मंगलवार, 4 मई 2021

खून से लथपथ बंगाल, दोषी कौन

मित्रों, बंगाल में चुनाव संपन्न हो चुका है और भयंकर रक्तपात शुरू हो चुका है. जैसा कि ममता बनर्जी ने चुनाव प्रचार के दौरान ही विरोधियों को हिंसा के लिए तैयार रहने की चेतावनी दे दी थी. लगता है जैसे बंगाल बंगाल नहीं १७८९ का फ़्रांस, १९१७ का रूस या १९४९ का चीन या १९८९ का अफगानिस्तान या १९७१ या १९९२ का बांग्लादेश बन गया है. जिन लोगों ने ममता बनर्जी को मत नहीं दिया था उनको खोज-खोज कर मारा जा रहा है, उनकी महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया जा रहा, दुकानें और संपत्तियां लूटी जा रही हैं, आग लगाई जा रही है. और यह सब घटित हो रहा है सत्ता के संरक्षण में. मित्रों, सवाल उठता है कि ऐसे में उनलोगों का क्या होगा जिन्होंने खुलकर ममता बनर्जी का विरोध किया था. चुनाव आयोग की ड्यूटी तो समाप्त हो चुकी है. भारत के संविधान के अनुच्छेद ३५६ के अनुसार अगर किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो चुका है तो यह केंद्र सरकार का अधिकार और दायित्व दोनों है कि वो वहां का शासन अपने हाथों में ले ले. लेकिन हमने देखा है कि जबसे मोदी सरकार केंद्र में आई है उसने बंगाल, केरल और राजस्थान आदि राज्यों में अपनी की पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्याओं पर आखें बंद कर रखी हैं. इनमें भी बंगाल की हालत कई सालों से सबसे ख़राब है. मित्रों, कोई ऐसी पार्टी का समर्थन क्यों करे जो केंद्र में सत्ता में होते हुए भी चुनाव सम्पन्न होते ही अपने कार्यकर्ताओं को उनके हाल पर मरने के लिए छोड दे? यह तो स्वार्थ की पराकाष्ठा है. बिहार में एक कहावत है चढ़ जा बेटा सूली पर राम तेरा भला करेगा. ठीक यही रवैया मोदी का है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जब ममता पहली बार मुख्यमंत्री बनी थी तब मुसलमानों ने उसे वोट नहीं दिया था लेकिन उसने मुस्लिम तुष्टिकरण की अति करके उनको अपने पक्ष में कर लिया. कमोबेश भाजपा भी इन्द्रेश कुमार आदि के माध्यम से यह प्रयास लगातार कर रही है जबकि भाजपा के लिए मुस्लिम वोट एक मृगमरीचिका थी, है और हमेशा रहेगी. मित्रों, भाजपा को सबसे पहले बंगाल में उसके कार्यकर्ताओं के साथ जो खून की होली खेल जा रही है उसको रोकना चाहिए वो भी किसी भी कीमत पर. अन्यथा कोई भी व्यक्ति भाजपा का कार्यकर्ता नहीं बनेगा. फिर भाजपा को समान नागरिक संहिता और जनसँख्या नियंत्रण कानून को लागू करना चाहिए. अन्यथा जिस तरह आज बंगाल जल रहा है कल पूरा भारत जलेगा. देश और सनातन धर्म की रक्षा गाँधी बनकर नहीं बल्कि प्रताप और शिवाजी बनकर ही की जा सकती है. इतिहास मोदी को दोबारा मौका नहीं देगा क्योंकि वो किसी को दोबारा मौका नहीं देता है. जो लोग बंगाल में ताल ठोककर नरसंहार कर रहे हैं वो तो इसके लिए दोषी हैं ही लेकिन उससे कहीं ज्यादा मोदी और भाजपा दोषी है जो लोगों को अग्रिम मोर्चे पर धकेल कर बार-बार मैदान छोड़कर भाग जाती है. मित्रों, हम उम्मीद करते हैं कि भाजपा का सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास वाला नशा भी उतर गया होगा. नहीं उतरा है तो अच्छा होगा कि जल्द उतर जाए अन्यथा देश की बहुसंख्यक जनता उसको कुर्सी से उतार देगी भले उसका परिणाम कितना भी भयानक क्यों न हो. वैसे भी जब भाजपा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हिन्दुओं की रक्षा नहीं कर सकती और नहीं कर सकी तो उसे बार-बार केंद्र की सत्ता सौंपने के क्या लाभ? बंगाल तो फिर भी दूर की बात है. मित्रों, अंत में मैं हिन्दुओं का आह्वान करूंगा कि भगवान बुद्ध ने कहा था अप्पो दीपो भव मैं कहता हूँ अप्पो विराथू भव, प्रताप भव, शिवाजी भव, गोविन्द सिंह भव. अप्पो रक्षक भव. अन्यथा जिस हिंदुत्व को राजाओं ने सदियों तक बचाए रखा कुछेक सालों का लोकतंत्र उसे खा जाएगा.

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