मित्रों, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु बड़े ही गर्व से कहा करते थे कि
I am English by education, a Muslim by culture, just born as a Hindu by accident”? किसी ने भी पंडित जी को कभी पूजा-पाठ करते या मंदिर जाते नहीं देखा. उनकी बेटी इंदिरा मंदिर तो गई थीं पर चुनावी जरूरतों के कारण। कदाचित वो नास्तिक धीं क्योकि वे शपथ भी ईश्वर की नहीं लेती थी. फिर उसके खानदान से हम क्या उम्मीद रखें?
मित्रों, अभी कुछ साल पहले ही इंदिरा और फिरोज का पोता राहुल गाँधी कहा करता था कि जो हिन्दू मंदिर जाते हैं वे लड़कियां छेड़ने जाते हैं. इतना ही नहीं उसी पार्टी की सरकार ने हिन्दुओं के खिलाफ एक कानून बनाने का प्रयास भी किया जिसके तहत दंगे होने पर सिर्फ हिन्दुओं को ही दोषी माना जाता. फिर ऐसा क्या हुआ कि वही राहुल जनेऊधारी ब्राह्मण बनकर मंदिरों के चक्कर लगाने लगा? कई बार इस तरह के विवाद भी इस बीच उत्पन्न हुए कि राहुल ने मंदिर जाने से पहले मांस खाया था. मुझे लगा कि यह झूठ होगा और बेवजह यह विवाद खड़ा किया जा रहा है परन्तु अब लगता है कि खाया भी होगा क्योंकि वो आदमी इन दिनों मध्य प्रदेश में जीत सुनिश्चित देखकर खुलेआम ऐतिहासिदक नगरी इंदौर में हॉट डॉग यानि कुत्ते का मांस खोजता फिर रहा है उसके लिए मंदिर की पवित्रता क्या मायने रखती है? वो तो गोमांस खाकर मंदिर जाता होगा क्योंकि मंदिर जाना उसके लिए एक औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं. मंदिर जाना उनकी मजबूरी है जैसे रावण के लिए साधू बनना मजबूरी थी. हद तो यह रही कि मांस भक्षण के बाद यह कलयुगी रावण यह कहता है कि वो राष्ट्रवादी है हिंदूवादी नहीं जबकि वास्तविकता तो यह है कि वो न तो राष्ट्रवादी है और न ही हिन्दू, वो एक बहुरुपिया ठग है. जिस व्यक्ति को राष्ट्र की संस्कृति से कोई कोई लगाव, कोई प्रेम नहीं बल्कि महान सनातन संस्कृति से घनघोर घृणा हो,जो मानसिक रूप से पूर्णतया विदेशी हो वो राष्ट्रवादी हो ही नहीं सकता.
मित्रों, इस सन्दर्भ में मैंने पहले भी कहा है कि राहुल और रावण में कोई अंतर नहीं है. रावण भी जब सीता माता का अपहरण करने गया था तब साधू के वेश में गया था परन्तु क्या ऐसा करने से रावण मूलतः राक्षस नहीं गया था? सच्चाई तो यही थी कि रावण ने साधू वेश का छल के लिए दुरुपयोग किया. वह एक राक्षस था और मरते दम तक राक्षस ही रहा.
मित्रों, राहुल के साथ भी यही बात है. राहुल भी मरते दम तक अहिंदू था और अहिंदू रहेगा. नेहरु तो फिर भी जन्मना हिन्दू थे. राहुल तो जन्मना भी अहिंदू है क्योंकि उसका बाप जन्मना पारसी था और उनकी माँ जन्मना ईसाई है और वो भी पोप की नगरी की. राहुल तो by education, by culture aur by born हर तरीके से अहिंदू है और अहिंदू रहेगा बस जिस तरह से कुछ देर के लिए रावण साधू बन गया था उसी तरह से ये भी कुछ क्षणों के लिए हिन्दू बन गया है. जैसे ये हमसे हमारा सबकुछ छीन लेगा ये फिर से रावण की तरह अपने असली रूप में आ जाएगा इसलिए इस बहुरूपिए राक्षस से सावधान रहने की जरुरत है अन्यथा फिर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत. वैसे भी अगर मुझे मोदी और राहुल में से हजार बार किसी एक को चुनना पड़े तो मैं हजार बार मोदी को ही चुनूँगा क्योंकि राहुल को चुनने से देश, धन और धर्म तीनों के विनाश का खतरा है जबकि मोदी को वोट देने से धन चला भी जाए पर देश और धर्म निश्चित रूप से सुरक्षित रहेंगे.
मित्रों, अभी कुछ साल पहले ही इंदिरा और फिरोज का पोता राहुल गाँधी कहा करता था कि जो हिन्दू मंदिर जाते हैं वे लड़कियां छेड़ने जाते हैं. इतना ही नहीं उसी पार्टी की सरकार ने हिन्दुओं के खिलाफ एक कानून बनाने का प्रयास भी किया जिसके तहत दंगे होने पर सिर्फ हिन्दुओं को ही दोषी माना जाता. फिर ऐसा क्या हुआ कि वही राहुल जनेऊधारी ब्राह्मण बनकर मंदिरों के चक्कर लगाने लगा? कई बार इस तरह के विवाद भी इस बीच उत्पन्न हुए कि राहुल ने मंदिर जाने से पहले मांस खाया था. मुझे लगा कि यह झूठ होगा और बेवजह यह विवाद खड़ा किया जा रहा है परन्तु अब लगता है कि खाया भी होगा क्योंकि वो आदमी इन दिनों मध्य प्रदेश में जीत सुनिश्चित देखकर खुलेआम ऐतिहासिदक नगरी इंदौर में हॉट डॉग यानि कुत्ते का मांस खोजता फिर रहा है उसके लिए मंदिर की पवित्रता क्या मायने रखती है? वो तो गोमांस खाकर मंदिर जाता होगा क्योंकि मंदिर जाना उसके लिए एक औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं. मंदिर जाना उनकी मजबूरी है जैसे रावण के लिए साधू बनना मजबूरी थी. हद तो यह रही कि मांस भक्षण के बाद यह कलयुगी रावण यह कहता है कि वो राष्ट्रवादी है हिंदूवादी नहीं जबकि वास्तविकता तो यह है कि वो न तो राष्ट्रवादी है और न ही हिन्दू, वो एक बहुरुपिया ठग है. जिस व्यक्ति को राष्ट्र की संस्कृति से कोई कोई लगाव, कोई प्रेम नहीं बल्कि महान सनातन संस्कृति से घनघोर घृणा हो,जो मानसिक रूप से पूर्णतया विदेशी हो वो राष्ट्रवादी हो ही नहीं सकता.
मित्रों, इस सन्दर्भ में मैंने पहले भी कहा है कि राहुल और रावण में कोई अंतर नहीं है. रावण भी जब सीता माता का अपहरण करने गया था तब साधू के वेश में गया था परन्तु क्या ऐसा करने से रावण मूलतः राक्षस नहीं गया था? सच्चाई तो यही थी कि रावण ने साधू वेश का छल के लिए दुरुपयोग किया. वह एक राक्षस था और मरते दम तक राक्षस ही रहा.
मित्रों, राहुल के साथ भी यही बात है. राहुल भी मरते दम तक अहिंदू था और अहिंदू रहेगा. नेहरु तो फिर भी जन्मना हिन्दू थे. राहुल तो जन्मना भी अहिंदू है क्योंकि उसका बाप जन्मना पारसी था और उनकी माँ जन्मना ईसाई है और वो भी पोप की नगरी की. राहुल तो by education, by culture aur by born हर तरीके से अहिंदू है और अहिंदू रहेगा बस जिस तरह से कुछ देर के लिए रावण साधू बन गया था उसी तरह से ये भी कुछ क्षणों के लिए हिन्दू बन गया है. जैसे ये हमसे हमारा सबकुछ छीन लेगा ये फिर से रावण की तरह अपने असली रूप में आ जाएगा इसलिए इस बहुरूपिए राक्षस से सावधान रहने की जरुरत है अन्यथा फिर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत. वैसे भी अगर मुझे मोदी और राहुल में से हजार बार किसी एक को चुनना पड़े तो मैं हजार बार मोदी को ही चुनूँगा क्योंकि राहुल को चुनने से देश, धन और धर्म तीनों के विनाश का खतरा है जबकि मोदी को वोट देने से धन चला भी जाए पर देश और धर्म निश्चित रूप से सुरक्षित रहेंगे.
thanks for sharing sir
जवाब देंहटाएंगुरुदेव हॉटडॉग नामक व्यंजन में कुत्ते का मांस नहीं होता उसमे मटन का उपयोग किया जाता है
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