सोमवार, 22 नवंबर 2021

तरक्की पर है भ्रष्टाचार कि जनता सिसक रही है

तरक्की पर है भ्रष्टाचार लुटेरी हो गई हर सरकार लोकतंत्र हो गया है लाचार कि जनता सिसक रही है। होना था जहाँ पर इंसाफ होता है वहां सात खून माफ़ रक्षक बन गए भक्षक हर ऑफिस में है लूट-मार हैं फूल भी अब अंगार हफ्ता मांगे थानेदार कि जनता सिसक रही है. बिल्ली का है दूध पे पहरा ऐसा क्यूं है राज है गहरा कुछ अखबार मालिक हैं बाजारी है जिनकी कलम भी लालच की मारी जो हैं खबरों के व्यापारी सच्चे पत्रकार झेलें बेकारी न छीनो जीने का अधिकार खून से मत छापो अखबार कि जनता सिसक रही है. चमका है मजहब का धंधा कुछ आतंकी कर रहे काम गन्दा करते हैं सियासत मौलाना गातें है पाकिस्तान का गाना गुंडे तो गुंडे नेता भी हुए खूंखार पूर्वजों ने जो दिया हर बार हुआ उनका बलिदान बेकार कि जनता सिसक रही है.

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