सोमवार, 11 मार्च 2019

जनता का घोषणा-पत्र

मित्रों,चुनाव का डंका बज चुका है. पूरा कार्यक्रम आपने टीवी पर देख भी लिया होगा. कुछ ही दिनों में देश की सभी पार्टियाँ अपना घोषणा-पत्र जारी करना शुरू करेंगी. मैं जानता हूँ यह काफी मुश्किल काम है. और शायद उससे भी मुश्किल काम है जनता का घोषणा-पत्र तैयार करना कि जनता क्या चाहती है.
मित्रों, जहाँ तक मुझे लगता है इस बार के चुनावों में पाकिस्तान सबसे बड़ा मुद्दा रहनेवाला. पुलवामा और एयर स्ट्राइक के बाद देश की जनता जानना चाहती है कि कौन-सी पार्टी किस तरफ है? किसकी जीत से पाकिस्तान में दिवाली के पटाखे फूटेंगे और किसकी जीत पर वहां के लोग मुहर्रम मनाएंगे? कौन-सा दल पाकिस्तान का राम नाम सत करना चाहता है और कौन-सा दल मजबूत पाकिस्तान के पक्ष में है? कौन-सा दल भारतीय सेना पर गर्व करता है और कौन-सा दल भारतीय सेना को बलात्कारियों का संगठन मानता है? कौन-सा दल चीन को भारत का दीर्घकालिक शत्रु मानता है और कौन-से दल को चीन भारत से भी ज्यादा जान से प्यारा है? कहना नहीं होगा इस बार देश की जनता पाकिस्तान से आर या पार के मूड में है और चाहती है कि देश में इस तरह की सरकार बने कि २०२४ के चुनाव आते-आते पाकिस्तान दुनिया के नक़्शे से ही समाप्त हो जाए और अगर बचा भी रहे तो उसका क्षेत्रफल एक-चौथाई रह जाए. मैं समझता हूँ कि आज भी देश की जनता के लिए राष्ट्र और राष्ट्र का सम्मान सर्वोपरि है और आगे भी रहेगा.
मित्रों, देश की जनता जानती है और मानती है कि जनसँख्या-विस्फोट भारत की समस्त समस्याओं की जड़ है. जब तक देश की जनसंख्या-वृद्धि अनियंत्रित रहेगी देश असंख्य समस्याओं से जूझता रहेगा. कृषि के लिए जमीन घटती जाएगी और अंत में फिर से देश में उसी तरह के अकाल पड़ेंगे जैसे १०० साल पहले पड़ा करते थे. इसलिए देश की जनता चाहती है कि सरकार अविलम्ब ऐसी जनसँख्या नीति लाए जिससे जनसँख्या-विस्फोट पर प्रभावी लगाम लग सके. मैं समझता हूँ कि ट्राफिक जाम, अस्पतालों में भीड़, ट्रेनों में सीटों का न मिलना, बेरोजगारी आदि समस्याओं पर तभी लगाम लगाया जा सकता है जब जनसँख्या-वृद्धि को रोका जाएगा. सवाल उठता है कि जब जानवरों की संख्या बढती है तो उसपर लगाम लगाने की मांग भी उठने लगती है तो फिर आदमी की संख्या को भी क्यों नहीं  नियंत्रित किया जा रहा?
मित्रों, देश की जनता के लिए तीसरा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है शिक्षा. हम जानते हैं कि दुनिया के २०० सर्वोत्तम विश्वविद्यालयों में भारत का कोई विश्वविद्यालय नहीं है जबकि आजादी मिले ७५ साल हो चुके हैं. जबसे आर्थिक उदारीकरण शुरू हुआ सरकारों ने शिक्षा की तरफ ध्यान ही देना बंद कर दिया. आज भी देश के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षकों की आधी सीटें खाली है. प्राथमिक शिक्षा का स्तर इतना गिर गया है कि अब गरीब-से-गरीब व्यक्ति भी उनमें अपने बच्चों का नामांकन नहीं करवाना चाहते. दूर-दराज के इलाकों में भी माउंट लिटेरा, गोयनका जैसे बड़े-बड़े उद्योगपतियों के स्कूल खुल गए हैं जो वास्तव में लुटेरे हैं. जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसे कमाना है और शिक्षा के प्रचार-प्रसार से जिनका दूर-दूर तक कोई भी लेना-देना नहीं है. सवाल उठता है कि अमीरों के बच्चे तो इन स्कूलों में पढ़ लेंगे लेकिन गरीबों के बच्चों को कौन पढ़ाएगा? और अगर उनको पार्टियाँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दे सकती तो हटा दें संविधान से समानता शब्द को उन प्रत्येक स्थानों से जहाँ-जहाँ भी यह शब्द आया है और लिख दें कि भारत में लोकतंत्र नहीं है कुलीनतंत्र है.
मित्रों, देश की जनता के समक्ष आज भी न्याय का मिल पाना टेढ़ी खीर है. डॉक्टर, उद्योगपति, पुलिस, जज, क्लर्क, अधिकारी, जनप्रतिनिधि सभी भ्रष्ट हैं. हालाँकि वर्तमान सरकार ने सीधे लाभार्थी के खाते में पैसे डालकर इस पर लगाम लगाने की कोशिश की है लेकिन अभी तक भ्रष्टाचार और विलंबित न्याय की समस्या पर प्रभावी नियंत्रण लगता दिख नहीं रहा है. पूरा देश परेशान है कि अन्याय होने पर जाएँ तो जाएँ कहाँ और तब कहाँ जाएँ जब अन्यायी सत्ता पक्ष का बड़ा नेता हो?
मित्रों, इसके अतिरिक्त खेती-किसानी से जुड़े मुद्दे भी इस बार के चुनावों में काफी महत्वपूर्ण रहनेवाले हैं.  सांढ़ों-नीलगायों से पूरे देश के किसान परेशान हैं और खेती छोड़ना चाहते हैं. साथ ही देश पर जान न्योछावर करनेवालों अर्द्धसैनिकों को शहीद का दर्जा और पूरा पेंशन भी जनता की मांगों में शामिल रहने वाला है.
मित्रों,इसके साथ ही भारत की जनता चाहती है कि देश में प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यतानुसार पारिश्रमिक और काम मिले. आज भी देश का क्रीम विदेश पलायन कर जाता है क्योंकि अपने देश कोई उसकी क़द्र ही नहीं करता. इस समय देश में सबसे ख़राब हालात शिक्षित बेरोजगारों की है. या तो उनको काम नहीं मिल रहा और अगर मिल भी रहा है तो काफी कम वेतन पर. बैंक भी लोन नहीं दे रहे. बेचारे क्या करें और कहाँ जाएँ?
मित्रों, जहाँ तक मेरी सोंच की सीमा है मैंने अपने दिमागी घोड़े दौडाए. मैं बहुत छोटा आदमी हूँ और मेरी क्षमता काफी कम है इसलिए अगर आपको ऐसा लगता है कि मुझसे कुछ छूट गया है तो बिलकुल भी संकोच न करें और टिपण्णी द्वारा इस सूची को पूर्ण करने में सहयोग दें.

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