मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

अप्रत्याशित नहीं हैं चुनाव परिणाम

मित्रों, ५ राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आ चुके हैं. पांच में से तीन में पहले भाजपा सरकार थी. अब जो आसार नजर आ रहे हैं उनसे ऐसा लगता है कि भाजपा पांच में से किसी भी राज्य में सत्ता में आने नहीं जा रही अलबत्ता वे तीन राज्य जहाँ कि उसकी सत्ता थी वहां भी जनता ने उसे पैदल कर दिया है. तथापि इन चुनाव परिणामों में कई ऐसे गहन संकेत छिपे हुए हैं जो २०१९ में नरेन्द्र मोदी सरकार की वापसी की संभावनाओं को धूमिल कर रहे हैं. संक्षेप में अगर हम कहें कि यह भाजपा की कम मोदी की हार ज्यादा है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
मित्रों, मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैंने अनुभव किया है कि लोग नरेन्द्र मोदी सरकार के प्रदर्शन से काफी नाराज़ हैं और वे किसी भी कीमत पर उसे हराना चाहते हैं. अभी दो दिन पहले मैंने एक समाचार पढ़ा कि एक किसान ने मध्य प्रदेश में १५०० किलो ग्राम प्याज बेचा और मंडी तक बोरियां लाने का खर्च काटकर उसके पास मात्र १० रूपये बचे. आप इस खबर से सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि देश में किसानों और खेती की स्थिति क्या है और किसानों की आय दोगुनी करने के मोदी के दावे कहाँ तक सच हैं. जिस किसान की कई महीने की सारी मेहनत मिट्टी में मिल गई उससे भाजपा कैसे वोट की उम्मीद कर रही थी ये तो वही जाने.
मित्रों, मोदी सरकार कहती है कि पिछले ५ सालों में देश में गरीबी तेजी से घटी है और हर मिनट ४४ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ रहे हैं. जहाँ तक मैं समझता हूँ ये सारे आंकड़े फर्जी और झूठे हैं. सच्चाई तो यह है कि जिन संपन्न लोगों के नाम पिछली सरकार के समय गलती से बीपीएल की सूची में दर्ज हो गए थे इस सरकार ने उनके नाम हटा दिए हैं इसलिए गरीबी अचानक बहुत कम होती दिखाई दे रही है. सच्चाई तो यह भी है कि नोटबंदी के बाद से ही गरीबों का जीवनयापन पहले से भी कहीं ज्यादा कठिन हो गया है. सच्चाई तो यह भी है कि ऐसी आंकड़ेबाजी से विश्वबैंक खुश हो सकता है भारत का गरीब और बेरोजगार नहीं जो कमरतोड़ महंगाई और बढती बेरोजगारी से परेशान है.
मित्रों, मैं कई बार मोदी जी से करबद्ध विनम्र प्रार्थना कर चुका हूँ कि वित्त मंत्री बदलिए लेकिन उनके लिए न जाने क्यों नेशन फर्स्ट के स्थान पर जेटली फर्स्ट हो गया है. वित्त मंत्रालय ऐसा मंत्रालय है कि अगर उसका सही तरीके के सञ्चालन न किया गया तो वो अकेले पूरे देश को तंगो तबाह कर सकता है क्योंकि जब सरकार की जेब में पैसा ही नहीं होगा तो वो विकास क्या खाक करेगी. नंगा नहाएगा क्या और निचोडेगा क्या. अभी तो रिजर्व बैंक के गवर्नर ने ही इस्तीफा दिया है अभी तो भाजपा सांसदों की भगदड़ मचनी बांकी है. देश मंदी की चपेट में जाएगा सो अलग फिर बदलते रहना आधार वर्ष और हेरा-फेरी करते रहना जीडीपी के आंकड़ों में. नाच न जाने आँगन टेढ़ा. जेटली को अर्थशास्त्र की एबीसीडी भी आती है?
मित्रों, मैं २०१४ से ही मोदी जी को चेताता आ रहा हूँ कि मंत्रिमंडल में ईमानदार और योग्य लोगों को रखो न कि चापलूसों को लेकिन वे सुन ही नहीं रहे. जो अनुभवी लोग थे उनको पहले ही उन्होंने जबरदस्ती मार्गदर्शक मंडल में डाल कर रिटायर कर दिया. हद तो यह है कि वे इस मार्गदर्शक मंडल से मार्गदर्शन भी नहीं ले रहे सिर्फ अपने मन की कर रहे जैसे कि हर महीने के अंतिम रविवार को अपने मन की बात करते हैं और जनता के मन की बात से उनका कोई सरोकार ही नहीं रह गया है. मैं पूछता हूँ कि जब एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट ने आवश्यक बदलाव किए तो क्या आवश्यकता थी उससे छेड़-छाड़ करने की? अब भुगतो-न तो एससी-एसटी का वोट मिला और न ही सवर्णों का जो भाजपा के परंपरागत समर्थक माने जाते रहे हैं.
मित्रों, मैं पूछना चाहता हूँ कि पिछले ५ सालोँ में मोदी जी ने एक बार भी प्रेस कांफ्रेंस क्यों नहीं किया? क्या वे मीडिया को वाहियात मानते हैं? क्यों डरते हैं वे मीडिया से जबकि उनका सीना तो ५६ ईंच का है?
मित्रों, मैं पहले ही कह चुका हूँ कि यह मोदी जी की व्यक्तिगत हार है लेकिन चुनाव परिणाम यह भी बताते हैं कि जनता अभी भी कांग्रेस को लेकर असमंजस में है. वो इसलिए क्योंकि उसने कांग्रेस को जिताया जरूर है लेकिन प्रचंड बहुमत नहीं दिया है बल्कि साधारण बहुमत दिया है. दूसरी तरफ भाजपा को हराया जरूर है लेकिन उसका सूपड़ा साफ़ भी नहीं किया है. इसलिए मैं समझता हूँ कि अभी संभावनाएं समाप्त नहीं हुई हैं बशर्ते मोदी अबसे से भी हिम्मत दिखाएँ. वैसे भी मैं नहीं समझता कि उनके सामने और कोई चारा भी है क्योंकि अगर वे अपने काम काज में सुधार नहीं करते तो २०१९ में हार तो अवश्यम्भावी है ही.

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