गुरुवार, 26 सितंबर 2019

नीतीश आवश्यकता हैं या बोझ?


मित्रों, एक अरसा हो गया जबसे मैं कहता आ रहा हूँ कि बिहार ने जिस नीतीश कुमार को अपने लिए वरदान समझा था वे अब उसी बिहार के लिए अभिशाप बन चुके हैं. महाभारत कहता है कि जिस राज्य में अराजकता का बोलबाला होता है वो राज्य ही समाप्त हो जाता है. कमोबेश इन दिनों के बिहार की वैसी ही स्थिति है. संक्षेप में अगर हम कहें तो आज के बिहार में सरकार नाम की चीज ही नहीं है. हर जगह मनमानी है, जिसकी लाठी उसकी भैंस है. कहीं जनता मनमानी कर रही है तो कहीं राज्य सरकार के अधिकारी-कर्मचारी. बिहार सरकार ने ऐसी कोई सुविधा भी नहीं दी है जिस पर कोई अपना दुखड़ा रो सके और अगर ऐसा कोई चैनल है भी तो पूरी तरह से बेकार. अगरचे तो उसपर कुछ लिखा ही नहीं जा सकता और अगर लिख भी दिया तो होता कुछ भी नहीं. पहले नीतीश कुमार जनता दरबार भी लगाते थे लेकिन बाद के दिनों में उसे भी बंद कर दिया क्योंकि उसमें आनेवाले कभी-कभी आक्रामक हो जाते थे जिससे सरकार की बदनामी होती थी.
मित्रों, कुल मिलाकर इन दिनों बिहार रामभरोसे है हालाँकि सरकार में भाजपा भी सुशील मोदी एंड कंपनी के साथ शामिल है. ये वही सुशील मोदी हैं जिनको एक समय नीतीश कुमार में भारत का भावी प्रधानमंत्री दिखता था. दुर्भाग्यवश आज भी सुशील मोदी पूरी तरह से नीतीश-भक्त हैं और नहीं चाहते कि बिहार का विकास हो.
मित्रों, हो सकता है कि अगर भाजपा एक बार फिर से नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में बिहार का चुनाव लडती है तो प्रचंड बहुमत से जीत जाए लेकिन सवाल उठता है कि भाजपा का उद्देश्य क्या है? सिर्फ चुनाव जीतना या बिहार का विकास करना? फिर भारतमाता के वामांग का क्या होगा? इस बात में अब कोई संदेह नहीं रहा कि नीतीश कुमार बिहार के विकास में सबसे बड़ी बाधा बन चुके हैं. बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है कि भाजपा के भीतर से भी नीतीश कुमार जी के खिलाफ स्वर उठने लगे हैं. पिछले दिनों विधान पार्षद डॉ. संजय पासवान जैसे विद्वान नेता इस बात की मांग कर चुके हैं कि नीतीश कुमार जी को स्वेच्छा से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. जाहिर-सी बात है कि सुशील मोदी जैसे सत्तालोलुप उनसे सहमत नहीं हैं. लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह किस्सा यही पर समाप्त हो जाने वाला है क्योंकि गिरिराज सिंह जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काफी निकट माने जाते हैं इन दिनों बिहार में काफी सक्रिय हो गए हैं. दूसरी तरफ नीतीश कुमार भी संघ के नेताओं से चोरी चोरी चुपके चुपके बैठक कर अपनी कुर्सी बचाने की जी-तोड़ या दूसरे शब्दों में कहें तो अंतिम कोशिश कर रहे हैं.
मित्रों, इन दिनों जिस तरह बिहार में अपराधियों का मनोबल बढ़ा हुआ है और जिस तरह बैंक से पैसा निकालना तक बिहार में जानलेवा कदम हो गया है उससे यह तो निश्चित है कि नीतीश अब फितिश यानि फिनीश हो चुके हैं इसलिए उनको अब वानप्रस्थ आश्रम की ओर प्रयाण कर ही जाना चाहिए. लेकिन सवाल उठता है कि अगर वे ऐसा करने से मना कर देते हैं तो क्या भाजपा अकेले बिहार में चुनाव लड़ने का जोखिम उठाएगी? वैसे मुझे लगता है कि आज नहीं तो कल भाजपा को सुशासन की लाश को अपने कंधे से उतार फेंकना ही होगा. जब भाजपा ऐसा महाराष्ट्र में कर सकती है तो बिहार में क्यों नहीं? अभी सबसे अच्छा तो यह होता कि केंद्र सृजन घोटाला, मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड समेत सारे घोटालों की सीबीआई से निष्पक्ष जांच करवा देता जिससे छोटे भाई भी बड़े भाई के पास पहुँच जाते. साथ में अपने परम भक्त सुशील मोदी को भी लेते जाते.

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