गुरुवार, 28 मई 2020

माफ़ी वीर वीर सावरकर को नमन

मित्रों, आज भारतमाता के महान पुत्र विनायक दामोदर सावरकर का जन्म दिन है जिनको हम वीर सावरकर के नाम से ज्यादा जानते हैं. सावरकर जिन्होंने भारत को सबसे पहले हिंदुत्व का दर्शन दिया. सावरकर जिन्होंने एक ऐसे समरस हिन्दू समाज की कल्पना की जिसमें कोई जाति-भेद नहीं हो. सावरकर जिन पर भारत के तथाकथित राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद गाँधी के अलावा कर्जन वाईली और जनरल डायर की हत्या करवाने का आरोप है.
मित्रों, वह सावरकर ही थे जिन्होंने अंग्रेजों की राजधानी लन्दन में रहकर स्वतंत्रता की अलख जगाई. वह सावरकर ही थे जिन्होंने १८५७ के विद्रोह को सबसे पहले भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहने का साहस किया. लेकिन जो लोग हिन्दू और हिंदुत्व विरोधी राजनीति करते हैं और भारत के समस्त हिन्दुओं के धर्मान्तरण अथवा भारत में इस्लामिक शासन की पुनर्स्थापना के सपने देखते हैं उनको सावरकर में त्याग, साहस, वीरता, देशभक्ति आदि गुण दिखाई ही नहीं देते दिखता है तो बस उनकी एक ही करनी कि सावरकर ने अंग्रेजों से माफ़ी मांगी थी.
मित्रों, आपने भी शायद प्रकाश झा की अपहरण फिल्म देखी होगी. आपने देखा होगा कि फिल्म में हीरो विलेन के पास काम मांगने जाता है. तब विलेन उससे पूछता है कि वो उसके लिए क्या कर सकता है. हीरो कहता है कि वो उसके लिए अपनी जान दे सकता है. तब विलेन कहता है कि मैं क्या करूंगा तेरी जान लेकर? क्या कीमत है तुमरी जान की? तब हीरो जवाब में कहता है कि मैं आपके लिए जान ले भी सकता हूँ.
मित्रों, मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हमेशा जान दे देने को उद्धत रहना सही ही नहीं होता कभी-कभी अपनी जान बचाकर शत्रु को ज्यादा नुकसान पहुँचाना ज्यादा श्रेयस्कर होता है. चाणक्य नीति को देख लीजिए. पाकिस्तान की कूटनीति को देख लीजिए. चीन की १९६२ की कूटनीति को देख लीजिए. प्रत्यक्ष में युद्ध के समय भी वो हिंदी-चीनी भाई-२ कर रहा था जबकि उसकी सेना भारत के भीतर धंसी आ रही थी. सीमा पर लगभग रोजाना जवान शहीद होते हैं. उनमें से जो जवान आसानी से मारे जाते हैं क्या आपने उनको कभी कोई पदक मिलते देखा है? बल्कि पदक उनको ही मिलता है जो शत्रु को भारी नुकसान पहुंचाते हैं भले ही वे शहीद न भी हुए हों. 
मित्रों, सावरकर भी शहीद हो सकते थे. बहुत पहले २०वीं शताब्दी की शुरुआत में ही शहीद हो सकते थे. लेकिन अगर वे मर जाते तो इससे देश को क्या मिलता? आपने भगत सिंह अ लिजेंड फिल्म में देखा होगा कि चंद्रशेखर आजाद चाहते थे कि भगत सिंह बम फेंककर भाग जाएँ. लेकिन भगत सिंह नहीं माने. मैं आज आपसे पूछता हूँ कि भगत सिंह की फांसी से देश को क्या मिला? आज़ादी के बाद कांग्रेस की सरकार बनी. उसी कांग्रेस की जो भगत सिंह को आतंकवादी मानती थी और जिसके सबसे बड़े नेता मोहन दास करमचंद गाँधी ने भगत सिंह को बचाने की रंच मात्र भी कोशिश नहीं की. नेहरु ने खुद ही खुद को भारत रत्न दे दिया जो भगत सिंह को आज तक नहीं मिला. जिस विचारधारा के प्रचार के लिए भगत सिंह ने गिरफ़्तारी दी थी आज भगत सिंह की वो विचारधारा कहाँ है? कहीं नहीं. 
मित्रों, क्या आपने कभी सोंचा है कि सावरकर अगर जेल से जीवित नहीं लौटते तो क्या होता? क्या आपने इतिहास की किताबों में पढ़ा है कि गाँधी और कांग्रेस ने आजादी दिलाने के नाम पर भारत के हिन्दुओं के साथ कितना बड़ा धोखा किया? कहने को तो मजबूरी में देश का बंटवारा किया लेकिन क्या वो बंटवारा भी देश खासकर हिन्दुओं के साथ धोखा नहीं थ? मुसलमानों  को अलग देश दे दिया लेकिन भविष्य में नासूर बनने के लिए पाकिस्तान से भी कहीं ज्यादा मुसलमानों को जो कुछ महीने पहले तक अलग देश मांग रहे थे भारत में ही रोक लिया. इस मामले में अम्बेदकर की आपत्तियों को भी गाँधी ने दरकिनार कर दिया जो कह रहे थे कि भारत से सारे मुसलमानों को पाकिस्तान भेज दिया जाए और पाकिस्तान से सारे हिन्दुओं को भारत बुला लिया जाए. 
मित्रों, आज भारत में मुसलमान क्या कर रहे हैं? भारत की राजधानी दिल्ली में शाहीन बाग़ और हिन्दुओं का नरसंहार. हिन्दुओं के स्कूल, कारें, दुकान और घर सब जला दिया उन्होंने इसी फरवरी में. पुलिस की तो कोई क़द्र ही नहीं रही उनकी नज़रों में. पुलिस को देखते ही वे पत्थर फेंकने लगते हैं. वे राष्ट्र गान और राष्ट्र गीत के अपमान को अपना गौरव मानते हैं. वे न तो भारत के कानून को मानने को तैयार हैं और न ही भारत की सरकार को. उनके लिए उनका मजहब भारत के संविधान से भी ऊपर है. सावरकर दूरदर्शी थे और समझ गए थे कि भविष्य में भारत में क्या होनेवाला है. मैं नहीं जानता कि गाँधी की हत्या में सावरकर कहाँ तक शामिल थे लेकिन यह मानता हूँ कि गाँधी महाभारत के भीष्म की तरह अधर्म के पक्ष में थे और अगर उनका वध नहीं होता तो छद्म मुसलमान मोहम्मद गाँधी देश और हिन्दू समाज को और भी ज्यादा नुकसान पहुंचाते. 
मित्रों, अभी-अभी पृथ्वीराज चौहान की १९ मई को जयंती मनाई गई. लोगों ने श्रद्धा सुमन के ढेर लगा दिए लेकिन मैं पृथ्वीराज को एक महान व्यक्ति नहीं मानता हूँ. आदर्श अपनी जगह है और राष्ट्र अपनी जगह. उस एक व्यक्ति की एक मूर्खता के कारण भारत को सात सौ साल से भी ज्यादा की गुलामी झेलनी पड़ी. न जाने इन सात सौ सालों में कितने मंदिर तोड़ दिए गए, कितनी बार हिन्दुओं का नरसंहार हुआ और कितनी हिन्दू महिलाओं को नंगी करके बगदाद के बाजारों में बेच दिया गया और उसके बाद उनका क्या हुआ होगा आप इसकी सिर्फ कल्पना कर सकते हैं. हिन्दू धर्म के गर्भ से सिख धर्म का जन्म हुआ. गुरु गोविन्द सिंह के बेटों को जीवित दीवार में चुनवा दिया गया. गुरु तेगबहादुर, बाबा बन्दा सिंह बहादुर और संभाजी को असीम यातनाएं देकर मौत के घाट उतार दिया गया.......
मित्रों, इन सबके लिए अगर कोई एक व्यक्ति जिम्मेदार है तो वो पृथ्वीराज चौहान है जिसने पकड़ में आए शत्रु को बार-बार माफ़ी मांगने पर छोड़ दिया. शहीद तो पृथ्वीराज भी हुआ लेकिन उसकी शहादत, वीरता और आदर्श से भारत को क्या मिला? हाँ बार-बार क्षमा मांगनेवाला मोहम्मद गोरी एक बार जीता और उसने कोई गलती या मूर्खता नहीं की. इसलिए मैं कहता हूँ कि सावरकर ने अगर माफ़ी मांगी भी तो वह अपराध नहीं था एक रणनीति थी ठीक उसी तरह जैसे आगरा के किले में कैद कर दिए जाने के बाद छत्रपति शिवाजी ने औरंगजेब से लिखित में माफ़ी मांगी थी क्योंकि उनको लग रहा था कि ऐसा नहीं करने पर क्रूर औरंगजेब उनकी हत्या करवा देगा.  

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