शनिवार, 8 सितंबर 2018

गौ से गे तक मोदी सरकार

मित्रों, जबसे मोदी सरकार आई है बहुतेरों का गाय पालना और गाय लेकर रास्तों से गुजरना मुश्किल हो गया है. हालाँकि सच यह भी है खुलेआम होनेवाली गौहत्या में भी कमी आई है. पहले जो लोग लूट-हत्यादि असामाजिक कार्यों में संलिप्त थे अब उन्होंने गौरक्षक दल बना लिए हैं और पैसे लेकर मवेशियों से भरे ट्रक पास कराने लगे हैं. मैं यह नहीं कहता कि इस काम में लगे सारे-के-सारे लोग ऐसे ही हैं लेकिन ऐसे लोगों की मौजूदगी से इन्कार भी नहीं किया जा सकता.
मित्रों, मुझे उम्मीद थी कि मोदी सरकार गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करेगी और सारे विवादों पर लगाम लगा देगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. उल्टे गोवा के भाजपाई मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी कि उनके राज्य में गौमांस की कमी नहीं होने दी जाएगी. मुझे यह भी उम्मीद थी कि मोदी की हिन्दुत्ववादी सरकार बछड़ों के कल्याण के लिए कोई-न-कोई योजना जरूर लाएगी लेकिन यह भी नहीं हुआ. साथ ही मुझे उम्मीद थी कि मोदी सरकार संविधान की धारा ३७० को समाप्त करने की दिशा में भी कदम जरूर उठाएगी.
मित्रों, लेकिन मोदी सरकार ने धारा ३७० को समाप्त करने के बदले सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से आईपीसी की धारा ३७७ को ही समाप्त करवा दिया. दरअसल राम और कृष्ण की भूमि भारत में समलैंगिकता को कानूनी बनाने से संबंधित एक याचिका पर जब सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार से उसका मंतव्य पूछा तो महान हिन्दुत्वादी सरकार ने कह दिया कि हमारा इस बारे में कोई मंतव्य है ही नहीं आप जो चाहे निर्णय ले सकते हैं और इस तरह मुक़दमे को एकतरफा हो जाने दिया. कल को कोई सुप्रीम कोर्ट में वेश्यावृत्ति को वैधानिक बनाने की याचिका डाल देगा और मुझे पूरी उम्मीद है कि तब भी पूछे जाने पर हमारी महान हिन्दुत्ववादी मोदी सरकार का कुछ ऐसा ही जवाब होगा. मुझे बेसब्री से इंतजार है उस वक़्त का जब धीरे-धीरे अपने देश में मोदी सरकार की कृपा से कोई भी गर्हित कर्म-कुकर्म अवैध रह ही नहीं जाए.
मित्रों, मैं जब सोंचता हूँ कि क्या वही सब करने के लिए हमने मोदी का प्राणार्पण से समर्थन किया था जो उनकी सरकार इन दिनों कर रही है तो मुझे खुद पर शर्मिंदगी होती है. मैं जानता हूँ कि भाजपा प्रवक्ता ऐसा भविष्य में कह सकते हैं कि आपने तो केवल ३७० समाप्त करने को कहा था हमने तो ७ बढाकर ३७७ को समाप्त कर दिया क्योंकि वे इनदिनों कुछ भी बोलने लगे हैं. यहाँ तक कि वे मोदी को देश का बाप कहने लगे हैं.
मित्रों, मैं आपसे पूछता हूँ कि १९४२ के मुकाबले हमारे देश में बदला क्या है अर्थव्यवस्था के आकार के सिवा? यह तक कि संविधान के ३९५ अनुच्छेदों में से २५० से अधिक अंग्रेजों द्वारा १९३५ में बनाए गए भारत सरकार अधिनियम से लिए गए हैं. देश के लिए संसदीय प्रणाली पिछले ३५ सालों में अभिशाप बन चुकी है. यह कहते-कहते कि भारत को अध्यक्षीय शासन-प्रणाली की अविलम्ब सख्त जरुरत है मेरा गला बैठ चुका है. भारत की न्याय-व्यवस्था, पुलिस प्रणाली और कानून आज भी अंग्रेजों वाले हैं जिसका विकास अंग्रेजों ने भारत को लूटने के उद्देश्य से किया था. हमने १९८४ के बाद पहली बार किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत दिया था तो इसलिए दिया था ताकि वो ५ साल बाद यह बहाना न बना सके कि उसके पास तो बहुमत ही नहीं था. लेकिन हम देख रहे हैं कि भारत की न्यायिक और पुलिस प्रणाली को बदलने की दिशा में तो मोदी सरकार ने कुछ नहीं ही किया शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी उसकी उपलब्धियां शून्य बटा सन्नाटा है. देश का कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि देश में इस समय भी मैकाले की औपनिवेशिक शिक्षा-नीति के तहत शिक्षा दी जा रही है.जबकि सरकार को इन मुद्दों पर काम करना चाहिए था वो मशगूल है जाति-जाति और आरक्षण का गन्दा खेल खेलने में जिसके लिए अब तक लालू, मुलायम, मायावती जैसे घिनौने चेहरे बदनाम थे.
मित्रों, कुल मिलाकर मोदी सरकार को करना कुछ और चाहिए था और वो कर कुछ और रही है. पता नहीं समलैंगिकता को कानूनी घोषित करवाने के पीछे उसकी क्या मजबूरी थी जो वो गौ कल्याण करने के बजाए गे कल्याण कर बैठी. अब तो देश में स्थिति ऐसी आनेवाली है कि मर्दों की ईज्जत भी सुरक्षित नहीं रह जाएगी औरतों की तो पहले से ही सुरक्षित नहीं है. अब माता-पिता अपने बेटों से भी कहेंगे कि बेटा दिन रहते घर लौट आना.
फ़िलहाल तो हम मोदी सरकार के लिए बतौर ग़ालिब इतना ही कह सकते हैं कि
बंद कराने आये थे तवायफों के कोठे मगर,
सिक्कों की खनक देखकर खुद ही मुजरा कर बैठे.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें