गुरुवार, 5 जुलाई 2018

मोदी जी को गुमशुदा आंकड़ों की तलाश

मित्रों, पिछले दिनों हमारे माननीय प्रधानसेवक जी ने दो महत्वपूर्ण बयान दिए हैं वैसे भी बेचारे शोले की बसंती की तरह बहुत कम बोलते हैं. पहले में उन्होंने कहा है कि किसी को दिखे या न दिखे देश बदल रहा है. तो पिछले दिनों हुआ ये कि एक स्कूल में परीक्षा में एक बच्चे ने सादी कॉपी जमा कर दी. जब उसे शून्य अंक प्राप्त हुए तो जा पहुंचा शिक्षक के पास तमतमाया हुआ और बोला कि किसी को दिखे या न दिखे मैंने तो कॉपी में न केवल सारे प्रश्नों के उत्तर दिए हैं बल्कि सही उत्तर दिए हैं. टीचर ने कहा वो कैसे तो उसने कहा कि पीएम भी तो यही कह और कर रहे हैं.
मित्रों, पिछले दिनों हमारे माननीय प्रधानसेवक जी ने अपना दूसरा बयान एक साक्षात्कार के दौरान दिया और कहा कि देश में पिछले ४ सालों में भारी संख्या में रोजगार गठन हुआ है लेकिन दुर्भाग्यवश उनके पास आंकड़े नहीं हैं. कदाचित उनका आशय इस बात से था कि वे खो गए हैं और मिल नहीं रहे हैं. गजब! हम तो समझे थे कि यह सरकार ही आंकड़ों और आंकड़ेबाजों की सरकार है और यह सरकार खुद ही आंकड़ों की तलाश में है. हमने वर्षों पहले तेजाब फिल्म में एक गाना देखा था-खो गया ये जहाँ, खो गया आसमाँ, खो गई हैं सारी मंजिलें, खो गया है रस्ता. लेकिन मैं ठहरा भावुक व्यक्ति. यूं तो मैं कॉलेज से छुट्टी नहीं लेता आखिर मोदीसमर्थक जो हूँ. जब मोदी जी छुट्टी नहीं ले रहे तो मैं कैसे ले सकता हूँ लेकिन लेने जा रहा हूँ क्योंकि मुझसे मोदी जी दुःख देखा नहीं जा रहा इसलिए मैं अगले हफ्ते बिहार जा रहा हूँ रोजगार के गुमशुदा आंकड़ों को तलाशने. वैसे मैं सुशासन बाबू को लाख-लाख धन्यवाद देना चाहूँगा कि उन्होंने भयंकर बेरोजगारी के दौर में बिहार के युवाओं को शराब की तस्करी के रूप में अच्छा रोजगार दे दिया है.
मित्रों, अभी-अभी सरकार ने फसलों के कथित न्यूनतम समर्थन मूल्य को ड्योढ़ा कर दिया है. कथित इसलिए क्योंकि वो वास्तव में अधिकतम विक्रय मूल्य है न्यूनतम नहीं. क्योंकि किसानों से उस दाम पर कोई फसल खरीदेगा ही नहीं तो वो दाम तो उनको मिलने से रहे.
मित्रों, इस सम्बन्ध में मुझे अपने बचपन का एक खेल याद आ रहा है. जिसमें दो बच्चे दोनों हाथों को ऊपर उठाए और पकडे खड़े हो जाते थे और हम ट्रेन की तरह आगे-पीछे खड़े होकर उनके दरवाजानुमा हाथों के बीच से गुजरते. तब हम उनसे कहते कि सिमरिया (बेगुसराय में है) पुल जाने दो. वो कहते दाम कौन देगा तो आगेवाला यह कहते हुए आगे निकल जाता कि पीछेवाला लड़का और इस तरह जो सबसे पीछे होता वो फंस जाता. तो मोदी जी से पहले भी कितनी सरकारें आईं और चली गईं और हम हैं कि उस पीछे आनेवाली सरकार का इंतजार ही कर रहे हैं जो न्यूनतम समर्थन मूल्य को वास्तव में धरातल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य साबित करके दिखाए. मैं समझता हूँ कि ऐसा वही प्रधानमंत्री कर पाएगा जिसके पास वास्तव में ५६ ईंच का सीना होगा न कि ५६ ईंच की जुबान.

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