रविवार, 3 मार्च 2019

शहीदों की मजारों पर मूतेंगे अब कुत्ते


मित्रों,आपलोगों को मैं कई बार बता चुका हूँ कि मेरा छोटा चचेरा भाई वीरमणि १९९८ में आतंकवादियों से लड़ता हुआ मृत्यु को प्राप्त हो गया था. उसके बाद मेरे बड़े भैया और मेरी चाची को मुआवजे और पेंशन के लिए कई सालों तक जो भाग-दौड़ करनी पड़ी थी उसका मैं खुद चश्मदीद गवाह हूँ. मेरा छोटा भाई बीएसएफ में था इसलिए मैंने उसके नाम के साथ शहीद शब्द का प्रयोग नहीं किया क्योंकि भारत सरकार उनको शहीद मानती ही नहीं. २००५ के बाद अर्द्धसैनिक बल में जानेवाले को पेंशन भी नहीं मिलता जबकि मैं समझता हूँ कि उनकी नौकरी सेना के मुकाबले कहीं से भी कम जोखिमवाली नहीं है. आखिर यह भेदभाव क्यों? क्या अपने को उग्र राष्ट्रवादी कहनेवाली पार्टी और उस पार्टी के महान नेताओं के पास इसका जवाब है? कौन बताएगा कि अर्द्धसैनिक बलों के जवानों की शहादत किस तरह सेना के जवानों की शहादत के कमतर होती है?
मित्रों, आपने भी पढ़ा होगा कि उस शहीद हेमराज के परिजन मुआवजे के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं जिसके सिर को पापिस्तान द्वारा काट लिए जाने को भारतीय जनता पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनावों में बड़ा मुद्दा बना दिया था. मरनेवाला मर गया. चुनाव जीतनेवाले जीत गए मगर क्या किसी ने शहीद के परिवार की सुध ली? अगर नहीं तो क्यों? क्या यह हमारी यानि जनता की संवेदनहीनता और झूठी देशभक्ति को उजागर करनेवाली शर्मनाक घटना नहीं है? न जाने कितने ही हेमराज के परिजन अगर आज देश के विभिन्न दफ्तरों में उपेक्षा और जलालत का जहर पीकर चक्कर काटते फिर रहे हैं तो इसमें किसकी गलती है? क्या हम और आप भी इसके लिए किसी-न-किसी प्रकार से दोषी नहीं हैं?
मित्रों, आज एक और शर्मनाक घटना मेरे राज्य बिहार में घटी है. आपने अख़बारों में पढ़ा होगा कि बिहार का एक वीर नौजवान पिंटू सिंह पिछले दिनों आतंकवादियों से लोहा लेता हुआ जम्मू और कश्मीर में शहीद हो गया. आज उसका शव जब पटना पहुंचा तो बिहार के किसी भी मंत्री के पास उसके शव पर माल्यार्पण करने के लिए समय नहीं था. यहाँ तक कि सत्तारूढ़ दलों के किसी छुटभैय्ये नेता के पास भी आज शहीद के लिए वक़्त नहीं था जबकि अबसे कुछ देर बाद जब भारत के प्रधानसेवक जब पटना में जनसभा को संबोधित करने के लिए उसी पटना हवाई अड्डे पर उतरेंगे तो बिहार के सारे मंत्री उनकी अगवानी में पलक पांवड़े बिछाए एक पैर पर खड़े मिलेंगे. क्या यही सम्मान है हमारे सियासतदानों की नज़रों में शहीदों के सर्वोच्च बलिदान का? क्या यही उनका राष्ट्रवाद है?
मित्रों, पिछले दिनों एक ऐसी खबर मुझे अख़बार में पढने को मिली जिसने मुझे उद्वेलित करके रख दिया. खबर बिहार के शहर मुजफ्फरपुर से थी. आप जानते होंगे कि स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रथम शहीद खुदी राम बोस को यहाँ ११ अगस्त १९०८ को फांसी दी गई थी. तब १९ वर्षीय खुदी राम ने कहा था कि वो जल्द-से-जल्द फांसी पर चढ़ना चाहता है ताकि दोबारा जन्म लेकर दोबारा देश के लिए फांसी पर चढ़ सके. उसी खुदीराम का समाधि-स्थल आज बदहाल है और कुत्ते उस पर पेशाब कर रहे हैं. वो शहर भर के आवारा कुत्तों का विश्रामालय बन गया है.
मित्रों, जगदम्बा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ ने १९१६ में लिखा था कि
उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा
चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा
ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल
पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़
न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा.
मित्रों, हमने सुना है कि इन दिनों पूरी दुनिया में भारत की कामयाबी पूरे उरूज और शबाब पर है फिर क्यों शहीदों की मजारों पर मेले नहीं लग रहे बल्कि कुत्ते पेशाब कर रहे हैं? जब भी मुझे यह पढने-सुनने को मिलता है कि सैनिक की जमीन पर गाँव के दबंगों ने कब्ज़ा कर लिया और शिकायत कर पर थानेदार ने उसे अपमानित किया तो क्या बताऊँ कि मेरे दिल पर क्या गुजरती है? ऐसे सलूक तो उनके साथ अंग्रेजों के राज में भी नहीं होता था.
मित्रों, कुल मिलाकर मैं चाहता हूँ कि अर्द्धसैनिक बलों को भी पेंशन दिया जाए हमें भले ही नहीं दिया जाए, अर्द्धसैनिक बल के उन जवानों  को भी शहीद का दर्जा दिया जाए जो देश की रखवाली करते हुए हँसते-हँसते अपने प्राण उत्सर्ग करते हैं, साथ ही सैनिकों-अर्द्धसैनिकों को सामजिक सम्मान मिले, उनकी संपत्ति की समाज उसी तरह रक्षा करे जैसे वे हमारे सरहदों की करते हैं न कि राष्ट्रवाद वोट बटोरने का साधन मात्र बनकर रह जाए;राष्ट्रवाद सिर्फ एक नारा बनकर रह जाए.

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