गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

बधाई हो बलात्कार हुआ है

मित्रों, आप सोंच रहे होंगे कि यह कैसा शीर्षक है? बलात्कार तो शर्मनाक घटना है फिर उसके लिए बधाई क्यों? दरअसल हमारे देश में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो प्रत्येक घटना को राजनैतिक तराजू पर तोलते हैं। कई बार इनकी भाषा चीन या पाकिस्तान की भाषा से भी मेल खाने लगती है। इन्हें हमेशा इंतजार होता है किसी ऐसी घटना का जिससे हिंदू समाज में फूट डाली जा सके। मित्रों, ऐसे राजनैतिक गिद्धों की तब बांछें खिल आती हैं जब इनको पता चलता है कि किसी दलित लड़की के साथ बलात्कार हुआ है और बलात्कारी सवर्ण है. इसमें भी एक शर्त है कि बलात्कार उत्तर प्रदेश में होना चाहिए. अगर बलात्कारी राजपूत हुआ तो सोने पे सुहागा. क्योंकि तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर ऊंगली उठाने का सुनहरा अवसर मिल जाता है. तब योगी आदित्यनाथ योगी आदित्यनाथ नहीं रहते सीधे ठाकुर अजय सिंह बिष्ट हो जाते हैं. मित्रों, लड़की जीवित बच गई तो ठीक और अगर मर गई तो ज्यादा ठीक. फिर लाश पुलिस ने खुद जला दिया तो ठीक और लड़की के परिजनों को मिल गई तो ज्यादा ठीक. पहली स्थिति में पुलिस पर ज्यादती और मनमानी के आरोप लगाने का अवसर मिलता है वहीँ दूसरी अवस्था में शवयात्रा को हिंसक जुलूस में बदलने का सुनहरा मौका मिलता है जिससे जातीय दंगे भड़कने की शत प्रतिशत सम्भावना होती है. फिर क्या, फिर तो वोटों की फसल काटिए और राज भोगिए. मित्रों, ऐसा नहीं है कि बलात्कार सिर्फ उत्तर प्रदेश में होते हैं या सिर्फ राजपूत ही बलात्कार करते हैं. बल्कि बलात्कार तो पूरे भारत में हो रहे हैं और बलात्कारी किसी भी जाति और धर्म के हो सकते हैं. इसी प्रकार पीडिता भी किसी भी जाति या धर्म की हो सकती है. लेकिन जब तक उत्तर प्रदेश में कोई सवर्ण किसी दलित का बलात्कार न करे तब तक इन राजनैतिक गिद्धों की नजर में बलात्कार होता ही नहीं. तब तो विशुद्ध मनोरंजन होता है-वो वाला जिसकी चर्चा कभी मुलायम सिंह यादव जी ने की थी. हाथरस की पीडिता खुद कह रही थी कि उसके साथ अकेले संदीप ने सिर्फ मारपीट की लेकिन ये राजनैतिक गिद्ध फिर भी सामूहिक बलात्कार, दरिंदगी वगैरह शब्दों की रट लगे हुए हैं. मानों पीडिता को पता ही नहीं है कि उसके साथ हुआ क्या है मगर इनको सब पता है. मित्रों, उसी उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में मंगलवार को एक सचमुच का बलात्कार होता है जिसमें दो मुस्लिम युवक आरोपी होते हैं और पीडिता नाबालिग दलित होती है. उसके साथ सचमुच की दरिंदगी होती है और इस पैमाने पर होती है कि वो घर पहुँचने के चंद मिनट बाद ही दम तोड़ देती है लेकिन ये राजनैतिक गिद्ध तब उत्तर प्रदेश के आसमान पर नहीं मंडराते क्योंकि धर्मनिरपेक्ष हिंसा हिंसा न भवति? इसी तरह पिछले ४८ घंटों में बिहार में भी दो-दो बलात्कार की घटनाएँ हुई हैं लेकिन उनमें से एक में बलात्कारी दलित है और दूसरे में अति पिछड़ा इसलिए इन राजनैतिक गिद्धों के कुनबे में पूरा सन्नाटा पसरा है. एक धर्मनिरपेक्ष बलात्कार राजस्थान में भी हुआ है लेकिन उस पर भी सन्नाटा. देखना है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल जी कब उत्तर प्रदेश और राजस्थान के धर्मनिरपेक्ष बलात्कारियों को बतौर ईनाम उनकी वीरता के लिए सिलाई मशीन देकर विभूषित करते हैं. मित्रों, तो इंतज़ार करिए उन सुनहरे पलों का जब फिर से उत्तर प्रदेश में किसी ठाकुर की किसी दलित से मारपीट होती है और उस घटना को सामूहिक बलात्कार में बदलने का महान व ऐतिहासिक अवसर आता है और जब इन राजनैतिक गिद्धों के मोबाइल पर मैसेज आता है कि बधाई हो बलात्कार हुआ है. फिर शोर, गुब्बार, हंगामा. तब तक अन्य प्रकार के बलात्कार होने दीजिए, कोई बात नहीं. मित्रों, आप सोंच रहे होंगे कि होना क्या चाहिए और हो क्या रहा है. होना तो चाहिए कि पूरा भारत मिलकर विचार करे कि बलात्कार को रोका कैसे जाए. अच्छा होता अगर इस विषय पर मंत्रणा संसद में होती. मगर ऐसा होगा क्या?

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