सोमवार, 13 अगस्त 2018

क्या भारत में अघोषित आपातकाल है

मित्रों, इस साल न जाने क्यों भाजपा व संघ परिवार से जुड़े लोगों ने आपातकाल पर खूब चर्चा की। चर्चा करने में कोई हर्ज भी नहीं है। चर्चा होनी चाहिए। जब चुनाव नजदीक हो तो कांग्रेस शासन की ज्यादतियों पर और भी जोर-शोर से चर्चा होनी चाहिए। तथापि विचारणीय यह भी है कि इस चर्चा का उद्देश्य क्या है.
मित्रों, वर्तमान भारत में अभिव्यक्ति की आजादी की जो स्थिति है और जिस तरह से मोदी सरकार ने विरोधी स्वरों को दबाना शुरू कर दिया है उससे तो मुझे ऐसा लगता है और ऐसा लगने में मैं कोई बुराई भी नहीं मानता कि इस सारी कवायद का उद्देश्य मानो यह दिखाना है कि हमने अब तक वैसा कुछ नहीं किया है या उस हद तक मीडिया को जलील नहीं किया है जैसा कि इंदिरा जी ने किया था. मोदी सरकार शायद कलमवीरों को यह दिलासा देना चाहती है कि हमने  आपको सिर्फ बाधित किया है जेल तो नहीं भेजा. हमने अघोषित रूप से आपातकाल लगाया है उसकी घोषणा तो नहीं की.
मित्रों, २३ अप्रैल २०१४ को एबीपी न्यूज़ को दिए इंटरव्यू  क्या आपने देखा मोदी का अब तक का सबसे कठिन ईंटरव्यू? में मोदीजी से पूछा था कि क्या आप भविष्य में हमारे साथ भी सख्ती बरतेंगे तो मोदी जी ने हँसते हुए कहा था कि यह आपके व्यवहार पर निर्भर करेगा. कदाचित मुझे लगता है कि मीडिया को दबाने की कोशिश १९७५ से पहले और १९७७ के बाद कभी बंद ही नहीं हुई. हाँ, बांकी की सरकारों ने जो परदे के पीछे से किया और कर रही है इंदिरा जी ने खुलेआम किया. हम इतिहास की किताबों में पढ़ते हैं कि वर्नाकुलर प्रेस एक्ट,१९७८ अमृत बाज़ार पत्रिका को दबाने के उद्देश्य से लाया गया था लेकिन आपको किसी ने नहीं बताया होगा कि मोदी सरकार न्यूज़ पोर्टल्स को नियमित करने के लिए जो एक्ट लाने जा रही है वो वायर न्यूज़ पोर्टल को नियंत्रण में लाने के लिए लाने जा रही है.
मित्रों, अभी पुण्य प्रसून वाजपेयी को जिस तरह से पहले मास्टर स्ट्रोक का प्रसारण बाधित करके तंग किया गया और बाद में चैनल से ही चलता कर दिया गया और वे चैनल पर जिस तरह के आरोप लगा रहे है उनको देखते हुए आप कैसे इस बात की कल्पना भी कर सकते हैं कि देश में मीडिया आजाद है? कार्यक्रम मोदी सरकार के खिलाफ भले ही हो आप उनमें न तो मोदी का नाम ही लेंगे और न ही मोदी के फूटेज ही दिखाएंगे. हद हो गयी यार. यद्यपि मैं वाजपेयी जी का कटु आलोचक रहा हूँ लेकिन फिर भी यह गौर करने वाली बात है कि जब इतने बड़े पत्रकार के साथ चैनल ऐसा कर सकता है कि नाचो मगर पांव में रस्सी बांधकर तो फिर सरकार विरोधियों का अंतिम ठिकाना न्यूज़ पोर्टल ही तो बचता है.
मित्रों, जहाँ तक हमारा और हमारे जैसे उद्दाम-निष्काम देशभक्तों का सवाल है तो हमें तो हर सरकार में दबाया गया है. एक समय हम भड़ास के दिग्गज लेखकों में से थे लेकिन २०१५ के चुनावों में नीतीश सरकार ने यशवंत जी को विज्ञापन की बोटी देकर वहां से हमें निष्कासित ही करवा दिया. आज भी विचारधारा और नीति के नाम पर मुझे कभी यहाँ तो कभी वहां लिखने से रोका जाता है. मुझे याद आता है कि प्रसिद्ध इतिहासकार लेनपुल ने दीने इलाही को अकबर की मूर्खता का स्मारक बताया था। कारण अकबर से इसके कारण एक साथ हिंदू और मुसलमान दोनों नाराज हो गए थे। हिंदू सशंकित थे कि अकबर उनका धर्म बदल रहा है तो वहीं मुसलमान इसलिए नाराज हो गए क्योंकि इस धर्म के प्रावधान इस्लाम और कुरान को नहीं मानते थे. लेकिन हम भी जिद के पक्के हैं हमें अकबर बनना तो मंजूर है लेकिन जाकिर नायक या प्रवीण तोगड़िया बनना कदापि मंजूर नहीं. अपना तो बस जिंदगी जीने का एक ही उसूल है कि चाहे कोई खुश हो चाहे गालियाँ हजार दे मस्तराम बन के जिंदगी के दिन गुजार दे. हमारे लिए कथनी और करनी दोनों में ही देश सर्वोपरि है और रहेगा. भारत माता की जय.

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