मित्रों,जुबान की महिमा अपम्पार है। यही जुबान पान की खिलवाती है और यही लात भी। शायद इसलिए भगवान ने इंसान को छोटी जुबान दी है ताकि वो कम बोले और जो भी बोले सोंच-समझकर बोले। लेकिन कुछ लोग हैं कि मानते ही नहीं। बड़बोलों के वर्ल्ड चैंपियन केजरीवाल सर इन दिनों बंगलुरू में अपनी जुबान छोटी करवा रहे हैं। उनकी जीभ की सर्जरी का उनको और हमारे देश को कितना फायदा होता है यह तो तभी पता चलेगा जब वे वहाँ से वापस आ जाएंगे। परंतु अपने देश में तो प्रत्येक मामले में एक ढूंढ़ो हजार मिलते हैं वाली स्थिति है। यहाँ हम किस-किस का नाम लें समझ में नहीं आता क्योंकि एक का नाम लेने पर हजारों के नाराज हो जाने का खतरा है कि हमारा नाम क्यों नहीं लिया।
मित्रों,शायर कफील आजर ने कहा है कि बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी लेकिन कुछ लोग हैं कि इन पंक्तियों में अंतर्निहित मर्म को समझने को तैयार ही नहीं हैं और बार-बार कुछ-न-कुछ ऐसा बोलते रहते हैं कि जिससे खुद उनके साथ-साथ देश को भी नुकसान होता है। अब अपने नितिन गडकरी को ही लें। आपको याद होगा कि जब बिहार विधानसभा का चुनाव-प्रचार चल रहा था तब शाह भाईसाब ने कहा था कि कालेधन पर लोकसभा चुनावों के समय पीएम ने जो कुछ भी वादा किया था वो तो चुनावी जुमला था और फिर बिहार में भाजपा तो हारी ही बिहार का भी बंटाधार हो गया। एक गलतबयानी से आज बिहार में फिर से खूनी-दरिंदों का राज कायम हो चुका है।
मित्रों,यूपी में चुनाव सिर पर है और गडकरी अनाप-शनाप बोल रहे हैं। उन्होंने यह कहकर प्रधानमंत्री की सारी अनथक मेहनत पर ही पानी फेर दिया है कि अच्छे दिन कभी नहीं आते। उनका यह भी कहना है कि अच्छे दिनवाला बयान तो मनमोहन ने दिया था भाजपा ने दिया ही नहीं। जबकि सच्चाई यह है जब 2014 का लोकसभा का चुनाव-प्रचार चल रहा था तब दिन-रात रेडियो-टीवी पर भाजपा का यही प्रचार-गीत बचता रहता था कि अब अच्छे दिन आनेवाले हैं। जब बेचना था तब तो भाजपा ने सपनों को बेचा और अब वो कैसे कह सकती है हमने जो सपने दिखाए थे वो सपने तो सपने थे और चूँकि सपने तो सपने होते हैं इसलिए लोग उनको भूल जाएँ?
मित्रों,अच्छे दिन के वादे में तो सबकुछ समाहित होता है तो क्या केंद्र सरकार में वरिष्ठ मंत्री गडकरी के बयान के बाद यह मान लिया जाए कि मोदी सरकार ने हार मान ली है और मान लिया है कि उनसे कुछ भी नहीं होनेवाला, जैसे चल रहा था सबकुछ वैसे ही चलता रहेगा? या फिर यह मान लिया जाए कि हर बड़े चुनाव के पहले गडकरी जानबूझकर ऐसे बयान देते हैं जिससे नरेंद्र मोदी कमजोर हों? तो क्या नरेंद्र मोदी इतने कमजोर हैं कि अपने मंत्रियों तक पर भी लगाम नहीं रख सकते? ऐसा इसलिए भी मानना पड़ेगा क्योंकि केजरीवाल की तरह गडकरी को गले की कोई बीमारी है ऐसा अबतक तो सुनने में नहीं आया।
मित्रों,शायर कफील आजर ने कहा है कि बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी लेकिन कुछ लोग हैं कि इन पंक्तियों में अंतर्निहित मर्म को समझने को तैयार ही नहीं हैं और बार-बार कुछ-न-कुछ ऐसा बोलते रहते हैं कि जिससे खुद उनके साथ-साथ देश को भी नुकसान होता है। अब अपने नितिन गडकरी को ही लें। आपको याद होगा कि जब बिहार विधानसभा का चुनाव-प्रचार चल रहा था तब शाह भाईसाब ने कहा था कि कालेधन पर लोकसभा चुनावों के समय पीएम ने जो कुछ भी वादा किया था वो तो चुनावी जुमला था और फिर बिहार में भाजपा तो हारी ही बिहार का भी बंटाधार हो गया। एक गलतबयानी से आज बिहार में फिर से खूनी-दरिंदों का राज कायम हो चुका है।
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मित्रों,अच्छे दिन के वादे में तो सबकुछ समाहित होता है तो क्या केंद्र सरकार में वरिष्ठ मंत्री गडकरी के बयान के बाद यह मान लिया जाए कि मोदी सरकार ने हार मान ली है और मान लिया है कि उनसे कुछ भी नहीं होनेवाला, जैसे चल रहा था सबकुछ वैसे ही चलता रहेगा? या फिर यह मान लिया जाए कि हर बड़े चुनाव के पहले गडकरी जानबूझकर ऐसे बयान देते हैं जिससे नरेंद्र मोदी कमजोर हों? तो क्या नरेंद्र मोदी इतने कमजोर हैं कि अपने मंत्रियों तक पर भी लगाम नहीं रख सकते? ऐसा इसलिए भी मानना पड़ेगा क्योंकि केजरीवाल की तरह गडकरी को गले की कोई बीमारी है ऐसा अबतक तो सुनने में नहीं आया।
एसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए ।
जवाब देंहटाएंSeetamni. blogspot. in
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