मित्रों, हमारे पूर्वजों ने जो आजादी की लडाई के समय गर्व से सीना चौड़ा करके कहते थे कि मैं कांग्रेसी हूँ कभी सपने में भी नहीं सोंचा होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब कांग्रेस देशविरोधी आतंकवादियों की पार्टी बन जाएगी. क्या विडंबना है कि पाकिस्तान में जब भारत का सबसे बड़ा घोषित शत्रु आतंकी संगठन जमात उद दावा का संस्थापक हाफिज सईद चुनाव लडेगा तब लडेगा भारत में तो कांग्रेस पार्टी कई दशकों से न केवल चुनाव लडती आ रही है बल्कि देश पर अधिकांश समय राज भी किया है.
मित्रों, आतंकी सिर्फ वही नहीं होता जो फसाद करता है और निर्दोषों की हत्या करता है बल्कि वो भी आतंकी है जो उनको आर्थिक या नैतिक समर्थन देता है. हाफिज सईद अगर आतंकी है तो उससे सहानुभूति रखनेवाला हर व्यक्ति और हर संगठन आतंकी है. मौलाना मसूद अजहर अगर आतंकी है तो उसको लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो करनेवाला चीन भी आतंकी है. चीन और पाकिस्तान तो फिर भी हमारे जानी दुश्मन है लेकिन यह समझ में नहीं आता कि स्वर्णिम इतिहास वाली कांग्रेस पार्टी कैसे भारतविरोधी आतंकियों से सहानुभूति रख सकती है. क्या उसको अब भारत में राजनीति नहीं करनी है? पाकिस्तान से चुनाव लड़ना है?
मित्रों, क्या कारण है जब भी किसी आतंकी का मुकदमा कोर्ट में जाता है तो कांग्रेसी वकीलों की फ़ौज उनके बचाव में खड़ी हो जाती है? कपिल सिब्बल का सोनिया और राहुल गाँधी के लिए वकालत करना तो समझ में आता है लेकिन सिमी, याकूब मेनन , कन्हैया, ख़ालिद उमर के लिए उनका व अन्य कांग्रसियों का कोर्ट में पैरवी करना समझ में नहीं आता. यहाँ तक कि तीन तलाक और राम मंदिर के मुद्दे पर भी सिब्बल कट्टरपंथी मुस्लिमों के पक्ष में खड़े होने से नहीं चूकते। यहाँ तक कि जब पाकिस्तान की अदालत हाफिज सईद को रिहा करती है तो कांग्रेस के होनेवाले महाराज राहुल गाँधी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता. वे इसके लिए पाकिस्तान की आलोचना करने और भारत सरकार के साथ मिलकर एकजुटता दिखाने के बदले उसका मजाक उड़ाने लगते हैं वो भी निहायत फूहड़ शब्दों में कि मोदी जी आपको ट्रम्प से और गले मिलना होगा हाफिज बाहर आ गया है. हद तो यह है कि कश्मीर में कांग्रेस का साझीदार फारूख अब्दुल्ला इन दिनों लगातार भारत के खिलाफ बोल रहा है फिर भी कांग्रेस चुप लगाए हुए है जैसे वो उसके ही मन की बात बोल रहा हो. सैयद अली शाह गिलानी के साथ कांग्रेसी नेताओं के कितने मधुर सम्बन्ध हैं यह हमलोग कई बार समाचार चैनलों पर देख चुके हैं.
मित्रों, कांग्रेस इतने पर ही रूक जाती तो फिर भी गनीमत थी जब चीन और भारत की सेना डोकलाम में आमने-सामने थी तब राहुल जा पहुंचे चीनी दूतावास में चीन के राजदूत से गले मिलने और कदाचित उनको यह बताने कि चढ़ बैठो भारत पर मैं तुम्हारे साथ हूँ. सिर्फ ऊपर के नेताओं तक बात थम जाती तो फिर भी गनीमत थी आज स्थिति इतनी बुरी हो गई है कि कांग्रेस के जिला और प्रखंड स्तर के कार्यकर्त्ता लश्कर के आतंकी निकल रहे हैं. जिस नोटबंदी के चलते कश्मीर में आतंकवाद में कमी आई है कांग्रेस अभी भी उसकी आलोचना किए जा रही है. समझ में नहीं आता कि अगर कश्मीर में आतंकवाद में कमी आती है तो इससे कांग्रेस को कैसी हानि हो रही है? क्या आपने कभी कांग्रेस को कश्मीर में होनेवाली किसी आतंकी घटना की निंदा करते हुए देखा है? आपको यह जानकर घोर आश्चर्य होगा कि हिज्बुल चीफ सैयद सलाऊद्दीन १९८७ में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुका है. आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि जब केंद्र में मनमोहन और कश्मीर में छोटे अब्दुल्ला की सरकार थी तब सीआरपीएफ़ के जवानों को कश्मीर में बिना हथियार के ड्यूटी करने के लिए बाध्य किया गया था. इतना ही नहीं आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने पर सेना के अधिकारियों को जेल जाना पड़ता था और कई तो अभी भी जेल में हैं.
मित्रों, आतंकी सिर्फ वही नहीं होता जो फसाद करता है और निर्दोषों की हत्या करता है बल्कि वो भी आतंकी है जो उनको आर्थिक या नैतिक समर्थन देता है. हाफिज सईद अगर आतंकी है तो उससे सहानुभूति रखनेवाला हर व्यक्ति और हर संगठन आतंकी है. मौलाना मसूद अजहर अगर आतंकी है तो उसको लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो करनेवाला चीन भी आतंकी है. चीन और पाकिस्तान तो फिर भी हमारे जानी दुश्मन है लेकिन यह समझ में नहीं आता कि स्वर्णिम इतिहास वाली कांग्रेस पार्टी कैसे भारतविरोधी आतंकियों से सहानुभूति रख सकती है. क्या उसको अब भारत में राजनीति नहीं करनी है? पाकिस्तान से चुनाव लड़ना है?
मित्रों, क्या कारण है जब भी किसी आतंकी का मुकदमा कोर्ट में जाता है तो कांग्रेसी वकीलों की फ़ौज उनके बचाव में खड़ी हो जाती है? कपिल सिब्बल का सोनिया और राहुल गाँधी के लिए वकालत करना तो समझ में आता है लेकिन सिमी, याकूब मेनन , कन्हैया, ख़ालिद उमर के लिए उनका व अन्य कांग्रसियों का कोर्ट में पैरवी करना समझ में नहीं आता. यहाँ तक कि तीन तलाक और राम मंदिर के मुद्दे पर भी सिब्बल कट्टरपंथी मुस्लिमों के पक्ष में खड़े होने से नहीं चूकते। यहाँ तक कि जब पाकिस्तान की अदालत हाफिज सईद को रिहा करती है तो कांग्रेस के होनेवाले महाराज राहुल गाँधी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता. वे इसके लिए पाकिस्तान की आलोचना करने और भारत सरकार के साथ मिलकर एकजुटता दिखाने के बदले उसका मजाक उड़ाने लगते हैं वो भी निहायत फूहड़ शब्दों में कि मोदी जी आपको ट्रम्प से और गले मिलना होगा हाफिज बाहर आ गया है. हद तो यह है कि कश्मीर में कांग्रेस का साझीदार फारूख अब्दुल्ला इन दिनों लगातार भारत के खिलाफ बोल रहा है फिर भी कांग्रेस चुप लगाए हुए है जैसे वो उसके ही मन की बात बोल रहा हो. सैयद अली शाह गिलानी के साथ कांग्रेसी नेताओं के कितने मधुर सम्बन्ध हैं यह हमलोग कई बार समाचार चैनलों पर देख चुके हैं.
मित्रों, कांग्रेस इतने पर ही रूक जाती तो फिर भी गनीमत थी जब चीन और भारत की सेना डोकलाम में आमने-सामने थी तब राहुल जा पहुंचे चीनी दूतावास में चीन के राजदूत से गले मिलने और कदाचित उनको यह बताने कि चढ़ बैठो भारत पर मैं तुम्हारे साथ हूँ. सिर्फ ऊपर के नेताओं तक बात थम जाती तो फिर भी गनीमत थी आज स्थिति इतनी बुरी हो गई है कि कांग्रेस के जिला और प्रखंड स्तर के कार्यकर्त्ता लश्कर के आतंकी निकल रहे हैं. जिस नोटबंदी के चलते कश्मीर में आतंकवाद में कमी आई है कांग्रेस अभी भी उसकी आलोचना किए जा रही है. समझ में नहीं आता कि अगर कश्मीर में आतंकवाद में कमी आती है तो इससे कांग्रेस को कैसी हानि हो रही है? क्या आपने कभी कांग्रेस को कश्मीर में होनेवाली किसी आतंकी घटना की निंदा करते हुए देखा है? आपको यह जानकर घोर आश्चर्य होगा कि हिज्बुल चीफ सैयद सलाऊद्दीन १९८७ में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुका है. आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि जब केंद्र में मनमोहन और कश्मीर में छोटे अब्दुल्ला की सरकार थी तब सीआरपीएफ़ के जवानों को कश्मीर में बिना हथियार के ड्यूटी करने के लिए बाध्य किया गया था. इतना ही नहीं आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने पर सेना के अधिकारियों को जेल जाना पड़ता था और कई तो अभी भी जेल में हैं.
https://www.youtube.com/watch?v=uqN4AMTDqpc
जवाब देंहटाएं