मंगलवार, 4 जनवरी 2022

भाजपा जदयू लठबंधन

मित्रों, बिहार में यद्यपि भाजपा और जदयू का गठबंधन काफी पुराना है तथापि समय गुजरने के साथ दोनों पार्टियों का वोट-बैंक पूरी तरह से अलग दिखाई देने लगा है जो शुरूआती दौर में नहीं था. पिछले चुनाव के बाद जबसे नीतीश कुमार बिहार में तीन नंबर के नेता बन गए हैं तभी से उन्होंने सोंची-समझी रणनीति के तहत भाजपा के वोट बैंक को चिढाने का काम किया है. मित्रों, पहले हम यह समझ लेते हैं कि दोनों दलों का वोटबैंक है क्या. जहाँ भाजपा का कोर वोटबैंक चार सवर्ण जातियां राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ हैं वहीँ नीतीश कुमार का कोर वोट बैंक उनकी जाति कुर्मी के अलावे अति पिछड़ी जातियां हैं जिनको राजनीति की दुनिया में पंचफोरना कहा जाता है. मुस्लिम और यादव अभी भी लालू यादव परिवार के साथ अडिग हैं. मित्रों, सबसे पहले नीतीश जी ने 2020 में दुर्घटनावश मिली कुर्सी को पाते ही बिहार के राजपूतों को चिढाने का काम किया जबकि आज बिहार के मुख्यमंत्री पद पर नीतीश जी सिर्फ और सिर्फ इसी जाति के कारण हैं. जहाँ भूमिहारों ने पिछले चुनावों में ही नीतीश जी का साथ छोड़ दिया राजपूत चट्टान की तरह एनडीए के साथ अड़े और खड़े रहे. लेकिन नीतीश जी ने सजा पूरी कर लेने के बाद भी बिहार में राजपूतों के शीर्षस्थ नेता आनंद मोहन को रिहा नहीं किया. भूमिहारों के साथ नीतीश जी का अलग तरह का रिश्ता है. एक तरफ नीतीश जी ने ललन सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना रखा है वहीँ दूसरी तरफ उन्होंने पिछले दिनों सहरसा में बाहुबली पप्पू देव को घर से उठवा कर विवादित पुलिस अधीक्षक लिपि सिंह जो केन्द्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की बेटी है के माध्यम से इस भयंकर ठण्ड में पीट-पीट कर मार डाला. ब्राह्मणों को हड़काने के लिए गठबंधन में जीतन राम मांझी को रखा गया है. पता नहीं वे नीतीश जी के इशारे पर गाहे-बगाहे ब्राह्मणों को गालियाँ देते रहते हैं या किसी और के इशारे पर या फिर खुद अपनी मर्जी से. मित्रों, यह बेहद आश्चर्यजनक है कि नीतीश कुमार खुलेआम भाजपा के वोटबैंक को लतियाते रहते हैं और भाजपा चुपचाप तमाशा देखती रहती है. अभी तो भाजपा से भूमिहार दूर हुए हैं कल ब्राह्मण-राजपूत भी दूर हो जाएँगे तब भाजपा का क्या होगा? क्या भविष्य में भाजपा का वही हाल नहीं होनेवाला है जो हालत राजद के साथ रहने से आज कांग्रेस की हो चुकी है? लेकिन भाजपा भी १९९०-२००५ के मध्य जिस तरह कांग्रेस राजद के साथ सत्ता में मस्त थी मस्त है. उसको यह पता नहीं है कि जनता किसी की गुलाम नहीं है. इस बार तो किसी तरह से दस-पांच सीट से कुर्सी कुमार जी की कुर्सी बच गयी है अगली बार कुछ भी हो सकता है, बहुत अलग परिणाम भी आ सकते हैं.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें