मित्रों,पता नहीं आपकी नजर में अच्छे दिनों की क्या परिभाषा है? मैं यह भी नहीं जानता कि वर्तमान केंद्र सरकार की अच्छे दिनों की परिभाषा क्या है लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूँ कि जब तक सुखद परिणाम नंगी आँखों से दृष्टिगोचर न होने लगे हम यह नहीं कह सकते कि अच्छे दिन आ गए हैं। दुर्भाग्यवश कई क्षेत्रों में जिनमें से खेल भी एक है संघ सरकार ने अब तक ऐसी कोई पहल ही नहीं की है जिससे कि हम सीना ठोंककर कह सकें कि भले ही वर्तमान परिदृश्य निराशाजनक हो भविष्य उज्ज्वल होने जा रहा है।
मित्रों,मुझे तो तभी रियो ओलंपिक में भारत के घटिया प्रदर्शन का आभास हो गया था जब नरसिंह यादव प्रकरण सामने आया। आश्चर्य है कि जिस खिलाड़ी से देश को सबसे ज्यादा उम्मीद थी उसी के खिलाफ देश में ही,प्रशिक्षण केंद्र में ही साजिश रच दी गई। सरकार को चाहिए कि वो पता लगाए कि नरसिंह यादव के भोजन में प्रतिबंधित दवा मिलाने के पीछे किन-किन बड़े-छोटे लोगों का हाथ था और उनको दंडित करे। और न केवल दंडित करे बल्कि उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाए।
मित्रों,मैं पहले भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से निवेदन कर चुका हूँ कि सरकार चलाना वन मैन वर्क नहीं है बल्कि टीम वर्क है। फिर भी वे न जाने क्यों हमारी बातें सुन ही नहीं रहे हैं। उन्होंने न जाने क्या सोंचकर अपने मंत्रिमंडल में ऐसे नमूनों को थोक में इकट्ठा कर रखा है जो मंत्री तो क्या संतरी बनने के लायक भी नहीं हैं। अब अपने खेल मंत्री विजय गोयल जी को ही ले लीजिए। श्रीमान् का विवादों से जन्मजात का नाता रहा है। श्रीमान् 40 अधिकारियों की भारी-भरकम टीम लेकर रियो पहुँचे थे। क्या अंतर है सुरेश कलमाडी और विजय गोयल में? कलमाडी भी चमचों के काफिले के साथ जाते थे गोयल भी गए। उस पर तुर्रा यह कि गोयल साब ने वहाँ भी आयोजकों से झगड़ा कर विवाद खड़ा कर दिया ठीक उसी तरह से जैसे कुछ साल पहले शाहरूख खान ने आईपीएल में किया था। श्रीमान् जी खिलाड़ियों का हौंसला बढ़ाने गए थे कि आयोजकों पर अपना रोबदाब दिखाने? आश्चर्य तो इस बात का भी है कि श्रीमान् जी को विश्वप्रसिद्ध भारतीय खिलाड़ियों के नाम भी पता नहीं हैं। शायद उनके लिए खिलाड़ी उसी तरह से सब्जेक्ट मात्र हैं जिस तरह से मुन्ना भाई एमबीबीएस में डॉक्टरों और प्रोफेसरों के लिए मरीज थे। तो क्या गोयल सचमुच करेंगे खेलों में भारत की कायापलट?
मित्रों,मुझे कभी-कभी लगता है कि मोदी सरकार भी वोटबैंक की सस्ती व टुच्ची राजनीति पर उतर आई है। एक मंत्री इस जाति से ले लिया तो एक उससे। वो भी बिना यह देखे कि व्यक्ति मंत्री पद के योग्य है या नहीं। बिना विचार किए कि मंत्री स्थिति को बिगाड़ेगा या संवारेगा। मोदी जी को भले ही भ्रम हो लेकिन मुझे तो कभी इस बात को लेकर भ्रम नहीं रहा कि श्रीमान् विजय गोयल जी खेलमंत्री बनने लायक बिल्कुल भी नहीं हैं।
मित्रों,भारत का खेल मंत्री तो ऐसा होना चाहिए जो पारंपरिक तरीके से सोंचे ही नहीं। खिलाड़ियों को चयनित कर तैयार करने का काम चीन-रूस-अमेरिका की तरह बचपन में ही शुरू हो जाना चाहिए। खिलाड़ियों को हर कदम पर पर्याप्त सरकारी सहायता और सहयोग मिलना चाहिए। जिस दिन हमें यह सुनने को नहीं मिलेगा कि कोई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी ठेला खींच रहा है या कुली का काम कर रहा है उसी दिन हम समझेंगे कि भारत में खेलों के अच्छे दिन आ गए हैं। तब भारत का नाम पदक तालिका में खुर्दबीन लेकर खोजना नहीं पड़ेगा बल्कि दूर से ही सबसे ऊपर दिखाई देगा। इसके लिए पर्याप्त धन खर्च करना पड़ेगा और सही तरीके से व सही जगह पर खर्च करना पड़ेगा। सरकारें जितनी रकम जीतने के बाद खिलाड़ियों को देती हैं उतनी पहले खर्च कर दे तो स्वर्ण पदक क्या खिलाड़ी सोने की खान ले आएंगे। परंपरागत सोंच वाले किसी विजय गोयल से यह काम एक तो क्या सात जन्मों में भी नहीं होने वाला।
मित्रों,मैं समझता हूँ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को वोटबैंक की राजनीति का पूरी तरह से परित्याग कर अमेरिका की तरह सिर्फ विभिन्न क्षेत्रों के योग्य लोगों को मंत्री बनाना चाहिए। और न केवल बनाना चाहिए बल्कि उनको काम करने की छूट भी देनी चाहिए। मगध में भले ही विचारों की कमी थी वर्तमान भारत में न तो विचारों की कमी है न ही विचारकों की। विश्व के सबसे महान लोकतंत्र अमेरिका की तरह सोंचने से ही भारत अमेरिका की तरह बन पाएगा और सचमुच में सवा सौ करोड़ भारतीयों और भारत के अच्छे दिन आएंगे। न केवल खेल में बल्कि प्रत्येक क्षेत्र में। अब केवल अपने मन की बात करने से काम नहीं चलेगा श्रीमान् प्रधानमंत्री जी बल्कि आपको जनता के मन की बात भी सुननी होगी। अभी नहीं सुनिएगा तो 2019 में तो सुनिएगा ही। तब तो सुनना पड़ेगा ही। जनता अंधी नहीं है कि आपकी आकाशवाणी पर कही गई बात को सचमुच की आकाशवाणी मान लेगी और मान लेगी कि ओलंपिक में भले ही देश ने पिछली बार से खराब प्रदर्शन किया हो भारत के अच्छे दिन आ गए हैं। मान लेगी कि रोजगार,शिक्षा,सार्वजनिक स्वास्थ्य,कृषि आदि-आदि के क्षेत्र में भले ही स्थिति पहले से और भी ज्यादा खराब हो गई हो लेकिन अच्छे दिन तो आ ही गए हैं। इस तरह से अच्छे दिन उत्तरी कोरिया में आ सकते हैं भारत में तो कदापि नहीं।
मित्रों,मुझे तो तभी रियो ओलंपिक में भारत के घटिया प्रदर्शन का आभास हो गया था जब नरसिंह यादव प्रकरण सामने आया। आश्चर्य है कि जिस खिलाड़ी से देश को सबसे ज्यादा उम्मीद थी उसी के खिलाफ देश में ही,प्रशिक्षण केंद्र में ही साजिश रच दी गई। सरकार को चाहिए कि वो पता लगाए कि नरसिंह यादव के भोजन में प्रतिबंधित दवा मिलाने के पीछे किन-किन बड़े-छोटे लोगों का हाथ था और उनको दंडित करे। और न केवल दंडित करे बल्कि उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाए।
मित्रों,मैं पहले भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से निवेदन कर चुका हूँ कि सरकार चलाना वन मैन वर्क नहीं है बल्कि टीम वर्क है। फिर भी वे न जाने क्यों हमारी बातें सुन ही नहीं रहे हैं। उन्होंने न जाने क्या सोंचकर अपने मंत्रिमंडल में ऐसे नमूनों को थोक में इकट्ठा कर रखा है जो मंत्री तो क्या संतरी बनने के लायक भी नहीं हैं। अब अपने खेल मंत्री विजय गोयल जी को ही ले लीजिए। श्रीमान् का विवादों से जन्मजात का नाता रहा है। श्रीमान् 40 अधिकारियों की भारी-भरकम टीम लेकर रियो पहुँचे थे। क्या अंतर है सुरेश कलमाडी और विजय गोयल में? कलमाडी भी चमचों के काफिले के साथ जाते थे गोयल भी गए। उस पर तुर्रा यह कि गोयल साब ने वहाँ भी आयोजकों से झगड़ा कर विवाद खड़ा कर दिया ठीक उसी तरह से जैसे कुछ साल पहले शाहरूख खान ने आईपीएल में किया था। श्रीमान् जी खिलाड़ियों का हौंसला बढ़ाने गए थे कि आयोजकों पर अपना रोबदाब दिखाने? आश्चर्य तो इस बात का भी है कि श्रीमान् जी को विश्वप्रसिद्ध भारतीय खिलाड़ियों के नाम भी पता नहीं हैं। शायद उनके लिए खिलाड़ी उसी तरह से सब्जेक्ट मात्र हैं जिस तरह से मुन्ना भाई एमबीबीएस में डॉक्टरों और प्रोफेसरों के लिए मरीज थे। तो क्या गोयल सचमुच करेंगे खेलों में भारत की कायापलट?
मित्रों,मुझे कभी-कभी लगता है कि मोदी सरकार भी वोटबैंक की सस्ती व टुच्ची राजनीति पर उतर आई है। एक मंत्री इस जाति से ले लिया तो एक उससे। वो भी बिना यह देखे कि व्यक्ति मंत्री पद के योग्य है या नहीं। बिना विचार किए कि मंत्री स्थिति को बिगाड़ेगा या संवारेगा। मोदी जी को भले ही भ्रम हो लेकिन मुझे तो कभी इस बात को लेकर भ्रम नहीं रहा कि श्रीमान् विजय गोयल जी खेलमंत्री बनने लायक बिल्कुल भी नहीं हैं।
मित्रों,भारत का खेल मंत्री तो ऐसा होना चाहिए जो पारंपरिक तरीके से सोंचे ही नहीं। खिलाड़ियों को चयनित कर तैयार करने का काम चीन-रूस-अमेरिका की तरह बचपन में ही शुरू हो जाना चाहिए। खिलाड़ियों को हर कदम पर पर्याप्त सरकारी सहायता और सहयोग मिलना चाहिए। जिस दिन हमें यह सुनने को नहीं मिलेगा कि कोई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी ठेला खींच रहा है या कुली का काम कर रहा है उसी दिन हम समझेंगे कि भारत में खेलों के अच्छे दिन आ गए हैं। तब भारत का नाम पदक तालिका में खुर्दबीन लेकर खोजना नहीं पड़ेगा बल्कि दूर से ही सबसे ऊपर दिखाई देगा। इसके लिए पर्याप्त धन खर्च करना पड़ेगा और सही तरीके से व सही जगह पर खर्च करना पड़ेगा। सरकारें जितनी रकम जीतने के बाद खिलाड़ियों को देती हैं उतनी पहले खर्च कर दे तो स्वर्ण पदक क्या खिलाड़ी सोने की खान ले आएंगे। परंपरागत सोंच वाले किसी विजय गोयल से यह काम एक तो क्या सात जन्मों में भी नहीं होने वाला।
मित्रों,मैं समझता हूँ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को वोटबैंक की राजनीति का पूरी तरह से परित्याग कर अमेरिका की तरह सिर्फ विभिन्न क्षेत्रों के योग्य लोगों को मंत्री बनाना चाहिए। और न केवल बनाना चाहिए बल्कि उनको काम करने की छूट भी देनी चाहिए। मगध में भले ही विचारों की कमी थी वर्तमान भारत में न तो विचारों की कमी है न ही विचारकों की। विश्व के सबसे महान लोकतंत्र अमेरिका की तरह सोंचने से ही भारत अमेरिका की तरह बन पाएगा और सचमुच में सवा सौ करोड़ भारतीयों और भारत के अच्छे दिन आएंगे। न केवल खेल में बल्कि प्रत्येक क्षेत्र में। अब केवल अपने मन की बात करने से काम नहीं चलेगा श्रीमान् प्रधानमंत्री जी बल्कि आपको जनता के मन की बात भी सुननी होगी। अभी नहीं सुनिएगा तो 2019 में तो सुनिएगा ही। तब तो सुनना पड़ेगा ही। जनता अंधी नहीं है कि आपकी आकाशवाणी पर कही गई बात को सचमुच की आकाशवाणी मान लेगी और मान लेगी कि ओलंपिक में भले ही देश ने पिछली बार से खराब प्रदर्शन किया हो भारत के अच्छे दिन आ गए हैं। मान लेगी कि रोजगार,शिक्षा,सार्वजनिक स्वास्थ्य,कृषि आदि-आदि के क्षेत्र में भले ही स्थिति पहले से और भी ज्यादा खराब हो गई हो लेकिन अच्छे दिन तो आ ही गए हैं। इस तरह से अच्छे दिन उत्तरी कोरिया में आ सकते हैं भारत में तो कदापि नहीं।
बिलकुल सही आलोचना
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