शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

अमित शाह की मोदी भक्ति

मित्रों, हर साल की भांति इस साल भी भारत के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी जी का जन्मदिन १७ सितम्बर को था. उस दिन सुबह जब दैनिक जागरण पलटा तो देखा कि उसमें भाजपा अध्यक्ष अमित भाई शाह का एक आलेख प्रकाशित है. शीर्षक था नए भारत का निर्माण करती भाजपा. मगर जब पढ़ा तो पता चला कि उसमें आदरणीय प्रधान सेवक जी का स्तुति गान किया गया है. 
मित्रों, श्रीमान अमित शाह ने फ़रमाया है (वैसे आजकल वे फरमाते कम हैं भरमाते ज्यादा हैं) कि प्रधानमंत्री जी ने हाल ही में लाखों आशा, आंगनवाड़ी और एएनएम कार्यकर्ताओं के साथ संवाद किया और उनको बताया कि वे देश के लिए कितनी महत्वपूर्ण हैं. साथ ही उनका मानदेय बढ़ाने की घोषणा भी की. अमित भाई को लगता है कि इससे उनको बेहतर काम करने का प्रोत्साहन मिलेगा. 
मित्रों, आपके इलाके में आंगनबाडियों की हालत क्या है मुझे नहीं पता लेकिन मेरे इलाके में तो इनकी हालत ऐसी है जैसी कि सरकार का सारा पैसा नालियों में बह रहा हो. मैंने १८ जनवरी, २०१५ को भ्रष्टाचार की बाड़ी आंगनबाड़ी योजना शीर्षक से एक ब्लॉग इस उम्मीद में लिखा था कि प्रधान सेवक जी मेरे आलेख को पढेंगे और इस दिशा में ठोस कदम उठाएंगे लेकिन आज मुझे यह लिखते हुए घोर निराशा हो रही है कि मोदी सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया बल्कि कदम उठाया सिर्फ वोट बैंक मजबूत करने की दिशा में.
मित्रों, अमित भाई फरमाते हैं कि पीएम मोदी तकनीकी प्रयोग से मोबाइल एप के माध्यम से अक्सर समाज के गुमनाम नायकों तक पहुंचते हैं और उन्हें यह जरूर बताते हैं कि देश के लिए वे बहुत महत्वपूर्ण हैं और राष्ट्र निर्माण में उनका अतुलनीय योगदान है। स्वास्थ्यकर्मियों से पहले शिक्षकों तक भी वह इसी माध्यम से पहुंचे और समाज में उनके योगदान के लिए आभार जताया। उन्होंने भाजपा के विभिन्न मोर्चो के कार्यकर्ताओं और दूसरे लोगों से भी बातचीत की। प्रधानमंत्री मोदी की इस विशेषता को अमित भाई तब से देखते रहे हैं जबसे उनको उनके सान्निध्य में कार्य करने का अवसर मिला।
मित्रों, तथापि मैं जिन मोदी जी को जानता हूँ वे लोगों को बड़े ही तरीके से चने के झाड़ पर चढ़ाकर बेवकूफ बनाते हैं. हो सकता है कि अमित भाई इस मामले में मोदी जी से २० पड़ते हों इसलिए उन्होंने बनने के बदले उनको बनाया हो. मुझे याद आता है कि कई साल पहले इन्ही अमित शाह ने मोदी जी के वादों के बारे में कहा था कि वे तो चुनावी जुमले थे. तो क्या अमित भाई बताएंगे कि मोदी कब जुमले बोलते हैं और कब नहीं? अब तो बता देते चुनाव फिर से माथे पर है.
मित्रों, अमित भाई फरमाते हैं कि पीएम मोदी के चार वषों के कार्यकाल में कई बेहतरीन और अनुकरणीय कार्य हुए हैं। बड़े स्तर पर सोचना और फिर उसे जमीनी स्तर पर लागू करने की उनकी क्षमता बेजोड़ है। यह उनका ही चिंतन और दर्शन है कि समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए कई योजनाएं शुरू हुईं। जैसे देश के प्रत्येक परिवार के पास एक बैंक खाता। आज जनधन योजना के तहत 32 करोड़ से अधिक बैंक खाते खोले जा चुके हैं। वह गरीब महिलाओं के जीवन को धुएं से मुक्त करना चाहते थे। यही सोच उज्ज्वला योजना का आधार बनी जिसके तहत गरीब महिलाओं को पांच करोड़ से अधिक गैस कनेक्शन मुफ्त दिए गए। निश्चित रूप से मोदी जी ने लोगों के खाते खुलवाए जो सब्सिडी और अन्य लाभों को सीधे लोगों के खातों में पहुँचाने के लिए आवश्यक भी था लेकिन मोदी जी शायद आज भी इस मुगालते में जी रहे हैं कि सिर्फ इतना कर देने से ही दिल्ली से चले १०० पैसे में से पूरा-का-पूरा लाभार्थियों तक पहुँचने लगे हैं जबकि सच्चाई यह है कि गरीबी के मारे लोगों को तब तक कई सारी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता जब तक वे कमीशन के रूप में रिश्वत की मोटी रकम अधिकारियों और जिम्मेदार लोगों तक पहुंचा नहीं देते. मोदी जी जो भूतपूर्व गरीब हैं को बखूबी पता होगा कि गरीबी और भ्रष्टाचार एक दुष्चक्र के दो पहलू हैं. गरीब जब तक गरीब रहेगा घूस देना उसकी मजबूरी होगी और जब तक वो घूस देता रहेगा वो गरीब ही रहेगा. एलपीजी वितरण के क्षेत्र में जरूर भ्रष्टाचार कम हुआ है इससे इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन सच्चाई यह भी है कि आज भी गरीबों के लिए बैंक से लोन प्राप्त करना चाँद-तारों की सैर करने के बराबर है. मैंने अपनी आँखों से देखा है कि बैंकों ने किस तरह मुद्रा लोन स्थापित व्यवसायियों को देकर खानापूरी की है और नए कारोबारियों को मायूस किया है.
मित्रों, अमित भाई फरमाते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा पर कोई विवाद नहीं है और इसे उनके कई विरोधी भी स्वीकार करते हैं। मगर शायद अमित भाई भूल गए हैं कि कुछ इसी तरह के तर्क एक समय मनमोहन सिंह जी को लेकर भी बड़ी शान और बेशर्मी से दिए जाते थे.
मित्रों, अमित शाह के अनुसार आयुष्मान भारत जैसी योजना स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में बहुत बड़ी गेमचेंजर साबित होने वाली है। जबकि सच्चाई यह है कि यह योजना भारत सरकार की सरकारी स्वास्थ्य सेवा के स्वास्थ्य को सुधारने की दिशा में विफलता को ही उजागर करता है और इसका असली लाभ गरीबों को नहीं बल्कि स्वास्थ्य सेवा देने के नाम गरीबों को लूटनेवाले उन पूंजीपतियों को होगा जिनके निजी अस्पताल हैं.
मित्रों, अपनी अंतिम पंक्ति में अमित भाई फरमाते हैं कि आज न्यू इंडिया की ‘कैन डू’ यानी ‘कर सकते हैं’ की भावना हर तरफ गूंज रही है। बेशक गूँज रही है लेकिन साथ-साथ 'मोदी जी यू कांट डू' की भावना भी हर तरफ गूँज रही है और गूँज रही है कि मोदी जी आप भी देशप्रेमी नहीं कुर्सी प्रेमी निकले, अमीरों के हाथों गरीबों के वोटों का सौदा करनेवाले निकले.
मित्रों, मेरा इस आलेख को लिखने का उद्देश्य कतई अमित शाह जी को नीचा दिखाना नहीं है. बल्कि राजनीति के भक्तिकाल के महाकवियों से विनम्र निवेदन करना है कि आँखें बंद कर मोदी जी की स्तुति करना बंद करें और सरकार की कमियों को स्वीकार भी करें जिससे उनको समय रहते दूर किया जा सके. क्योंकि प्रथमतः तो मानव जीवन बारम्बार नहीं मिलता और द्वितीय भारत का प्रधानमंत्री बनने का अवसर भारत की जनता बार-बार नहीं देती.

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