बुधवार, 29 जून 2022
सर तन से जुदा
मित्रों, सिर्फ जम्मू और कश्मीर में ही नहीं पूरे भारत में इस समय इस्लामिक आतंकवादी टारगेट किलिंग कर रहे हैं. वो दस-बीस दिन, महीनों पहले ही ऐलान कर देते हैं कि हम इस हिन्दू को मार डालेंगे क्योंकि इसने मोहम्मद या कुरान के खिलाफ बोला है. मोहम्मद के जीवन और चरित्र की आलोचना की है जो वास्तव में आलोचना के हायक है.
मित्रों, सवाल उठता है कि क्या हम पाकिस्तान में हैं? क्या कारण है कि राक्षस धर्म और संस्कृति को मानने वाले बेकाबू हो रहे हैं और खासकर उन राज्यों में जहाँ कांग्रेस या विपक्ष की सरकार है? अभी जो राजस्थान में कन्हैया के साथ हुआ क्या गारंटी है कल किसी और हिन्दू के साथ नहीं हो सकता? इतिहास गवाह है कि मुसलमानों ने हमेशा हिन्दुओं के साथ छल किया, छल करके लड़ाई जीती, छल करके मारा. कन्हैया की दुकान में जब राक्षस धर्म वाले पहुंचे तो उसने समझा कि वे कपड़ा सिलवाने आए हैं और इसी विश्वास ने उसकी जान ले ली. ऐसे माहौल में सबको साथ में लेकर, सबका विकास कर सबका विश्वास प्राप्त करने की बेहूदा चाह रखने वाले मोदी जी बताएँगे कि हिन्दू कैसे मुसलमानों पर विश्वास कर सकता है?
मित्रों, हम जानते हैं मोदी जी न तो सख्त कानून बनाएँगे जिससे राक्षस धर्म वालों पर नियंत्रण किया जा सके और न ही किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन ही लगाएंगे चाहे वहां मुसलमानों के हाथों कितने ही हिन्दू क्यों न मारे जाएँ. मोदी जी यह समझने को तैयार ही नहीं हैं कि साँपों को दूध पिलाने से उनका विष कम नहीं होता बढ़ता है. मोदी सरकार को खुलकर हिन्दुओं का साथ देना होगा. नहीं दे सकते तो संविधान से वो सारे प्रावधान समाप्त करने होंगे जिनमें मुसलमानों को हिन्दुओं पर वरीयता दी गई है.
मित्रों, एक बात और मुसलमान शर्म नहीं करते हम हिन्दू करते हैं. जिन लोगों ने भी कन्हैया को मारा है देख लेना उलेमाओं का संगठन, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, वक्फ बोर्ड, पीएफआई आदि सारे मुस्लिम संगठन उनका मुकदमा लड़ेंगे. भारत के बड़े-बड़े हिन्दू वकील उनका मुकदमा लड़ेंगे और हो सकता है कि पूरी दुनिया में रोजाना मानवता की हत्या करने वाले मजहब माननेवाले दोनों हत्यारे कल सुप्रीम कोर्ट से बाईज्जत बरी भी हो जाएं. इस बीच भारत के हिन्दुओं को असहिष्णु और मुसलमानों को पीड़ित बताया जाता रहेगा.
मित्रों, ऐसे माहौल में आखिर हम हिन्दू कब तक एकतरफा कटते रहेंगे. हमें याचना छोड़कर रण करना होगा. हमें अपने आय का एक हिस्सा हथियार खरीदने पर व्यय करना होगा चाहे वो हथियार पारंपरिक ही क्यों न हो. साथ ही देश को अब मोदी नहीं योगी चाहिए. साथ ही हमें समझना होगा कि एक भाजपा को छोड़कर कोई भी दल हिन्दुओं की रक्षा नहीं करनेवाले इसलिए अब आगे से किसी भी राज्य में मोदी तुमसे वैर नहीं ... तेरी खैर नहीं नहीं होना चाहिए. ऐसा करना जानलेवा हो सकता है.
शुक्रवार, 10 जून 2022
इस्लाम की अंतर्राष्ट्रीय फजीहत
मित्रों, हमारे गाँव एक व्यक्ति को बड़ा तगड़ा बवासीर था। डॉक्टर के पास दिखाने लेकर गया तो डॉक्टर ने बता दिया की तुम्हें बवासीर ही है। अब वो डॉक्टर को सब जगह घूम घूमकर गाली दे रहा है और कह रहा है की हाँ, ये बात सच है की मुझे बवासीर है, पर डॉक्टर की हिम्मत कैसे हुई मुझे यह बात बताने की?? अब जो बात डॉक्टर और उस व्यक्ति के बीच थी, सारे समाज के सामने है।
मित्रों, कुछ इस तरह की हालत इन दिनों दुनिया के सामने इस्लाम की है. भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा ने कथित पैगम्बर हजरत मोहम्मद के बारे में एक कटु सत्य क्या बोल दिया पूरी दुनिया के मुसलमान उछलने लगे कि वो इस तथ्य को कैसे बोल सकती है? कोई यह नहीं कह रहा कि नुपूर शर्मा ने जो कहा वो झूठ है सब यही कह रहे हैं कि उसने ऐसा कैसे कहा? उसकी हिम्मत कैसे हुई? कोई कह भी नहीं सकता क्योंकि यही सच है. मित्रों, जबसे इस्लाम की उत्पत्ति हुई है इस्लाम को मानने वाले मोहम्मद के कुकृत्यों के बारे में कुछ भी सुनना नहीं चाहते जबकि मोहम्मद ने जो कुछ किया सोंच-समझकर किया. उसने जो कुछ किया, जो कुछ नियम बनाए अपने व्यक्तिगत सुख के लिए बनाए और उसे अल्लाह के नाम पर थोप दिया कि यह उसका नहीं अल्लाह का नियम है. मुसलमान एक बार में ४ शादियाँ कर सकते है लेकिन उसने ९ किए. लूट के माल में अपना हिस्सा निर्धारित कर अपने ऐशो आराम को सुनिश्चित कर लिया. साथ ही बोल दिया कि उसका विरोध अल्लाह का विरोध है इसलिए कोई विरोध नहीं करेगा, चाहे वो अपनी पुत्रवधू से विवाह करे या ६ साल की आयशा से जिसे विवाह का मतलब भी पता नहीं था.
मित्रों, मैं इस्लाम पर पहले ही एक आलेख राक्षस धर्म और संस्कृति लिखकर अर्ज कर चुका हूँ कि यह भलेमानसों का धर्म है ही नहीं लुटेरों का धर्म है जो हिंसा और सेक्स के अलावा कुछ भी नहीं जानते. इनके धर्मग्रन्थ इन्हीं बातों से भरे पड़े हैं. वक्त फिल्म में राजकुमार साहब का एक प्रसिद्ध डायलग था कि जिनके घर शीशे के हों वो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते लेकिन ये लोग तो हर शुक्रवार को हाथों में पत्थर लेकर ही नमाज पढने जाते हैं. जाने इनका अल्लाह कैसा है जो इनको ये सब सिखाता है?
मित्रों, उस पर गजब यह कि वे हम हिन्दुओं पर हँसते हैं. अरे मूर्खों हम तो सबमें भगवान को देखते हैं. सबको भगवान का प्रतीक मानते हैं. हम तो मानते हैं कि दुनिया में जितने नाम हैं सब भगवान के नाम हैं क्योंकि सबमें भगवान हैं. जिस तरह हमें हमारी तस्वीर से पहचाना जा सकता है लेकिन हम तस्वीर नहीं होते ठीक उसी तरह भगवान की मूर्तियाँ भगवान का प्रतीक मात्र हैं वो भगवान नहीं हैं. अब अगर किसी को इतनी-सी बात समझ में नहीं आ रही तो इसमें हमारी क्या गलती है? अब अगर कोई सूरज को ऊर्जा का स्रोत न माने और हमेशा उसकी तरह घूम कर पेशाब करे तो उससे सूरज का कभी कुछ बिगड़ेगा क्या? ऐसा कोई कुकर्म नहीं जो इस्लाम में हलाल न हो. कोई धर्म क्या ऐसा होता है? मोहम्मद कहते थे हम तो मद्रास की तरफ ही जाएंगे फिर भी दिल्ली पहुंचेंगे और आज दुनियाभर के मुसलमान भी ऐसा ही कह रहे. हम कहते हैं आत्मवत सर्वभूतेषु, अतिथि देवो भव और वो कहते हैं तुम भी मुसलमान हो जाओ नहीं तो मैं तुम्हारा सिर काट दूंगा, तुम्हारे मंदिर तोड़ दूंगा, तुम्हारी बहु-बेटियों के साथ सामूहिक बलात्कार करूंगा, तुम्हारे धन-दौलत छीन लूँगा. हम कहते हैं मुंडे मुंडे मति भिन्नाः, तुम कहते हो सिर्फ तुम सही हो बांकी सारे न केवल गलत हैं बल्कि तुम उनको मिटा डालोगे. हम कहते हैं हम तुम्हें सुख पहुंचाएंगे तो हमारा भगवान खुश होगा तुम कहते हो तुम हमें जितना तडपाओगे तुम्हारा अल्लाह उतना ही खुश होता. हम कहते हैं हमारा भगवान हममें है तुम कहते हो तुम्हारा अल्लाह तुममें नहीं है बल्कि वो तुमसे अलग है और तुम्हारा मालिक है. वो तुम्हें आदेश देता है और तू गुलामों की तरह उसका पालन करता है.
मित्रों, कुल मिलाकर नुपूर शर्मा प्रकरण ने न केवल हजरत मोहम्मद के कुकृत्यों को दुनिया के समक्ष उजागर कर दिया है बल्कि उन अनपढ़ मुसलमानों के सामने भी उनके चरित्र को नंगा कर दिया है जिनको अबतक यह बताया जाता था कि मोहम्मद अत्यंत महान दयालु, त्यागी और उदार थे. इस मामले में अगर किसी से गलती हुई है तो डरपोक भारत सरकार से हुई है जिसने जल्दीबाजी में यह देखे बिना नुपूर शर्मा को असामाजिक बता दिया कि उसने किन परिस्थितियों में हजरत मोहम्मद की करनी पर बोला. साथ ही भाजपा ने भी उससे पल्ला झाड़कर यह बता दिया कि वो हिन्दुओं के लिए नहीं बल्कि सिर्फ सत्ता के लिए राजनीति करती है. उसे समझना चाहिए कि कोई हिन्दू धर्म को दिन-रात गालियाँ देगा तो आखिर कब तक हिन्दू बिना जवाब दिए रह सकेगा? सबसे दुखद बात तो यह है कि भारत के मुसलमान भारत को छोड़कर अरब देशों की जय-जयकार कर रहे हैं.
गुरुवार, 2 जून 2022
नीतीश, तेजस्वी और प्रशांत किशोर
मित्रों, अरस्तू ने कहा था कि लोकतंत्र मूर्खो का शासन है और ठीक कहा था. वर्तमान बिहार और भारत के सन्दर्भ में अगर हम देखें तो. जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे देश में कलक्टर, डॉक्टर, पुलिस अधीक्षक, न्यायाधीश, सेनाध्यक्ष, वैज्ञानिक परीक्षा के बाद ही चुने जाते हैं. यानि देश का हर कर्मचारी कोई न कोई परीक्षा पास करने के बाद ही अपना पद पा सकता है. मगर देश की बागडोर अनपढ़ों के हाथ में क्यों? गांव वार्ड सदस्य, सरपंच, प्रधान, विधायक, नगर पालिका का पार्षद, नगर पालिका का अध्यक्ष, नगर निगम का मेयर, संसद के सदस्य, लोकसभा के सदस्य, यहां तक कि मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का भी यही हाल है. आखिर इनकी परीक्षा क्यों नहीं ली जाती? क्या इस देश का रक्षा मंत्री सेना में था? देश का स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर क्यों नहीं? देश का शिक्षा मंत्री अध्यापक क्यों नहीं? वक्त है अपनी आंखों से परदा हटाने का.
मित्रों, इसी तरह प्रसिद्ध आइरिश लेखक, पत्रकार जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने प्रजातंत्र की व्याख्या कुछ इसी तरह से की है- प्रजातंत्र मूर्खों का, मूर्खों के लिए, मूर्खों द्वारा शासन है. आज हमारे देश में जिस तरीके का है शायद इसी बात की कल्पना कर ही प्रजातंत्र को ऐसे पारिभाषित की गयी है. प्रजातंत्र में प्रत्येक व्यक्ति के वोट की कीमत आँकी जाती है और उसके गणना के हिसाब से ही सरकारें बना करती हैं. वोट देने वालों में अधिकांश लोग राजनीति से बिल्कुल अनजान होते हैं, उन्हें पता हीं नहीं होता कि हम कैसी सरकार बना रहे हैं और ना ही वे जानने का प्रयास ही करते हैं. अधिकांश लोगों के जेहन में तत्कालिक घटनाक्रम ही अंकित होता है और उसी आधार पर ही सरकार बनाने के प्रयास किए जाते हैं, मतलब कि इस मामले में जनता की याददाश्त बहुत ही कमजोर होती है. चुनाव के समय जो मुद्दा सबसे ज़्यादा चर्चित होता है, जो जनता के विचार को झकझोरता है उसी मुद्दे को आधार बना कर ही जनता अपने वोट का निर्धारण करती है. जनभावनाओं के ज्वार पर बनने वाली सरकारें भी अच्छी तरह से जानती हैं कि जिस मुद्दे के आधार पर हमारी सरकारें बनी हैं वो मुद्दा कुछ समय बाद ही जनता के दिमाग़ से निकल जाएगा और फिर वे अपनी मनमानी पर उतर आती हैं और जनता बाद में ठगी सी महसूस करती रह जाती है.
मित्रों, क्या आप जानते हैं कि अपने देश को कौन लोग चला रहे हैं? अपने देश भारत को मात्र १२५० परिवार चला रहे हैं. ५ साल जब एक पार्टी हमें लूट चुकी होती है तब हम उसको सबक सिखाने के लिए फिर से उसी को जिता देते हैं जिसको हमने ५ साल पहले सत्ता से हटाया था और यह सिलसिला लगातार चलता रहता है. फिर वह दल जो पिछले ५ साल से विपक्ष में होता है और भी दोगुनी गति से देश-प्रदेश को लूटता है क्योंकि उसको पिछले ५ साल की भी भरपाई करनी होती है.
मित्रों, कश्मीर की राजतन्त्र में क्या हालत थी और आज क्या हालत है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वहां मुसलमान बहुमत में हैं जो सभी गैरमुसलमानों मुसलमान बना देना चाहते हैं या फिर मार डालना चाहते हैं और लोकतंत्र तो बहुमत का शासन है. क्या लोकतंत्र के पास कश्मीर का ईलाज है? लोकतंत्र होने के बावजूद आज श्रीलंका और पाकिस्तान दिवालिया हैं और तानाशाही होने के बावजूद आज चीन दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है. मित्रों, अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें तो साल १९६७ तक बिहार भारत के सबसे अग्रणी व सुशासित राज्यों में गिना जाता था लेकिन १९६७ से यानि जबसे बिहार में पिछड़ों की, जिसकी जितनी जनसंख्या में भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी की राजनीति करने वाले दलों का शासन हुआ बिहार पिछड़ता चला गया और पिछले २५-३० सालों से बिहार सबसे निचले पायदान पर शान से विराजमान है.
मित्रों, यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे नेता बड़ी चालाकी से गाल पर पड़े थप्पड़ को भी ट्राफी में बदल देते हैं. सोनू और स्वयं मेरे द्वारा समय-समय पर बिहार की दुरावस्था को लेकर उठाए गए प्रश्नों का जब नीतीश कुमार जी के पास कोई उत्तर नहीं था तब उन्होंने विकास को लात मारकर जाति-पाति की गन्दी राजनीति शुरू कर दी. आज बिहार में सीओ डीएम और एडीएम का और अदना-सा राजस्व कर्मचारी सीओ का पैसे के बल पर तबादला करवा देता है, पैसा नहीं देने पर सीओ आँख मूंदकर दाखिल ख़ारिज के आवेदन को रद्द कर देता है, स्कूलों में पढाई नहीं होती, कॉलेज में शिक्षक ही नहीं हैं, अस्पतालों में सरकार-प्रदत्त मशीनें रखे-रखे ख़राब हो रही हैं, बैंक बिना घूस लिए लोन नहीं देते, मनरेगा सबसे भ्रष्ट योजना बन गयी है, पुलिस परित्राणाय डाकुनाम विनाशाय च साधुनाम हो गई हैं लेकिन इससे नीतीश जी को कोई फर्क नहीं पड़ता उनको बस जातीय जनगणना चाहिए. नीतीश जी हज़ार बार दिल्ली गए लेकिन मोदी जी के सामने कभी विशेष राज्य के दर्जे का मुद्दा नहीं उठाया. उनको तो बस जातीय जनगणना चाहिए फिर चाहे बिहार सारे मानदंडों पर सबसे नीचे बना रहे तो बना रहे. मैं पूछता हूँ कि जातीय जनगणना से सबसे ज्यादा फायदा किसको होगा? निश्चित रूप से सबसे ज्यादा फायदा मुसलमानों को होगा क्योंकि उनके लिए बच्चे अल्लाह की देन हैं. और जिन लोगों ने राष्ट्रहित में हम दो हमारे दो के सरकारी नारे पर अमल किया वो निश्चित रूप से सबसे ज्यादा घाटे में रहेंगे क्योंकि आज नहीं तो कल जातीय जनगणना के आधार पर आरक्षण देने की मांग जरूर उठेगी.
मित्रों, फिर ऐसा कौन-सा उपाय है जिससे बिहार को फिर से देश का अग्रणी राज्य बनाया जा सके? मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि नीतीश जी को हटाकर तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाना कोई समाधान नहीं है क्योंकि दोनों में मौलिक रूप से कोई अंतर नहीं है. बिहार की जनता दोनों को देख चुकी है. दोनों की रुचि सिर्फ सत्ता प्राप्ति में है. एक नागनाथ है तो दूसरा सांपनाथ. इसलिए अगर हमें बिहार को फिर से देश का अग्रणी राज्य बनाना है तो किसी ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपनी होगी जो सिर्फ जातीय हित की बात न करके प्रदेश-हित की बात करता हो. जिसके पास दिन-प्रतिदिन की योजना हो. यह हमारा सौभाग्य है कि प्रशांत किशोर जिनमें ये सारे गुण हैं ने बिहार को बदलने की ठानी है. अगर हमें बिहार को बदलना है तो जाति-धर्म से ऊपर उठकर उनका समर्थन करना होगा अन्यथा बारी-बारी से जदयू और राजद हमें लूटती रहेंगी और हम पर भ्रष्टाचार की मार लगातार बढती जाएगी. पहले भले ही बिहारियों के सामने विकल्पहीनता की स्थिति थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. नीतीश और तेजस्वी से कहीं ज्यादा तेजस्वी और विश्वसनीय विकल्प हमारा दरवाजा खटखटा रहा है.