मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019

चिन्मयानंद और हिंदुत्व


मित्रों, हिन्दू धर्म में ४ आश्रमों को व्यवस्था की गई है. मानव जीवन को १०० वर्षों का मानकर चार भागों में विभाजित किया गया है. जन्म से लेकर २५ वर्ष की आयु तक के समय को ब्रह्मचर्य, २५ से ५० तक के समय को गृहस्थ, ५० से ७५ तक के समय को वानप्रस्थ और ७५ से १०० वर्ष तक की आयु को संन्यास आश्रम कहा गया है. लेकिन बहुत-से लोग जिनमें वैराग्य की भावना प्रबल होती थी वे सीधे संन्यासी ही बन जाते हैं और ऐसा लाखों वर्षों से होता आ रहा है. प्रखर संन्यासी विवेकानन्द के अनुसार संन्यासी वो है जो पूरी तरह से काम,क्रोध,मद,मोह और लोभ से मुक्त हो और माया जनित समस्त विकारों से पूर्णतया स्वतंत्र हो. जिसका पूरा जीवन सिर्फ और सिर्फ मानवों और जीव-जगत के भले के लिए समर्पित हो. भारत में ऐसे तेजस्वी संन्यासियों की लम्बी परंपरा रही है.
मित्रों, मध्यकाल में ही बहुत-से आलसी लोग घर-बार छोड़ कर भिक्षाटन पर गुजारा करने और बिना परिश्रम के आराम की जिंदगी जीने के लालच में संन्यासी बनने लगे थे. संत कबीर ने ऐसे लोगों पर कटाक्ष करते हुए उसी समय कहा था-
मन न रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा।। टेक।।
आसन मारि मंदिर में बैठे, नाम छाड़ि पूजन लागे पथरा।। 1।।
कनवां फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले, दाढ़ी बढ़ाय जोगी होइ गैले बकरा।। 2।।
जंगल जाय जोगी धुनिया रमौले, काम जराय जोगी होइ गैलै हिजरा।। 3।।
मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ा रंगौले, गीता बाँचि के होइ गैले लबरा।। 4।।
कहहि कबीर सुनो भाई साधो, जम दरबजवाँ बाँधल जैवे पकरा।। 5।।
मित्रों, आप पटना से दिल्ली जानेवाली किसी भी ट्रेन में बैठ जाईए तो पाएंगे कि इस बीच कम-से-कम १०० भिखारी आपसे पैसे मांगने आएंगे. आप दया से द्रवित होकर १० का नोट दे भी देंगे लेकिन कभी आपने सोंचा है कि यह उनकी मजबूरी नहीं है बल्कि व्यवसाय है. एक-एक भिखारी सुबह से शाम तक कम-से-कम १००० रूपया कम लेता है आपसे भी कहीं ज्यादा और इस तरह आप एक गलत प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे होते हैं. आरएसएस प्रचारक इन्द्रेश कुमार के अनुसार ऐसे लोगों की संख्या भारत में २० करोड़ है. मेरा अनुमान है कि इनमें से ५ करोड तो हिन्दू संन्यासी होंगे.
मित्रों, अभी मैं हरिद्वार गया हुआ था और मैंने वहां पाया कि हमारी धर्मभीरूता का जमकर दोहन किया जा रहा है. जिन स्थानों पर २००६ में एक मंदिर था वहां अब कई-कई मंदिर बन गए हैं जो वास्तव में कलेक्शन सेंटर हैं. इसी तरह घाट पर भी कई लोग झूठा चंदा काटते हुए मिल जाएंगे. मुझे तो ऐसा लगा कि जैसे यह पूरा शहर ही भिखारियों का शहर है.
मित्रों, पहले भी लोग संन्यास धारण करते थे और शंकराचार्य और विवेकानंद जैसे संन्यासियों ने तो अपने छोटे से जीवन में ही हिंदुत्व को नई ऊंचाई दी. लेकिन इन दिनों भगवा और हिंदुत्व के नाम पर भारत में जो कुछ हो रहा है वो सही तो नहीं ही है शर्मनाक भी है. कोई भी लम्पट भगवा कपडे पहनकर साधू बन जाता है और हमारी धर्मभीरुता का लाभ उठाकर अकूत धन इकठ्ठा कर लेता है. फिर आलिशान आश्रम बना लेता है, दिन-रात ऐसे-ऐसे भोग-विलास करता है जो हम गृहस्थों के लिए कदापि संभव नहीं है. कभी-कभी तो नेता भी बन जाता है और मंत्री भी लेकिन उसके कर्म तब भी गर्हित ही होते हैं. फिर खुद बदनाम होकर हिंदुत्व को भी बदनाम करता है.
मित्रों, १९८७ में जब मैं सातवीं कक्षा में था मेरे गाँव के बगल में वासुदेवपुर चंदेल में यज्ञ हुआ था. तभी मैंने देखा था कि इन यज्ञों से किसी को कोई लाभ नहीं होता बल्कि लाभ होता है इसमें पधारनेवाले शंकराचार्यों और कथित संन्यासियों को जो दिन-रात मलाई और मेवे खाते हैं. ये लोग बिना एसी के एक पल भी नहीं रह सकते और बिना कार के एक कदम भी नहीं चल सकते. उनमें से कुछेक का वजन तो इतना ज्यादा था कि उनके चलने से धरती प्रकम्पित होती थी. इन मठाधीशों से पूछा जाना चाहिए कि ये जिस तरह के आचरण की अपेक्षा अपने श्रोताओं से करते हैं क्या इनका खुद का आचरण वैसा है?
मित्रों, स्वामी चिन्मयानन्द जैसे कुछ संन्यासियों की करतूतों को देखकर तो इतनी शर्मिंदगी होती है और इतना क्रोध आता है कि क्या कहें? जब कामवासना पर नियंत्रण नहीं रख सकते तो क्यों नहीं शादी करके घर बसाते हो? एक तरफ तो पवित्र भगवा धारण कर रखा है और दूसरी तरफ इतना नीच कर्म कर रहे हो कि बड़ा-से-बड़ा कुकर्मी भी शरमा जाए. कुछ लोग इन दिनों इन्टरनेट पर यह साबित करने में लगे हैं कि मुस्लिम और इसाई धर्माचार्य भी ऐसा ही कर रहे हैं. मुझे नहीं है लेना-देना इस बात से कि बांकी धर्म के लोग क्या कर रहे हैं लेकिन मुझे हिन्दू धर्म में ऐसा व्यभिचार कतई बर्दाश्त नहीं. ऐसे लोगों को अविलम्ब फांसी चढ़ा देना चाहिए क्योंकि इन्होंने परम पवित्र संन्यास आश्रम को बदनाम किया है. लेकिन हो क्या रहा है? सरकार उल्टे इनका ही बचाव कर रही है और पीडिता को ही अपराधी बना दिया है जैसे उसने इनके कुकर्मों को उजागर करके बहुत बड़ा अपराध कर दिया है.
मित्रों, हम भाजपा और आरएसएस को बता देना चाहते हैं कि हमें हिंदुत्व का अभ्युदय तो मंजूर है लेकिन हिंदुत्व के नाम पर अनाचार और अत्याचार फ़ैलाने को हम हरगिज बर्दाश्त नहीं कर सकते. मनु महाराज कहते हैं-
    धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।
    धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।। (मनुस्‍मृति ६.९१)
    जो व्यक्ति सामान्य धर्म तक का पालन नहीं कर सकता वो संन्यासी कैसे हो सकता है? श्रीमद्भगवदगीता कहती है कि संन्यास का एकमात्र लक्ष्य मोक्ष होता है और मोक्ष का अर्थ है सभी प्रकार के सांसारिक बंधनों से मुक्ति। बंधन वे जो मनुष्य को संसार से बांध कर रखते हैं, जो सांसारिक सुखों और सुविधाओ के प्रति आसक्ति पैदा करते हैं। इस आसक्ति के कारण हम अनेक तरह की चिंता, दुःख, अशांति, अभाव, निराशा, हताशा, जीवन के प्रति अवसाद और उदासीनता से घिरे रहते हैं। ये दुःख और चिंता जीवन पर्यन्त चलती रहती हैं। इसलिए शंकराचार्य ने संन्यासियों के लिए नारी को नरक का द्वार बताया है तो वहीँ रामकृष्ण परमहंस ने आजीवन कामिनी और कंचन को स्पर्श तक नहीं किया था.
मित्रों, कुल मिलाकर संन्यास आश्रम में आ गई विकृतियों को दूर करने का समय आ गया है. समस्त मठों और अखाड़ों में सुधार किया जाना चाहिए जिससे आपादमस्तक स्वर्णाभूषणों से लदे-पदे रहनेवाले ५ स्टार बाबाओं व दिन-रात स्त्रियों के साथ कामाचार में लगे दुष्टों को संन्यास आश्रम से बाहर किया जा सके.


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