया।
मित्रों,यह सही है कि किसी भी सरकार के लिए 2 साल कम नहीं होते लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि किस स्थिति में उनके हाथों में बागडोर सौंपी गई थी। आखिर असाध्य रोगी को ठीक करने और क्षयरोगी से महाबली बनाने में समय तो लगता ही है। इस सरकार ने बीमार को फिर से स्वस्थ बनाते हुए विदेशी पूंजी निवेश,ऊर्जा और आधारभूत संरचना के विकास के क्षेत्र में तो लाजवाब काम किया ही है विदेश नीति के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। सरकारी मिशनरी को त्वरित बनाने के लिए कई दर्जन आलसी अफसरों को घर बैठा दिया गया है। भ्रष्टाचार-नियंत्रण के क्षेत्र में भी विशेष काम हुआ है। डीबीटीएल के माध्यम से हजारों करोड़ रुपये तो बचाए ही गए हैं साथ ही विपक्ष भी परेशान है क्योंकि वह पिछले 2 सालों में सरकार पर 1 पैसे के घोटाले के भी आरोप नहीं लगा पाया है। मुद्दाविहीन विपक्ष कभी पीएम मोदी के सूट की बात करता है तो कभी टोपी की तो कभी पगड़ी की तो भी डिग्री की।
मित्रों,इसमें कोई संदेह नहीं कि अभी थोड़ा-सा ही काम हुआ है और काफी कुछ होना बाँकी है लेकिन फिर भी सिर्फ इसी कारण से हम सरकार की नीयत पर संदेह नहीं कर सकते फिर अभी तो सरकार के पास हमारे दिए हुए तीन साल का समय भी बचा हुआ है। हमें पूरा विश्वास है कि बचे हुए तीन सालों में बैंकिंग,कृषि,शिक्षा,कालाधन,स्वास्थ्य,पुलिस,महँगाई,रोजगार-निर्माण आदि के क्षेत्र में प्रभावकारी और युगांतरकारी कार्य होंगे। मेरे विचार से कृषि को लाभकारी बनाने की दिशा में काम करना सबसे ज्यादा जरूरी है क्योंकि हमारा अन्नदाता उत्पादन के घटने और ज्यादा होने दोनों की दशाओं में मारा जा रहा है। अभी-अभी महाराष्ट्र से आई एक खबर ने पूरे भारत तो झकझोर कर रख दिया है कि वहाँ के एक किसान ने एक टन प्याज बेचा तो उसे उसके बदले में मात्र 1 रुपया मिला। इस स्थिति को बदलना ही होगा क्योंकि पिछली सरकारों के शुतुरमुर्गी रवैये का ही यह नतीजा है कि आज हमारे किसानों के समक्ष जीने का कोई रास्ता शेष नहीं बचा है। अकेले महाराष्ट्र के नासिक जिले के लासलगांव में ही जनवरी 2015 से अब तक 26 प्याज-उत्पादक किसान आत्महत्या कर चुके हैं। साथ ही हम चाहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कानून बने जिससे राज्य सरकार के नाकारा और भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों की भी छँटनी की जा सके।
मित्रों,जब हम तीनों लोकों में जमकर घोटाले करनेवाले चोर-लुटेरों को लगातार 2 बार चुन सकते हैं तो फिर हम एक स्वच्छ,देशभक्त और ईमानदार सरकार को क्यों उसके अधिकार के 3 और साल नहीं देना चाहते? एक 66 साल का बूढ़ा आखिर हमारे लिए,हमारे देश और हमारे जीवन को बदलने के लिए ही तो साल के तीन सौ पैंसठो दिन दिन और रात के 20-20 घंटे लगातार अनथक परिश्रम कर रहा है। आपको याद है कि पहले कभी इतिहास में भारत एफडीआई के मामले में दुनिया का सिरमौर बना था? यहाँ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 2014 में भारत सूची में 5वें स्थान पर था। क्या पहले कभी भारत मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में दुनिया में छठे स्थान पर आया था? चीन और पाकिस्तान को छोड़ ईरान समेत पूरी दुनिया ने क्या कभी इस तरह भारत को हाथोंहाथ लिया था? क्या पहले कभी भारत विकास दर के मामले में दुनिया में नंबर 1 हुआ था? यह उसी लौहमानव की मेहनत और अनुशासन का तो परिणाम है कि इतिहास में पहली बार दुनिया की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका भारत-पाकिस्तान को एक ही तराजू पर तोलने की बजाए खुलकर भारत का समर्थन कर रहा है। क्या पाकिस्तान और चीन भारत से और भ्रष्टाचारी तत्त्व केंद्र सरकार से कभी इतने भयभीत थे जितने कि आजकल हैं? क्या ये इस बात के संकेत नहीं हैं कि भारत न केवल बदल रहा है बल्कि दुनिया को बदलने की क्षमता भी हासिल कर रहा है। वो भी धीरे-धीरे नहीं बिजली की गति से।
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