मित्रों, एक जमाना था जब हम क्रिकेट के दीवाने हुआ करते थे और भारत की हार हमारे लिए नाकाबिले बर्दाश्त हुआ करती थी. कई बार तो ऐसा भी होता कि भारतीय टीम को अंतिम ओवर में जीत के लिए ४०-५० रन बनाने होते थे लेकिन हमें तब भी पूरी उम्मीद होती थी कि जीत भारत की ही होगी. जाहिर है असंभव तो असंभव ही होता है इसलिए हार के बाद हम टूट-से जाते थे.
मित्रों, हमारी कुछ ऐसी ही मनःस्थिति इन दिनों केंद्र में काबिज नरेंद्र मोदी की सरकार को लेकर हो रही थी. सरकार के चार साल बीत चुके हैं. काम कुछ खास हो नहीं पाया है लेकिन लगता था जैसे एक साल में ही क्रांति हो जाएगी, चमत्कार हो जाएगा. जैसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ बॉलर अंतिम ओवर में लगातार कई दर्जन नोबॉल फेंकेगा और भारत का दसवां बल्लेबाज उन हरेक नोबॉल पर सिर्फ छक्के ही जड़ेगा।
मित्रों, अब इस साल के बजट को ही लें. बेहतरीन दस्तावेज है, जबरदस्त, सुपर. लेकिन सवाल उठता है कि ऐसा बजट तो पहले साल आना चाहिए था. बजट में जो प्रावधान किए गए हैं एक साल में उनपर काम होगा कैसे? माना कि सरकार ने उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया लेकिन वो किसानों को मिलेगा कैसे? माना कि सरकार ने उद्योंगों को करों में छूट दे दी लेकिन एक साल में करोड़ों रोजगार कहाँ से आ जाएंगे? इसी तरह आदिवासियों की शिक्षा के लिए, शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए भी जो कुछ किया गया है वो भी स्वागत योग्य है लेकिन इनके परिणाम आने में कई साल लग जाएंगे फिर इस काम में देरी क्यों की गई?
मित्रों, कई मामलों में यह बजट सरकार की लाचारी और नाकामी को भी दर्शाता है. जैसे सरकार ने जो न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की जो घोषणा की है उससे साबित होता है सरकार कृषि के क्षेत्र में कुछ नया नहीं कर पाई. बल्कि वही सब कर रही है जो पिछली सरकारें कर रही थीं. कहाँ है पर ड्राप मोर क्रॉप और मृदा स्वास्थ्य कार्ड? कहाँ हैं नदियों को जोड़नेवाली नहरें?
मित्रों, इसी तरह सरकार ने जो स्वास्थ्य बीमा की राशि बढ़ाने की घोषणा की है उसको भी सरकार की नाकामी का प्रतीक मानता हूँ. आखिर कोई क्यों जाए निजी अस्पतालों में? फिर इसकी क्या गारंटी है कि निजी अस्पताल उन पैसों को बेईमानी कर हजम नहीं कर जाएंगे? बिहार में तो अविवाहित लड़कियों के गर्भाशय तक उनकी बिना जानकारी के लापता कर दिए गए.
मित्रों, इसी तरह इस बजट में रक्षा क्षेत्र को ज्यादा राशि दी गयी है जो स्वागतयोग्य है लेकिन रोजाना पाकिस्तानी सीमा पर जो कैप्टेन कपिल कुंडू मारे जा रहे हैं उनकी मौतों को रोकने के लिए सरकार के पास कोई योजना है क्या? युद्ध सिर्फ हथियारों से नहीं हौसलों से जीते जाते हैं. क्या है इस सरकार के पास हौसला? अगर है तो फिर कश्मीर में सेना पर एफआईआर क्यों हो रहे हैं और क्यों सेना पर पत्थर फेंकनेवालों के खिलाफ दर्ज एफआईआर वापस लिए जा रहे हैं? सरकार का गठन देश की सुरक्षा के लिए हुआ था या वोटों की सुरक्षा के लिए?
मित्रों, तमाम सवालों के बावजूद इस सरकार ने आधारभूत संरचना के क्षेत्र में अद्भुत काम किया है. रेलवे की सिग्नल प्रणाली बदलने से, नई पटरियों के बिछने से आनेवाले वर्षों में उम्मीद की जानी चाहिए कि पटना से दिल्ली आने में जाड़े में भी १२ से १४ घंटे ही लगेंगे न कि दो-दो दिन. इसी तरह भारत भविष्य में अपनी बेहतरीन ६ लेन सडकों, पुलों, और फ्लाईओवरों के लिए जाना जाएगा.
मित्रों, बड़े ही खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि सरकार त्वरित न्याय की दिशा में कार्यकाल के चार साल बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं कर पाई है. इस बजट में भी इस बारे में शून्य बटा सन्नाटा ही है. बड़े ही खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि देश में अभी भी हर कदम पर भ्रष्टाचार है, अराजकता है जबकि १८ राज्यों में भाजपा की सरकार है. पुराने पापी मजे में हैं. बड़े ही खेद के साथ कहना पड़ रहा है मोदी सरकार भी जातिवादी राजनीति में आकंठ डूब गई है. ये दलित, वो पटेल तो यहाँ आरक्षण, वहां आरक्षण. पता नहीं देश समझ पाया या नहीं कि मध्यम वर्ग को आयकर में छूट नहीं दी जा सकती क्योंकि देश को पैसा चाहिए लेकिन मैं यह नहीं समझ पाया कि बजट द्वारा आखिर राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति और सांसदों के वेतन को बढ़ाने की जरुरत क्या थी? क्या ये लोग भूखों मर रहे थे? क्या इनका वेतन बढ़ाने से खजाने पर कोई बोझ नहीं पड़ेगा? प्रधानमंत्री के आग्रह पर करोड़ों लोगों ने गैस की सब्सिडी छोड़ दी लेकिन अमीर सांसद कब वेतन और सुविधा लेना बंद करेंगे?
मित्रों, राजस्थान तो पहली झांकी है पूरा भारत बांकी है. पता नहीं सरकार कैसे एक साल में सरकार जनता का दिल जीत पाएगी? कैसे साबित कर पाएगी कि मोदी सिर्फ जुमलावीर नहीं हैं?
मित्रों, हमारी कुछ ऐसी ही मनःस्थिति इन दिनों केंद्र में काबिज नरेंद्र मोदी की सरकार को लेकर हो रही थी. सरकार के चार साल बीत चुके हैं. काम कुछ खास हो नहीं पाया है लेकिन लगता था जैसे एक साल में ही क्रांति हो जाएगी, चमत्कार हो जाएगा. जैसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ बॉलर अंतिम ओवर में लगातार कई दर्जन नोबॉल फेंकेगा और भारत का दसवां बल्लेबाज उन हरेक नोबॉल पर सिर्फ छक्के ही जड़ेगा।
मित्रों, अब इस साल के बजट को ही लें. बेहतरीन दस्तावेज है, जबरदस्त, सुपर. लेकिन सवाल उठता है कि ऐसा बजट तो पहले साल आना चाहिए था. बजट में जो प्रावधान किए गए हैं एक साल में उनपर काम होगा कैसे? माना कि सरकार ने उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया लेकिन वो किसानों को मिलेगा कैसे? माना कि सरकार ने उद्योंगों को करों में छूट दे दी लेकिन एक साल में करोड़ों रोजगार कहाँ से आ जाएंगे? इसी तरह आदिवासियों की शिक्षा के लिए, शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए भी जो कुछ किया गया है वो भी स्वागत योग्य है लेकिन इनके परिणाम आने में कई साल लग जाएंगे फिर इस काम में देरी क्यों की गई?
मित्रों, कई मामलों में यह बजट सरकार की लाचारी और नाकामी को भी दर्शाता है. जैसे सरकार ने जो न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की जो घोषणा की है उससे साबित होता है सरकार कृषि के क्षेत्र में कुछ नया नहीं कर पाई. बल्कि वही सब कर रही है जो पिछली सरकारें कर रही थीं. कहाँ है पर ड्राप मोर क्रॉप और मृदा स्वास्थ्य कार्ड? कहाँ हैं नदियों को जोड़नेवाली नहरें?
मित्रों, इसी तरह सरकार ने जो स्वास्थ्य बीमा की राशि बढ़ाने की घोषणा की है उसको भी सरकार की नाकामी का प्रतीक मानता हूँ. आखिर कोई क्यों जाए निजी अस्पतालों में? फिर इसकी क्या गारंटी है कि निजी अस्पताल उन पैसों को बेईमानी कर हजम नहीं कर जाएंगे? बिहार में तो अविवाहित लड़कियों के गर्भाशय तक उनकी बिना जानकारी के लापता कर दिए गए.
मित्रों, इसी तरह इस बजट में रक्षा क्षेत्र को ज्यादा राशि दी गयी है जो स्वागतयोग्य है लेकिन रोजाना पाकिस्तानी सीमा पर जो कैप्टेन कपिल कुंडू मारे जा रहे हैं उनकी मौतों को रोकने के लिए सरकार के पास कोई योजना है क्या? युद्ध सिर्फ हथियारों से नहीं हौसलों से जीते जाते हैं. क्या है इस सरकार के पास हौसला? अगर है तो फिर कश्मीर में सेना पर एफआईआर क्यों हो रहे हैं और क्यों सेना पर पत्थर फेंकनेवालों के खिलाफ दर्ज एफआईआर वापस लिए जा रहे हैं? सरकार का गठन देश की सुरक्षा के लिए हुआ था या वोटों की सुरक्षा के लिए?
मित्रों, तमाम सवालों के बावजूद इस सरकार ने आधारभूत संरचना के क्षेत्र में अद्भुत काम किया है. रेलवे की सिग्नल प्रणाली बदलने से, नई पटरियों के बिछने से आनेवाले वर्षों में उम्मीद की जानी चाहिए कि पटना से दिल्ली आने में जाड़े में भी १२ से १४ घंटे ही लगेंगे न कि दो-दो दिन. इसी तरह भारत भविष्य में अपनी बेहतरीन ६ लेन सडकों, पुलों, और फ्लाईओवरों के लिए जाना जाएगा.
मित्रों, बड़े ही खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि सरकार त्वरित न्याय की दिशा में कार्यकाल के चार साल बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं कर पाई है. इस बजट में भी इस बारे में शून्य बटा सन्नाटा ही है. बड़े ही खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि देश में अभी भी हर कदम पर भ्रष्टाचार है, अराजकता है जबकि १८ राज्यों में भाजपा की सरकार है. पुराने पापी मजे में हैं. बड़े ही खेद के साथ कहना पड़ रहा है मोदी सरकार भी जातिवादी राजनीति में आकंठ डूब गई है. ये दलित, वो पटेल तो यहाँ आरक्षण, वहां आरक्षण. पता नहीं देश समझ पाया या नहीं कि मध्यम वर्ग को आयकर में छूट नहीं दी जा सकती क्योंकि देश को पैसा चाहिए लेकिन मैं यह नहीं समझ पाया कि बजट द्वारा आखिर राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति और सांसदों के वेतन को बढ़ाने की जरुरत क्या थी? क्या ये लोग भूखों मर रहे थे? क्या इनका वेतन बढ़ाने से खजाने पर कोई बोझ नहीं पड़ेगा? प्रधानमंत्री के आग्रह पर करोड़ों लोगों ने गैस की सब्सिडी छोड़ दी लेकिन अमीर सांसद कब वेतन और सुविधा लेना बंद करेंगे?
मित्रों, राजस्थान तो पहली झांकी है पूरा भारत बांकी है. पता नहीं सरकार कैसे एक साल में सरकार जनता का दिल जीत पाएगी? कैसे साबित कर पाएगी कि मोदी सिर्फ जुमलावीर नहीं हैं?
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