शनिवार, 6 नवंबर 2021

महंगाई, मोदी और विपक्ष

मित्रों, इस बात में कोई संदेह नहीं कि पिछले कुछ महीनों में भारत की जनता महंगाई से परेशान है और इसमें सबसे ज्यादा योगदान बेशक पेट्रोलियम पदार्थों का रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि सामान की ढुलाई डीजल गाड़ियों से ही होती है. फिर अतिवृष्टि ने भी बेडा गर्क कर रखा है. किसानों को तो इससे भारी क्षति हुई ही है ग्राहकों को भी इन दिनों सब्जी खरीदना काफी महंगा पड रहा है. मेरे जिले के केला किसान तो पूरी तरह से बर्बाद ही हो गए हैं और दुर्भाग्य देखिए कि बिहार में केले की खेती का बीमा भी नहीं होता.उनका दुर्भाग्य तो यह भी है कि २०१४ में हाजीपुर की चुनावी सभा में मोदी जी उनसे उनके सारे दुःख दूर करने का वादा करके भूल गए हैं. मित्रों, खैर सब्जी की महंगाई तो तात्कालिक और मौसमी है लेकिन बांकी वस्तुओं के मूल्य में भी भारी उछाल देखने को मिल रहा है. खासकर सरसों तेल उपभोक्ताओं का तेल निकाल रहा है. इस बीच चाहे कारण जो भी हो दिवाली से ठीक एक दिन पहले केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क घटाने का ऐलान किया है। इसके बाद अब तक देश के 22 राज्यों ने मूल्य वर्धित कर (वैट) में कटौती कर दी है। इनमें से अधिकतर बीजेपी शासित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश हैं। वहीं, कांग्रेस शासित राज्यों में अब भी वैट की कटौती नहीं की गई है। कुल 14 राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में अब तक वैट नहीं कम किए गए हैं। ऐसे में इन राज्यों में सिर्फ केंद्र की ओर से दी गई राहत ही प्रभावी है। जिन राज्यों ने वैट पर राहत नहीं दी है, उनमें अधिकतर कांग्रेस शासित प्रदेश हैं। ये राज्य महाराष्ट्र, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, मेघालय, अंडमान और निकोबार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पंजाब और राजस्थान हैं। मित्रों, वैट में कटौती नहीं करने पर भाजपा की ओर से विपक्षी दलों की आलोचना की गई है। दिल्ली में तो धरना-प्रदर्शन की भी तैयारी हो रही है. बीजेपी ने कहा है कि विपक्ष पेट्रोल और डीजल की ऊंची कीमतों को लेकर केंद्र पर हमले कर रहा है, लेकिन जब केंद्र सरकार ने उत्पाद शुल्क घटाया तब उन्होंने अपने-अपने शासन वाले राज्यों में वैट क्यों नहीं घटाया? बीजेपी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस शासित राज्य निर्मम और अक्षम हैं। मित्रों, हमारे बिहार में एक कहावत है कि रास्ता दिखाओ तो आगे चलो अन्यथा चुपचाप रहो. यह घोर आश्चर्य की बात है कि जो विपक्ष पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के मूल्यों को लेकर आसमान सर पे उठाए था को केंद्र सरकार के कदम के बाद सांप सूंघ गया है. शायद उसने केंद्र से ऐसी अपेक्षा ही नहीं की थी या फिर यह भी हो सकता है कि उसे महंगाई में मजा आ रहा हो और वो झूठ-मूठ का घडियाली आंसू बहा रहा हो. विपक्ष के सबसे बड़े नेता राहुल गाँधी स्वयं राजनीति और देश की जनता के दुख-दर्द को गंभीरता से नहीं लेते. जब-तब विदेश के लिए निकल जाते हैं. पता नहीं बेचारे इसके लिए पैसा कहाँ से लाते हैं. बेचारे की जेब तो नोटबंदी के समय से ही फटी पड़ी है. लेकिन हम सिर्फ राहुल जी को ही क्यों दोष दें? एक ओडिशा को छोड़कर सारे विपक्ष शासित प्रदेश अभी भी अपना खजाना भरने में लगे हैं. पहले भरेंगे और फिर खाली कर देंगे. देश-प्रदेश के हित से कोई मतलब तो है नहीं. मित्रों, रही बात केंद्र सरकार की तो उसे सबसे पहले चीन-पाकिस्तान से ईकट्ठे निबटने की तैयारी करनी चाहिए और वो ऐसा कर भी रही है. कोरोना पहले ही काबू में आ चुका है इसलिए अब उसको लेकर चिंता की कोई बात नहीं. निकट-भविष्य में भारत में विदेशी निवेश काफी तेजी से बढेगा. मगर उसका लाभ देश और देश की जनता तो तभी होगा जब सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार और अत्यंत सुस्त न्याय प्रणाली को दुरुस्त किया जाएगा. अन्यथा भारत हमेशा मानव विकास सूचकांक के मामले में सबसे निचले पायदान पर बना रहेगा.

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