शनिवार, 20 अप्रैल 2019

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की उम्मीदवारी पर बवाल क्यों?


मित्रों, जबसे भोपाल लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी ने अपने उम्मीदवार की घोषणा की है पूरा विपक्ष जैसे सर के बल खड़े होकर विधवा-विलाप कर रहा है. कारण आप भी जानते हैं, दरअसल भाजपा ने वहां से प्रखर राष्ट्रवादी और देशभक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को टिकट दिया है. यह वही प्रज्ञा सिंह ठाकुर हैं जिसे सोनिया-मनमोहन की सरकार ने भगवा आतंकवाद की झूठी व पूर्णतया परिकल्पित थ्योरी के लिए बलि का बकरा बनाने का असफल किन्तु वीभत्स प्रयास किया था.
मित्रों, हुआ यह था कि मालेगांव की मक्का मस्जिद में आठ सितंबर, 2006 को हुए विस्फोटों में 37 लोग मारे गए तथा 125 घायल हुए। मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को भी विस्फोट हुआ जिसमें सात लोगों की मौत हो गई। विस्फोटों की जाँच के लिए गठित एटीएस ने नौ लोगों को प्रतिबंधित संगठन सिमी का सदस्य बताते हुए गिरफ्तारी की। उसका कहना था कि इन सभी ने पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की मदद से संवेदनशील कस्बे मालेगांव में विस्फोट करवाए। गिरफ्तार लोगों के नाम थे-नूरुल हुदा, रईस अहमद, सलमान फारसी, फारुख मकदूमी, शेख मोहम्मद अली, आसिफ खान, मोहम्मद जाहिद, अबरार अहमद और शब्बीर अहमद। बाद में जांच सीबीआइ को सौंप दी गई और उसने भी एटीएस की जांच पर ही मुहर लगा दी। उधर, महाराष्ट्र एटीएस ने मुंबई पुलिस कमिश्नर हेमंत करकरे के नेतृत्व में भी इसकी समानान्तर जांच की और इस नतीजे पर पहुँची कि विस्फोटों के तार प्रज्ञा ठाकुर से जुड़े थे. साध्वी प्रज्ञा को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे उस अपराध में शामिल होने के लिए अपनी संलिप्तता स्वीकार को बाध्य करने के लिए अंतहीन और अकल्पनीय यातना की हरेक सीमा पार कर ली गई. उसे नंगा करके उल्टा टांग कर पुरुष पुलिसकर्मियों द्वारा इतना पीटा गया कि उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गयी और कैंसर भी हो गया. न सिर्फ पीटा बल्कि जबरन अंडा खिलाया गया और अश्लील पोर्न विडियो दिखाया गया. मुम्बई के पुलिस कमिश्नर हेमंत करकरे पर तो जैसे धुन सवार थी कि कैसे मालेगांव कांड में उसकी संलिप्तता को किसी भी तरह और किसी भी कीमत पर यहाँ तक कि मानवता की कीमत पर भी साबित कर दे और कांग्रेस नेतृत्व की भगवा आतंकवाद की परिकल्पना को जबरन सच साबित कर दे जिससे कांग्रेस नेतृत्व खुश हो जाए.
मित्रों, बाद में हमने और आपने जब दिल्ली में सरकार बदली और जांच में हिन्दू आतंकवाद का कोई सबूत नहीं मिला तब १३ अप्रैल २०१६ को अदालत ने क्लीन चिट देकर साध्वी को रिहा करने का आदेश दिया. इसी बीच हेमंत करकरे २६/११ के मुम्बई हमले में मारा गया.
मित्रों, साध्वी को क्लीनचिट देने का अर्थ है कि बमकांड में उनके ख़िलाफ़ जांच एजेंसियों के पास ऐसे सबूत नहीं थे, जिससे उन्हें दोषी साबित किया जा सकता। इसका यह भी मतलब होता है कि साध्वी और अन्य दूसरे पांच आरोपियों को बिना ठोस सबूत के ही गिरफ़्तार कर लिया गया था। यानी जिस अपराध ने उनकी ज़िंदगी के आठ कीमती साल छीन लिए, उस अपराध को उन्होंने किया ही नहीं था।
मित्रों, अब आप ही बताईए कि भाजपा ने भोपाल से साध्वी को टिकट देकर क्या गलत किया? हमारे देश की पुलिस कैसे काम करती है इसके बारे में मैं आपको अपनी एक आपबीती सुनाना चाहूँगा. हुआ यह कि मैं अपना घर बनवा रहा था और वो भी हाजीपुर में वैशाली महिला थाने के पीछे. थानेदार थी पूनम कुमारी. अब उसका प्रोन्नति देकर तबादला हो चुका है. मैंने घर बनाने के दौरान ईटें मंगवाई. काम कुछ कारणों से रूका हुआ था. एक दिन सुबह जब मैं निर्माण-स्थल पर पहुंचा तो पाया कि मेरी ईटें गायब है. मैंने थाने में पूछा तो कोई बताने को तैयार नहीं. फिर मैंने देखा कि थाने में फूलों के नए पौधे लगाए गए हैं और उनकी घेराबंदी के लिए मेरी ईटें लगा दी गई हैं. फिर मैंने मजदूर बुलवाए ईंटें उठवाने के लिए. मजदूरों को देखते ही महिला थानेदार मुझे गालियाँ देने लगीं और धमकी दी कि बलात्कार के झूठे में मुकदमे में फंसा देगी. फिर मैंने पहले बिहार के डीजीपी को और फिर वैशाली एसपी गौरव कुमार को फोन किया. पत्रकार होने के कारण दोनों मुझसे परिचित थे. गौरव जी ने फोन उठाया और फोन करने का कारण पूछा. फिर उन्होंने थानेदारनी को फोन पर वो डांट लगाई कि वो कमरे की सिटकनी अन्दर से बंद करके कैद हो गयी.
मित्रों, अब आप ही बताईए कि अगर मैं पत्रकार नहीं होता तो मेरा क्या होता और मैं आज कहाँ होता? एक बार हाजीपुर, हिंदुस्तान के तत्कालीन ब्यूरो चीफ मानपुरी जी ने मुझे बताया था कि उनके पास ऐसी सैंकड़ों सच्ची कहानियां हैं जिनमें पुलिस ने ऐसे लोगों को हत्या-डाका आदि मामलों में गिरफ्तार किया और सजा दिलवाई जिनका उन मामलों से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध ही नहीं था. अगर हमारी न्यायपालिका, सीबीआई, पुलिस आदि सही होती तो सरेआम राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के कनाट प्लेस में हत्या कर दी गई जेसिका लाल मामले में कोर्ट यह नहीं कहती कि जेसिका की हत्या तो हुई मगर उसकी किसी ने हत्या नहीं की. इसी तरह न जाने पुलिस द्वारा रिश्वत लेकर हमारे देश में कितनी हत्याओं को आत्महत्या में बदल जा चुका है.
मित्रों, अब बात करते हैं कांग्रेस की. कांग्रेस के बारे में जितना कहा जाए उतना ही कम है. कांग्रेस पूरी तरह से हिन्दू-विरोधी पार्टी है और भारत को हिन्दू-विहीन बनाना चाहती है. कांग्रेस को पता ही नहीं था कि भाजपा आधुनिक जयचंद दिग्विजय सिंह के खिलाफ उसी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को चुनाव में खड़ा कर देगी जिस पर अपने हिन्दू-विरोधी एजेंडे को पूरा करने के लिए उसने अनगिनत जुल्म करवाए थे. ऐसा भी नहीं है कि मैंने कभी कांग्रेस को आदतन मुफ्त की सलाह नहीं दी लेकिन हम करें तो क्या करें-
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम. लोचनाभ्याम विहीनस्य दर्पणं किं करिष्यति.
अब कांग्रेस की प्रज्ञा यानि बुद्धि को बहन प्रज्ञा सिंह ठाकुर ही ठिकाने पर लाएगी और ठिकाने पर लाएगी भारत की सवा अरब जनता.

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