रविवार, 27 दिसंबर 2020
मनुस्मृति का मूल्यांकन
मित्रों, हम सभी जानते हैं कि सनातन धर्म किसी एक धर्मग्रन्थ के आधार पर नहीं चलता. साथ ही इसमें हमेशा-से एक लचीलापन रहा है अर्थात इसमें कभी कट्टरता नहीं रही है. फिर भी जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने मनुस्मृति को उसी प्रकार हिन्दुओं का आधार-ग्रन्थ मान लिया जैसे कि दुनियाभर के मुसलमानों के लिए कुरान एक मात्र आधार-ग्रन्थ है.
मित्रों, हमें मनुस्मृति का निष्पक्ष मूल्यांकन करने से पहले यह जान लेना चाहिए कि स्मृति होती क्या है. सनातन धर्म में कई सारी स्मृतियाँ हैं जो तत्कालीन समाज को व्यवस्थित करने के लिए लिखी गईं. तब लगातार विदेशी जातियों का भारत में आगमन हो रहा था. साथ ही वर्णसंकरता को रोकने और उससे उत्पन्न संतानों को जाति व वर्ण व्यवस्था में स्थान देने की चुनौती लगातार बनी हुई थी अतः समय-समय पर कई सारी स्मृतियों की रचना की गई जिनमें मनुस्मृति सबसे पुरानी मानी जाती है.
मित्रों, वैसे तो लगभग सारे हिन्दू धर्म-ग्रंथों के साथ छेड़-छाड़ की गई है और मनुस्मृति भी अपवाद नहीं है लेकिन हम यहाँ उन अपवादों को परे रखते हुए उसी मनुस्मृति का मूल्यांकन करेंगे जो हमें आज भी प्राप्त है. खासकर हम यह देखेंगे कि मनुस्मृति में स्त्रियों और शूद्रों के बारे में क्या कहा गया है.
मित्रों, भारतीय समाज में ऋग्वैदिक काल के बाद से ही स्त्रियों और शूद्रों को हमेशा हीन की श्रेणी में रखा गया है. तथापि हम पाते हैं कि मनुस्मृति में स्त्रियों को यह कहते हुए उत्तम स्थान दिया गया है कि
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।। मनुस्मृति ३/५६ ।।
अन्वय: यत्र तु नार्यः पूज्यन्ते तत्र देवताः रमन्ते, यत्र तु एताः न पूज्यन्ते तत्र सर्वाः क्रियाः अफलाः (भवन्ति) ।
जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नही होता है वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ।। मनुस्मृति ३/५७ ।।
अन्वय: यत्र जामयः शोचन्ति तत् कुलम् आशु विनश्यति, यत्र तु एताः न शोचन्ति तत् हि सर्वदा वर्धते ।
जिस कुल में स्त्रियाँ कष्ट भोगती हैं,वह कुल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और जहाँ स्त्रियाँ प्रसन्न रहती है वह कुल सदैव फलता फूलता और समृद्ध रहता है ।
मित्रों, किन्तु जब वही मनु शूद्रों पर बात करते हैं तो काफी निर्मम प्रतीत होते हैं. मनु कहते हैं कि
द्विकं त्रिकं चतुष्कं च पंचकंचशतं समं।
मासस्य वृद्धिं गृह्याद्वर्णानामनुपूर्वशः ।। मनुस्मृति ८/१४२ ।।
मित्रों, किन्तु जब वही मनु शूद्रों पर बात करते हैं तो काफी निर्मम प्रतीत होते हैं. मनु कहते हैं कि
द्विकं त्रिकं चतुष्कं च पंचकंचशतं समं।
मासस्य वृद्धिं गृह्याद्वर्णानामनुपूर्वशः ।। मनुस्मृति ८/१४२ ।।
अर्थात ऋणदाता को चाहिए कि वह वर्णानुसार ब्राह्मण से दो प्रतिशत, क्षत्रिय से तीन प्रतिशत, वैश्य से चार प्रतिशत और शूद्र से पांच प्रतिशत ब्याज हर माह वसूल करे. इतना ही नहीं मनु कहते हैं कि अगर कोई शूद्र किसी द्विज जो अपशब्द कहे तो उसी जीभ काट लेनी चाहिए. साथ ही अगर कोई शूद्र किसी द्विज के नाम या जाति का उपहास करे तो उसके मुंह में दस अंगुल लम्बी तप्त लौह-शलाका डाल देनी चाहिए. यदि शूद्र दर्प में आकर द्विजों को धर्मोपदेश दे तो उसके मुंह और कान में खौलता हुआ तेल डाल देना चाहिए. शूद्र जिस अंग से द्विजों पर आघात करे उसका वह अंग कटवा देना चाहिए. मनुस्मृति ८/ २६९,२७०, २७१, २७८.
मित्रों, इस प्रकार हम पाते हैं कि धर्म की अच्छी परिभाषा देने और वृद्धों, स्त्रियों और शिक्षकों को सम्मान देने सम्बन्धी सुन्दर सुभाषितों के बावजूद मनुस्मृति हिन्दू समाज के एक महत्वपूर्ण अंश शूद्रों के प्रति काफी निर्मम हैं. साथ ही मनुस्मृति से यह भी पता चलता है कि उस समय भी हिन्दू बड़े पैमाने पर मांस खाते थे भले ही खाने से पहले उनकी बलि दी जाए. मैं ऐसा बेहिचक कह सकता हूँ कि अगर मैं बाबा साहब की जगह होता तो मैं भी एक शूद्र होने के नाते मनुस्मृति को पसंद नहीं करता. हालांकि जैसा कि मैंने शुरुआत में ही कहा कि सनातन धर्म शुरू से ही काफी लचीला रहा है और हमेशा इसमें सुधार और विरोध की गुंजाईश रही है. स्वयं भगवान बुद्ध के समय भारत में वैदिक धर्म से ईतर ५ दर्जन के लगभग दर्शन और संप्रदाय प्रचलन में थे और उनके बीच कभी कोई हिंसक संघर्ष नहीं हुआ.
मुल मनुस्मृती में केवल 680 श्लोक थे वर्तमान समय में 2685 श्लोक हैं जाहिर है हिंदुधर्म की एकता को तोडने के लिए अंग्रेजों ने एक संस्कृत पंडित के जरिए मनुस्मृति में अशुद्ध श्लोकों को मीला दिया , मनुस्मृति तो कर्म के आधार पर ही वर्णव्यवस्था का समर्थन करती है , ईसके कई ऊदाहरण आपको महाभारत रामायण में देखने को मीलेंगे शुद्र कुल में पैदा मनुष्य ब्राम्हणत्व और क्षत्रियत्व को प्राप्त कर चुके हैं !
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