गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

राम की तरह राम मंदिर भी बने आदर्श

मित्रों, 'राम’ भारतीय परंपरा में एक प्यारा नाम है. वह ब्रह्मवादियों का ब्रह्म है, निर्गुणवादी संतों का आत्माराम है, ईश्वरवादियों का ईश्वर है, अवतारवादियों का अवतार है. वह वैदिक साहित्य में एक रूप में आया है, तो बौद्ध जातक कथाओं में किसी दूसरे रूप में. एक ही ऋषि वाल्मीकि के ‘रामायण’ नाम के ग्रंथ में एक रूप में आया है, तो उन्हीं के लिखे ‘योगवसिष्ठ’ में दूसरे रूप में. ‘कम्बन रामायण’ में वह दक्षिण भारतीय जनमानस को भावविभोर कर देता है, तो तुलसीदास के रामचरितमानस तक आते-आते वह उत्तर भारत के घर-घर का बड़ा और आज्ञाकारी बेटा, आदर्श राजा और सौम्य पति बन जाता है. इस लंबे कालक्रम में रामायण और रामकथा जैसे 1000 से अधिक ग्रंथ लिखे जाते हैं. तिब्बती और खोतानी से लेकर सिंहली और फारसी तक में रामायण लिखी जाती है. 1800 ईसवी के आस-पास उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के मुल्ला मसीह फारसी भाषा के करीब 5000 छंदों में रामायण को छंदबद्ध करते हैं।
मित्रों, पिछले दिनों भारतीय संस्कृति की आत्मा उन्हीं राम के मंदिर को लेकर सोशल मीडिया पर सुझाव देनेवालों की भीड़ लगी रही. कोई कह रहा था कि वहां अस्पताल बनवा दो तो कोई कह रहा था स्कूल. लेकिन अभी भी बहुसंख्यक लोगों का मानना था कि वहां बने तो मंदिर ही बने. आखिर अयोध्या में रामलला का मंदिर नहीं बनेगा तो कहाँ बनेगा?
मित्रों, जैसा कि आप सभी जानते हैं कि अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण को लेकर पिछले कई दशकों से जमकर राजनीति हो रही है. पहले भाजपा कहती थी कि न तो दिल्ली में और न ही लखनऊ में हमारी सरकार है फिर हम क्या कर सकते हैं. आज दोनों की जगहों पर उसकी सरकार है फिर भी वो कह रही है कि हम कुछ भी नहीं कर सकते जो करेगा कोर्ट करेगा. बहाने पर बहाने. ऐसे में पता नहीं कि कब राम मंदिर बनेगा और कब रामलला को पक्का मकान मिलेगा. फिर भी मुझे पूरा यकीन है कि एक-न-एक दिन राम मंदिर बनेगा जरूर क्योंकि अब बहुत सारे मुसलमान भी खुलकर इसके पक्ष में आ रहे हैं.
मित्रों, राम मंदिर का निर्माण तो तय है पर यह जब भी बने मैं चाहता हूँ कि उसकी व्यवस्था कुछ उस तरह की हो जैसी अमृतसर के स्वर्ण मंदिर और पटना के महावीर मंदिर की है. यानि उसकी आमदनी से उसके पुजारी गोल्डन बाबा बनकर गुलछर्रे न उडाएँ बल्कि उससे भूखों को भोजन और बीमारों को ईलाज मुहैय्या कराई जाए. गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोले जाएँ. भिखारियों और बेसहारों के लिए धर्मशालाएं बनाई जाएँ. साथ ही इनसे जो भी लाभान्वित हों उनकी जाति-पाति और धर्म का ख्याल न रखा जाए. और यह सबकुछ निःशुल्क हो. मंदिर की तरफ से हो. मतलब कि इन सबका खर्च मंदिर प्रबंधन उठाए. मेरा मानना है कि यही राम की सच्ची भक्ति होगी क्योंकि हमारे राम गरीबों के राम हैं और रामचरितमानस के लेखक तुलसीदास का उनके प्रति सबसे प्रिय संबोधन गरीबनवाज है. गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं रघुबर तुमको मेरी लाज।
सदा सदा मैं सरन तिहारी तुमहि गरीबनवाज।। 
हम जानते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास का आधा जीवन भूख और प्यास से लडते हुए बीता। तुलसी कहते हैं                                               किसबी ,किसान -कुल ,बनिक,भिखारी, भाट ,
चाकर ,चपल नट, चोर,  चार,  चेटकी  
पेटको पढ़त,गुन गढ़त ,चढत गिरि ,
अटत गहन -गन अहन अखेटकी 
ऊंचे -नीचे करम ,धर्म -अधरम  करि
पेट ही को पचत ,बेचत बेटा- बेटकी 
'तुलसी ' बुझायी एक राम घनश्याम ही ते ,
आगि बड़वागिते बड़ी है आगि पेटकी
(अर्थात श्रमिक ,किसान ,व्यापारी ,भिखारी ,भाट ,सेवक,चंचल नट ,चोर, दूत और बाजीगर अर्थात हम सभी इस कलियुग में पेट के लिए ही सब कर्म कुकर्म कर रहे हैं -पढ़ते ,अनेक उपाय रचते ,पर्वतों पर चढ़ते और शिकार की खोज में दुर्गम वनों का विचरण करते फिरते हैं ..सब लोग पेट ही के लिए ऊंचे नीचे कर्म तथा धर्म -अधर्म कर रहे हैं ,यहाँ तक कि अपने बेटे-बेटी को बेच तक दे रहे हैं (दहेज़ ?) ----अरे यह पेट की आग तो समुद्रों की बडवाग्नि से भी बढ गयी है ;इसे तो केवल राम रूपी श्याम मेघ के आह्वान से ही बुझाया जा सकता है. )
मित्रों, आज भी हमारे देश में गरीबों की स्थिति कोई अच्छी नहीं है. आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब भारत में हैं. भूख, अभाव, कुपोषण, अशिक्षा, बेरोजगारी से देश की बहुसंख्यक जनता त्राहि-त्राहि कर रही है. इसलिए मैं चाहता हूँ कि क्या अच्छा रहे कि राम का मंदिर गरीबों की भूख मिटाए,उनके हर तरह के दुख दूर करे और भगवान राम के सबसे प्रिय भक्त तुलसीदास द्वारा दिए उनके नाम को सार्थक करे, राम की तरह राम का मंदिर भी मानवता के लिए आदर्श बने, प्रेरणास्रोत बने.

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