गुरुवार, 12 नवंबर 2020

डर के आगे जीत है

मित्रों, बिहार का चुनाव परिणाम आ चुका है और ठीक वैसा ही रहा है जैसा कि हमारा अनुमान था. चुनाव के दौरान हमने प्रत्येक पूछनेवाले को यही कहा था कि नीतीश कुमार फिर से वापसी करेंगे और गिरते-पड़ते एनडीए को बहुमत आ जाएगा. हमने यह भी कहा था कि पहले चरण के मतदान पर मुंगेर गोलीकांड का असर रहेगा लेकिन बाद के दोनों चरणों में एनडीए पहले चरण में होनेवाले नुकसान की भरपाई कर लेगा और हुआ भी ऐसा ही है. मित्रों, एग्जिट पोल वाले हैरान होंगे कि ऐसा हुआ कैसे. दरअसल बिहार के मतदाताओं में आज भी लगभग आधे वे लोग हैं जिन्होंने लालू के जंगल राज को देखा है, भोगा है और वे कभी नहीं चाहेंगे कि बिहार को फिर से वही दिन देखने को मिले. बिहार की जनता ने लालू जी को कई अवसर दिए क्योंकि उन्होंने कहा था कि आगे से वे ठीक तरह से काम करेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं. रेल मंत्री के रूप में लालू जी कुछ अलग नहीं कर पाए. बिहार में उन्होंने अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बना दिया और उस पत्नी को मुख्यमंत्री बना दिया जिसको शौचालय और सचिवालय का फर्क तक पता नहीं था. राबड़ी राज में विकास के सारे काम इसलिए रोक दिए गए कि कहीं घोटाला न हो जाए और लालू जी की तरह राबड़ी को भी जेल न जाना पड़े. १९९०-२००५ के कालखंड में बिहार से सारे व्यवसायी भाग गए, सरकारी और निजी चीनी मिलें बंद हो गईं और हजारों सालों में बिहार ने जो भी आर्थिक प्रगति की थी उसका सम्पूर्ण विनाश कर दिया गया. सामाजिक न्याय के नाम पर बिहार के अलावा कई अन्य प्रदेशों में भी शासक बदले लेकिन किसी ने भी उन प्रदेशों की अर्थव्यवस्था को इस तरह बर्बाद नहीं किया. पडोसी राज्य उत्तर प्रदेश इसका उदाहरण है. जब लालू राज के दौरान हम दिल्ली जाते थे तो देखते थे कि उत्तर प्रदेश के गाँव बिजली की दुधिया रौशनी में नहाए हुए हैं जबकि उस दौरान पूरा बिहार लालटेन की रोशनी के सहारे दिन काट रहा था. मित्रों, एग्जिट पोल वाले बिहार में इस बात को समझने में विफल रहे कि जो लोग शाम तक नीतीश सरकार को गरिया रहे थे उन्होंने भी सुबह में एनडीए वो वोट दिया. इनमें सबसे बड़ी संख्या सवर्णों की थी. साथ ही पिछड़े और दलित भी इसमें शामिल थे. सिर्फ यादवों और मुसलमानों ने एकजुट होकर महागठबंधन को वोट दिया. मैं यद्यपि प्रधानमंत्री मोदी जी की रैलियों के प्रभाव से भी इंकार नहीं कर रहा हूँ. पहले चरण के मतदान के बाद उन्होंने मोर्चा संभाला और लोगों को जंगलराज की याद दिलाई. साथ ही राम मंदिर, अनुच्छेद ३७०, उज्ज्वला योजना, किसान सम्मान योजना और बिहार में बन रहे पुलों-सड़कों का जिक्र कर फिजां ही बदल दी. मित्रों, इस बात से हमें कभी इंकार नहीं था कि टक्कर जोरदार है और ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है लेकिन दूसरे और तीसरे चरणों के मतदान ने बिहार को बचा लिया. हो सकता है कि तेजस्वी १० लाख नौकरियों के अपने वादे को पूरा कर भी देते लेकिन उसमें जमकर यादवों के पक्ष में धांधली की जाती इसमें कोई संदेह नहीं. और फिर से बिहार की कानून-व्यव्यस्था यादवों के हाथों में चली जाती जैसा कि लालू-राबड़ी के समय उन्होंने नंगा नृत्य किया था. मित्रों, बिहार के चुनाव परिणामों में कुछ खतरनाक संकेत भी हैं जैसे ओवैसी की पार्टी का बिहार विधानसभा में प्रवेश और कम्युनिस्टों की शानदार जीत. दोनों ही दलों का रवैया हिंदुविरोधी और तदनुसार भारत-विरोधी है. इन शक्तियों का मजबूत होना बिहार और देश के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है.

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