मंगलवार, 12 अप्रैल 2022
मोदी गांधी हैं या सावरकर
मित्रों, हमारे इतिहास में एक काला अध्याय है तुगलक वंश. इस वंश ने दिल्ली पर १३२० से लेकर १४१४ तक शासन किया. इस वंश का सस्थापक गयासुद्दीन तुगलक था जिसका मकबरा आज भी दिल्ली के तुगलकाबाद में है. गयासुद्दीन जब खिलजियों का सेनापति था तब उसने बहुत सारे मंदिर तोड़े, देव प्रतिमाएं खंडित की, हजारों निर्दोष, निरपराध हिन्दुओं को बेवजह मारा, हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार किए और करवाए, हजारों हिन्दू महिलाओं को सरेबाजार बेचा, हजारों हिन्दू बच्चों को हवा में उछाल कर भालों से बींध कर मार डाला और इन सभी अमानवीय क्रूर कर्म के बदले में गाजी तुगलक का ख़िताब पाया. लेकिन जब १३२० में वही गाजी तुगलक अर्थात गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली के तख़्त पर बैठा तो अचानक अजीबोगरीब हरकतें करने लगा. वो सिंहासन पर सर रखकर रोने लगता और बलबन और अलाउद्दीन खिलजी का नाम ले-लेकर छाती पीटने लगता. उसके परिजन और सिपहसलार आश्चर्यचकित और परेशान थे कि जो गाजी तुगलक कभी काफिरों यानि हिन्दुओं के लिए कहर था वो रोंदू कैसे हो गया? हालाँकि इस बात के प्रमाण नहीं मिलते कि गयासुद्दीन कभी हिन्दुओं के प्रति उदार भी हुआ था.
मित्रों, मुझे लगता है कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी भी इस समय इसी बीमारी यानि गाजी तुगलक सिंड्रोम से ग्रस्त हैं. मोदी जब तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे तब तक मुंहजबानी ही सही हिन्दुओं के कट्टर पैरोकार रहे और उन मुसलमानों के खिलाफ लगातार बोलते रहे जिनका कुरान हिन्दुओं को लूट लेने, उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार करने और हिन्दुओं को जान से मार देने का खुला और स्पष्ट आदेश देता है. जुमलावीर मोदी जब तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे अपने जुमलों में सावरकर के अनन्य प्रशंसक और भक्त रहे. उन सावरकर के जिन्होंने कहा था कि मुस्लिम तुष्टिकरण बंद होना चाहिए और भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए लेकिन वही मोदी जब भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनका एक अलग ही रूप दिखाई देता है. मोदी अचानक सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास का नारा लगाने लगते हैं. ठीक उसी तरह वे विरोधाभासी बातें करने लगते हैं जैसे कभी गाजी तुगलक करता था. लगता है जैसे मोदी के भीतर गाजी तुगलक की आत्मा घुस गई है.
मित्रों, आज तक कांग्रेस पार्टी जिन मुसलमानों को मिठाई दिखाकर लोलीपोप चटा रही थी उन्हीं मुसलमानों को मोदी आईएएस-आईपीएस बनाने लगे, जिन मुसलमानों को पैसों को लाले थे उन्हीं मुसलमानों के लिए भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने पैसों की बरसात कर दी. छात्रवृत्ति, पक्का मकान, सस्ता लोन, मुफ्त का राशन आदि. लेकिन उससे हुआ क्या? मेरे एक छात्र ने जो मुज़फ्फरनगर की मशहूर फ़िल्मी हस्ती का बेटा है ने पिछले दिनों जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहे थे तब मुझे फोन कर बताया था कि इस बार यूपी में योगी वापसी नहीं करने वाले क्योंकि भाजपा को मुसलमानों का एक भी वोट नहीं मिलनेवाला है. इस दौरान बात करते हुए उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था. मैंने उससे पूछा कि फिर तो मुसलमान नमकहराम हैं तो उसने कहा कि आपको जो समझना है समझिए लेकिन योगी-मोदी मुसलमानों को फूटी आँख नहीं सुहाते. मैं सन्नाटे में था क्योंकि एक धनाढ्य परिवार से होते हुए भी उस छात्र को योगी सरकार से हजारों रूपये की छात्रवृत्ति मिली थी. बाद में मैंने पढ़ा कि जिस बूथ पर भारत के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख़्तार अब्बास नकवी ने मतदान किया था वहां भाजपा को मात्र दो मत मिले. इसका मतलब साफ़ था कि स्वयं नकवी के परिजनों ने भी भाजपा को वोट नहीं दिया. इतना ही नहीं भाजपा की जीत का जश्न मनानेवाले कई मुसलमानों की खुद मुसलमान ही हत्या कर चुके हैं. फिर भी मोदी न जाने किन सपनों में खोये हुए हैं सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास. शायद इस तरह के सपनों को ही अंग्रेजी में फूल्स ड्रीम कहते हैं.
मित्रों, मोदी मुसलमानों को एक हाथ में कुरान और दूसरे में लैपटॉप पकडाने वाले हैं और सोंच रहे हैं कि ऐसा कर देने भर से वो पूंछविहीन पशु इन्सान बन जाएँगे जबकि सच्चाई यह है कि जबतक उनके एक हाथ में कुरान है वो न तो सर्वधर्मसमभाव का पालन करेंगे और न ही भारत को अपनी पुण्यभूमि ही मानेंगे बल्कि यही कहते रहेंगे कि करदे फकत इशारा अगर शाहे खुरासान सजदा न करूं हिंद की नापाक जमीन पर. अभी-अभी हमने गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर पर हमला होते हुए देखा है. एक बेहद कुशाग्र बुद्धिवाले आईआईटी से स्नातक मुसलमान ने जन्नत के लालच में आकर यह हमला किया. उसके भी एक हाथ में कुरान था और दूसरे में लैपटॉप लेकिन दिमाग में सिर्फ कुरान था, जहर था. आधुनिकता और उदारता उसे छू तक नहीं गयी थी. असली चीज दिमाग को बदलना है जो कुरान होने नहीं देगा. ये लोग लैपटॉप से अच्छी बातें नहीं सीखेंगे बल्कि बम बनाना सीखेंगे. पूरे देश में जहाँ भी बम बनाते हुए लोग मारे जाते हैं वे सारे-के-सारे मुसलमान होते हैं क्यों? मुसलमान चाहे भारत का उपराष्ट्रपति बना दिया जाए या उच्च पदाधिकारी वो मूलत: जिहादी होता है। एकाध अपवाद भी हैं कलाम साहेब की तरह लेकिन वे एकाध ही हैं।
मित्रों, इतना ही नहीं हम देख रहे हैं कि दिल्ली के क़ुतुब-परिसर से इस बात के सबूत मिटाने के प्रयास हो रहे हैं कि वहां की इमारतें हिन्दू-मंदिरों को तोड़ कर बनाए गए थे. समझ में नहीं आता कि मोदी चाहते क्या हैं? मुसलमानों को खुश करने के लिए जो काम गाँधी नामधारी कान्ग्रेस के नेता नहीं कर पाए वो काम मोदी कर रहे हैं. जबकि वो भी जानते हैं कि उपदेशो हि मूर्खाणां, प्रकोपाय न शान्तये। पयःपानं भुजंगानां केवल विषवर्धनम्।। जो पत्थरबाजी पहले सिर्फ कश्मीर तक सीमित थी अब मोदी राज में पूरे भारत में हो रही है. भारत की राजधानी दिल्ली तक में ऐसा कोई महीना ऐसा कोई हफ्ता नहीं जाता जब मुसलमानों के हाथों किसी हिन्दू की हत्या न हुई हो लेकिन इन्द्रेश कुमार और मोहन भागवत जी मुसलमानों में हिन्दुओं का डीएनए ढूँढने में लगे हैं. जिस तेजी से इस्लाम के बारे में सच बोलने पर यति नरसिंहानन्द सरस्वती को जेल में बंद कर दिया जाता है उससे तो यह लगने लगा है कि मोदी जी ने भारत को पाकिस्तान बना दिया है जहाँ ईश निंदा कानून लागू है. गजब तो यह है कि जब तक एक भारतीय वसीम रिजवी रहता है तब तक कुरान पर सवाल उठाने के बावजूद आजाद रहता है मगर जैसे ही वो जीतेंद्र नारायण त्यागी बन जाता है भाजपा सरकार द्वारा जेल में डाल दिया जाता है.
मित्रों, हमारे देश में न तो गांधियों की कमी रही है और न ही उन गाँधी के अनुयायियों की जिनके तुष्टिकरण के कारण भारत के तीन टुकड़े हुए. फिर मोदी क्यों गाँधी बनना चाहते हैं? हमें न तो और पाकिस्तान चाहिए और न ही गाँधी. हमें तो सावरकर चाहिए जो एक ही हुए हैं. हमें नहीं चाहिए भगवान राम की शोभायात्रा पर पत्थरों की बरसात बल्कि हमें तो पत्थरबाजों के घरों पर बुलडोजर चलानेवाला नेता चाहिए. अब तो गुजरात में भी जेहादी फिर से सर उठाने लगे हैं और कई मुस्लिमबहुल ईलाकों से हिन्दुओं को भगा रहे हैं. मोदी ने २००२ के गोधरा दंगों के बाद गुजरात में बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यकर्ताओं पर जिस तरह की कठोर कार्रवाई की विशेषज्ञों का मानना है कि यह उसी का परिणाम है कि आज गुजरात में हिन्दुओं को क्रूरकर्मा मुसलमानों से बचानेवाला कोई बचा ही नहीं. बंगाल और केरल में हिन्दुओं को मरता देख कर भी जिस तरह मोदी ने अपनी दोनों आँखों और कानों को मूँद रखा है उससे भी यही लगता है कि मोदी सावरकर कम गाँधी ज्यादा हैं और थोडा-थोडा जिन्ना भी.
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