गुरुवार, 22 जुलाई 2021

अफगानिस्तान बनने को ओर अग्रसर भारत

मित्रों, हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं कि भारत में लोकतंत्र है जिसके तीन भाग हैं-कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका. परन्तु जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ी हमारी समझ में आया कि भारत में तंत्र तो है लेकिन भ्रष्ट, कामचोर व सडा-गला लोकतंत्र है. हमने नया संविधान तो बना लिया लेकिन कानून वही बरक़रार रखे जिनके माध्यम से अंग्रेज हमें लूटते थे. मेरा मतलब आईपीसी, न्यायिक प्रक्रिया और भारतीय प्रशासनिक सेवा से है. अब जब कानून ही गड़बड़ है तो व्यवस्था कैसे सही होगी? मित्रों, हमारे देश की कार्यपालिका का तो कहना ही क्या! ये बिना तालाब के मछली पाल लेती है, बिना नदी के पुल बना देती है और बिना बांध बने उसमें छेद भी कर देती है. जहाँ देखिए वहां सिर्फ छेद ही छेद है. न्यायपालिका पहले तो तारीख-पे-तारीख देकर पीड़ितों अथवा दिवंगत पीड़ित-पीडिताओं के परिजनों को थका डालती है फिर कई दशकों के बाद कह देती है कि नो वन किल्ड जेसिका. न्यायमूर्ति से चंद कदम पर बैठा उनका पेशकार मुट्ठी गरम कर रहा होता है मगर न्याय की मूर्ति जी को कुछ नजर नहीं आता फिर ऐसा व्यक्ति कैसे न्याय दे सकता है. उस पर गजब यह कि न्यायाधीश ही न्यायाधीश की नियुक्ति करता है जिससे जमकर भाई-भतीजावाद हो रहा है. मित्रों, व्यवस्थापिका की तो खुद की पूरी व्यवस्था चरमराई हुई है. अब वहां छंटे हुए बदमाश बैठते हैं. सरकारों ने व्यवस्थापिका पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया है. विपक्ष भी नैतिक रूप से पतित हो चुका है. फिर कैसी व्यवस्था? अभी ऑक्सीजन की कमी से कोरोना मरीजों की अकालमृत्यु को ही लें तो भारत की समस्त राज्य सरकारें और संघ सरकार भी एक स्वर में कह रही है कि ऑक्सीजन की कमी से देश में कोई नहीं मरा. जबकि हमने अपनी और कैमरों की आँखों से देखा है कि ऑक्सीजन की कमी से देश में हजारों लोग मरे हैं. मतलब कि संसद में संघ सरकार झूठ बोल रही है और प्रमाण-सहित झूठ बोल रही है. विपक्षी दलों की भी जहाँ-जहाँ सरकारें हैं वे सरकारें भी झूठ बोल रही हैं फिर जनता के लिए लड़ेगा कौन? मित्रों, मैं एक बार फिर से दोहरा रहा हूँ कि भारत में लोकतंत्र है. बस कागज़ी लोकतंत्र है जो सिर्फ कागजों पर ही नज़र आता है. तंत्र मस्त है लोक पस्त है. चाहे लोक बचें या न बचें तंत्र बचा रहेगा. वास्तव में ऑक्सीजन की जरुरत लोक से ज्यादा तंत्र को है. अंग्रेजी हुकूमत के सारे अवशेषों यथा कानून, शिक्षा-प्रणाली, न्याय प्रक्रिया, पुलिस और प्रशासनिक तंत्र को मिटाना होगा वर्ना एक दिन तंत्र भी नहीं बचेगा, बचेगी तो बस अराजकता और भारत भी अफगानिस्तान बनकर रह जाएगा.

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