सोमवार, 14 सितंबर 2020

रघुवंश प्रसाद सिंह को श्रद्धांजलि

 

मित्रों, रघुवंश प्रसाद सिंह को मैं तब से जानता हूँ जब मैं चार-पांच साल का रहा होऊंगा. वो मेरे पिताजी से दो बैच पीछे पढ़ते थे. पिताजी महनार हाई स्कूल में थे और रघुवंश बाबू महनार रोड स्टेशन स्थित चमरहरा हाई स्कूल में. मेरे पिताजी से उनकी तब की जान-पहचान थी. मेरे पिताजी की शादी तभी हो गई थी जब वो दसवीं में पढ़ते थे  और मेरा ननिहाल रघुवंश बाबू के पडोसी गाँव में था इस नाते भी रघुवंश बाबू हमारे लिए घर के आदमी थे, मामा थे. रघुवंश बाबू को जेपी आन्दोलन के दौरान पिताजी ने कई बार गिरफ़्तारी से बचाया था. थोडा बड़ा हुआ तो १९८५ में पिताजी सैनिक स्कूल की परीक्षा दिलवाने पटना ले गए तब भी हम रघुवंश बाबू के अगस्त क्रांति मार्ग स्थित मंत्री आवास पर रुके थे. उनकी पत्नी शाम में आकर हम लोगों से मिलती और बातें करती. उनका बड़ा बेटा भी मेरे साथ सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षा देने जाता था. तब रघुवंश बाबू अधिकतर अपने विधानसभा क्षेत्र बेलसंड में रहते. मैं सोंचता कि बेलसंड तो काफी विकसित होगा क्योंकि नेताजी हमेशा क्षेत्र में ही रहते हैं.उस मंत्री आवास की भी एक कहानी पिताजी सुनाते हैं जो उनको स्वयं रघुवंश बाबू ने कही थी. हुआ यह कि रघुवंश बाबू जनता पार्टी की सरकार में मंत्री बने और उनको वह आवास रहने को दिया गया. फिर १९८० में कांग्रेस की सरकार बन गई और रघुवंश बाबू मंत्री नहीं रहे. डॉ. जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री बने तो रघुवंश बाबू को आवास खाली करने की नोटिस दे दी गई. तब अद्भभुत प्रतिउत्पन्नमतित्व के धनी रघुवंश बाबू ने विधानसभा में जगन्नाथ मिश्र जी से कहा बाबा मंत्री पद तो ले लिए अब आवास भी ले लेंगे क्या? और वह आवास फिर से रघुवंश बाबू के पास ही रह गया.

मित्रों, फिर लालू जी आए और पूरे बिहार को जंगल में बदल दिया. तब रघुवंश बाबू लालूजी के साथ ही थे. उन्होंने कभी लालूजी का विरोध नहीं किया. मुझे लगता है कि रघुवंश बाबू सुविधावादी नेता थे. लालू के नाम पर उनको चुनाव जीतना था कोई लालू जी को रघुवंश बाबू के नाम पर जीतना तो था नहीं इसलिए जब तक रघुवंश बाबू जीतते रहे चुप रहे. इस बीच लालू जी ने अनगिनत पाप किए, हत्याएं करवाईं, बलात्कार करवाए, अपहरण करवाए, घोटाले किए. यहाँ तक कि अनपढ़ पत्नी को मुख्यमंत्री बना दिया लेकिन रघुवंश बाबू चुप रहे. दरअसल वे पिछलगुआ नेता थे. पहले कर्पूरी ठाकुर के पिछलगुआ रहे जो उनके नाना के गाँव के थे और बाद में लालू और लालू परिवार के. आगे बढ़कर नेतृत्व देने की उनमें न तो क्षमता थी और न ही हिम्मत. मुझे याद है कि १९९५ के विधानसभा चुनाव के बाद जब राजपूत जाति के लोग उनके पास किसी काम से गए तो उन्होंने यह कहकर उनसे मिलने से मना कर दिया था कि इनलोगों ने उनके दल को वोट नहीं दिया है. लगभग उसी कालखंड में  एक बार जवाहर बाबू जो एलएस कॉलेज में रघुवंश बाबू और रामचंद्र पूर्वे के सहपाठी रह चुके थे और महनार के आरपीएस कॉलेज में गणित के प्राध्यापक थे रघुवंश बाबू के पास अपने बेटे के लिए नौकरी मांगने गए. तब रघुवंश बाबू ने पास में सड़क पर नंग-धडंग खेल रहे बच्चे को दिखाकर कहा कि जवाहर हम तो चाहते हैं कि इस बच्चे को भी नौकरी दे दूं. बेचारे जवाहर बाबू शर्म से पानी-पानी हो गए. तब पिताजी भी जवाहर बाबू के साथ थे.

मित्रों, इसी बीच मेरी छोटी दीदी की शादी १९९६ में बेलसंड के नोनौरा गाँव में ठीक हुई. जब हम तिलक लेकर गाँव गए तो पता चला कि बेलसंड तो बिहार का सबसे पिछड़ा इलाका है. न तो कहीं पर सड़कें थीं और न ही बिजली. कच्ची सड़कों पर कई फुट मोटी धूल की परत. बागमती पर पुल के होने का तो सवाल ही नहीं था. तब मैंने सोंचा कि नेताजी तो हमेशा क्षेत्र में ही रहते थे फिर करते क्या थे क्षेत्र में रहकर.

मित्रों, बाद में रघुवंश बाबू सांसद और केंद्रीय मंत्री बने. मनरेगा लेकर आए जिसके माध्यम से हर साल हजारों करोड़ों की हेरा-फेरी होती है. गड्ढा खोदो और भरो. इस योजना ने किसानों का जीना मुहाल कर दिया. कृषि मजदूर मनरेगा में चले गए. मजदूरी बेतहाशा बढ़ गई. उधर राजद की लगाम लालू जी के हाथों से निकलकर उनके बेटों के हाथों में चली गई और रघुवंश बाबू जैसे लालू जी से भी सीनियर नेताओं की हालत वही हो गई जो जीजा के आने के बाद फूफा की हो जाती है. इधर पार्टी में पूछ नहीं रही और उधर जनता ने भी रिजेक्ट कर दिया. राजपूत उनके साथ थे नहीं पिछड़े भी मोदी के साथ हो लिए. उससे भी बुरा समय तब आया जब लालू जी के बड़े बेटे ने उनको एक लोटा पानी कह दिया. यहाँ मैं आपको बता दूं कि जिस रामा सिंह को लेकर सारा विवाद हुआ वो भी महनार के ही हैं और रघुवंश बाबू भी. रामा सिंह भी हमारे नजदीकी है और महनार स्टेशन के पास स्थित आरपीएस कॉलेज में पिताजी के विद्यार्थी भी रह चुके हैं. यहाँ हम यह भी बता दे कि रामा सिंह रघुवंश बाबू के चचेरे भाई रघुपति को कई बार महनार विधानसभा क्षेत्र में पटखनी दे चुके हैं. बाद में संयोगवश उनकी रघुवंश बाबू से भी टक्कर हो गयी जिसमें रघुवंश बाबू हार गए.

मित्रों, समय का फेर देखिए कि जिन राजपूतों को लालू और लालू परिवार अपना पक्का शत्रु समझते थे लालू के दोनों बेटों को इस बार विधानसभा पहुँचने के लिए उनका ही वोट चाहिए और वो वोट रामा दिलवा सकते हैं रघुवंश नहीं दिलवा सकते थे. सवाल उठता है कि रघुवंश अभी किस दल में थे. शायद किसी दल में नहीं. लेकिन जीवित रहते तो शायद जदयू में जाते. अंत में मैं कहना चाहूँगा कि उन्होंने जाते-जाते बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को पत्र लिखकर किसानों का दिल जीत लिया है. उन्होंने पत्र में मांग की थी कि मनरेगा में संशोधन करके प्रावधान किया जाए कि मनरेगा के मजदूर न सिर्फ एससी-एसटी बल्कि सारे किसानों के खेतों में काम करें और भुगतान सरकार करे. अपने एक आलेख मन रे (सुर में) न गा यानी मनरेगा में हमने भी २०१० में इस आशय की मांग की थी. अगर रघुवंश बाबू की इस अंतिम इच्छा को लागू कर दिया जाता है तो निश्चित रूप से कृषि के क्षेत्र में क्रांति आ जाएगी और किसान समाज हमेशा के लिए उनका ऋणी हो जाएगा.

मित्रों, अंत में मैं यह कहकर विराम चाहूँगा कि तमाम कमियों और गलतियों के बावजूद रघुवंश बाबू घनघोर ईमानदार थे इसमें कोई संदेह नहीं. और लालू जो भ्रष्टाचार के पर्याय हैं की पार्टी में रहकर भी ईमानदार थे ये उनके कद को और भी ऊंचा बनाता है. वो दौर राजनीति में गिरावट का था. लालू जी जबरदस्ती तो सत्ता में आए नहीं थे जनता ने उनको बार-बार चुना था. और उस गिरावट के दौर में भी रघुवंश बाबू गिरे नहीं अपने मूल्यों और सिद्धांतों को कम-से-कम व्यक्तिगत तौर पर बनाए रखा. रघुवंश बाबू श्रीकृष्ण तो नहीं लेकिन भीष्म पितामह तो थे. और दुर्योधनों के इस काल में भीष्म होना भी कोई कम बड़ी बात नहीं है. ऐसे महामानव को श्रद्धांजलि.

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