शुक्रवार, 22 जुलाई 2022
बाप रे बाप रुपया गिर रहा है
मित्रों, एक जंगल में एक खरगोश रहता था। वह बहुत ही डरपोक था। कहीं जरा-सी भी आवाज सुनाई पड़ती तो वह डरकर भागने लगता। डर के मारे वह हर वक्त अपने कान खड़े रखता। इसलिए वह कभी सुख से सो नहीं पाता था। एक दिन खरगोश एक आम के पेड़ के नीचे सो रहा था। तभी पेड़ से एक आम उसके पास आकर गिरा। आम गिरने की अवाज सुनकर वह हड़बड़ा कर उठा और उछलकर दूर जा खडा हुआ। "भागो! भागो! आसमान गिर रहा है।" चिल्लाता हुआ सरपट भागने लगा। रास्ते में उसे एक हिरन मिला। हिरन ने उससे पूछा, "अरे भाई तुम इस तरह भाग क्यों रहे हो? आखिर मामला क्या है? खरगोश ने कहा, अरे भाग, भाग! जल्दी भाग! आसमान गिर रहा है। हिरन भी डरपोक था। इसलिए वह भी भयभीत होकर उसके साथ भागने लगा। भागते-भागते दोनो जोर-जोर से चिल्ला रहे थे, "भागो! भागो! आसमान गिर रहा है।" उनकी देखादेखी डर के मारे जिराफ, भेडि़या, लोमडी, गीदड़, तथा अन्य जानवरों का झुंड भी उनके साथ भागने लगा। सभी भागते-भागते एक साथ चिल्लाते जा रहे थे, भागो! भागो! आसमान गिर रहा है। उस समय सिंह अपनी गुफा में सो रहा था। जानवरो का शोर सुनकर वह हडबड़ाकर जाग उठा। गुफा से बाहर आया, तो उसे बहुत क्रोध आया। उसने दहाड़ते हुए कहा, रूको! रूको! आखिर क्या बात है? सिंह के डर से सभी जानवर रूक गए। सबने एक स्वर मे कहा, "आसमान नीचे गिर रहा है। यह सुनकर सिंह को बड़ी हँसी आई। हँसते-हँसते उसकी आँखो में आँसू आ गए। उसने अपनी हँसी रोककर कहा, "आसमान को गिरते हुए किसने देखा है?" सब एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। अंत में सभी की निगाह खरगोश की ओर मुड़ गई तभी उसके मुँह से निकला, "आसमान का एक टुकड़ा तो उस आम के पेड़ के नीचे ही गिरा है।" "अच्छा चलो, हम वहाँ चलकर देखते हैं।" सिंह ने कहा। सिंह के साथ जानवरों की पूरी पलटन आम के पेड़ के पास पहुँची सबने इधर-उधर तलाश की। किसी को आसमान का कोई टुकड़ा कहीं नजर नही आया। हाँ, एक आम जरूर उन्हे जमीन पर गिरा हुआ दिखाई दिया। सिंह ने आम की ओर इशारा करते हुए खरगोश से पूछा, "यही है, आसमान का टुकड़ा, जिसके लिए तुमने सबको भयभीत कर दिया?" अब खरगोश को अपनी भूल समझ में आई। उसका सिर शर्म से झुक गया। वह डर के मारे थर-थर काँपने लगा. दूसरे जानवर भी इस घटना से बहुत शार्मिंदा हुए। वे अपनी गलती पर पछता रहे थे कि सुनी-सुनाई बात से डरकर वे बेकार ही भाग रहे थे।
मित्रों, साल २०१४ से ही भारत में भी खरगोशों का एक समूह ऐसा रहा है जिसके पास छाती पीटने के अलावा कोई काम नहीं है. यह गैंग इन्तजार करता रहता है कि कब भारत में कुछ बुरा हो जिससे उनको मोदी सरकार को बुरा-भला कहने का मौका मिले. इस गैंग में बड़े-बड़े नेता, अर्थशास्त्री, वामपंथी विद्वान, छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी और यहाँ तक कि न्यायमूर्ति तक शामिल हैं. जुबेर को पकड़ा तो क्यों पकड़ा और नुपुर को क्यों नहीं पकड़ा अभी रुदाली गैंग का इस मुद्दे को लेकर विलाप चल ही रहा था कि रूपए ने थोडा-सा कमजोर होकर इन हिन्दुविरोधियों व तदनुसार भारतविरोधियों को आँखों में थूक लगा-लगाकर रोने का एक और सुनहरा मौका दे दिया.
मित्रों, जुबेर को पकड़ा तो नुपुर शर्मा को भी क्यों पकड़ना चाहिए? क्या दोनों ने एक ही तरह का अपराध किया था? मेरी नज़र में देशद्रोह से बड़ा कोई अपराध नहीं है और जो कोई भी मेरे देश को कमजोर करता है उसको सीधे मृत्युदंड दे देना चाहिए.
मित्रों, अभी जब श्रीलंका कंगाल हुआ तो यह रूदाली गैंग यह मनाने लगी कि भारत भी कंगाल हो जाए. जब हम राष्ट्रवादियों ने तथ्यों और आंकड़ों के साथ जवाब दिया कि भारत बहुत मजबूत स्थिति में है और अमेरिका से भी ज्यादा मजबूत स्थिति में है तो इन लोगों की घिन्दघी बंध गई. अब अगर हम मान भी लें कि रुपया गिरा है. मतलब गिरा है लेकिन अब नहीं गिर रहा है तो क्या सिर्फ रुपया गिरा है? दिसंबर 2021 में एक डॉलर 74.50 रुपये के बराबर था. अब 15 जुलाई के आंकड़ों को देखें तो ये 79.74 रुपये का हो गया है. इस तरह डॉलर के मुकाबले रुपया पिछले साढ़े छह महीने में गिरा है और इसका मूल्य 7% तक नीचे आ गया है. लेकिन क्या सिर्फ रुपया डॉलर के मुकाबले गिरा है? नहीं! बांकी मुद्राओं की स्थिति तो और भी बुरी है.
मित्रों, साल 2022 की शुरुआत से अब तक दुनिया की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले डॉलर तेजी से मजबूत हुआ है. यूरोपीय देशों की मुद्रा यूरो, ब्रिटेन की पौंड, जापान की येन, स्विट्जरलैंड की फ्रैंक, कनाडा के डॉलर और स्वीडन की क्रोना के मुकाबले डॉलर इस साल अब तक 13% तक मजबूती हासिल कर चुका है. ऐसे में रुपये की इस कमजोरी को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता है. लेकिन रूदाली गैंग को इससे क्या? उसे परेशानी रुपए के गिरने से नहीं है बल्कि मोदी के प्रधानमंत्री होने से है और २०१४ से है.
मित्रों, यह सही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय दोहरे संकट से जूझ रही है. कोविड महामारी का असर कम होने के बाद, बुरी तरह लड़खड़ाई देश की अर्थव्यवस्था के संभलने की उम्मीद थी. लेकिन महंगाई और तेजी से गिरते रुपये ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम और मुश्किल कर दिया है. देश में जून में खुदरा महंगाई दर 7.01 फीसदी थी. हालांकि ये मई की 7.04 फीसदी से कम है लेकिन अभी भी यह आरबीआई की अधिकतम सीमा यानी छह फीसदी से अधिक है. फिर भी यह महंगाई मौसमी है क्योंकि बरसात में सब्जियों के दाम बढ़ जाते हैं. दूसरी ओर डॉलर की तुलना में रुपए में गिरावट हुई है. मंगलवार को डॉलर की तुलना में रुपया गिर कर 80 के स्तर के पार कर गया. डॉलर महंगा होने से भारत का आयात और महंगा होता जा रहा है और इससे घरेलू बाजार में चीजों के दाम भी बढ़ रहे हैं. लेकिन यह महंगाई भी वैश्विक है और दुनिया भर में हाल के दिनों में महंगाई बढ़ी है. इसकी अहम वजह कोविड की वजह से सप्लाई के मोर्चे पर दिक्कत से लेकर हाल में रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से तेल और खाद्य वस्तुओं के दाम में इजाफा है. फिर चीन में कोविड का प्रकोप बढ़ने से उत्पादन गिरा और पूरी दुनिया में जरूरी सामानों की कमी हो गई. रॉयटर्स के मुताबिक, स्वयं अमेरिका में महंगाई दर बढ़कर 6.2 फीसदी हो गई है. यह साल 1990 के बाद की सबसे बड़ी तेजी है. अमेरिका में महंगाई 30 साल की ऊंचाई पर है।
मित्रों, भारत सरकार की नीतियों की वजह से ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने नवंबर से फरवरी तक पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ाए थे लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म हुए पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा दिए गए. इससे अचानक महंगाई बढ़ गई. ऐसे में अगर आरबीआई रेपो रेट नहीं बढ़ाता यानी निवेश करने वालों को ज्यादा ब्याज नहीं देता तो निवेशक यहां से पैसा निकाल कर अमेरिका ले जाते. चूंकि महंगाई से परेशान अमेरिका में अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ब्याज दर बढ़ा रहा है इसलिए हमारे यहां से डॉलर का निकलना शुरू हो चुका है. यानी निवेशक वहां अपना निवेश कर रहे हैं, जहां उन्हें ज्यादा ब्याज मिल रहा है. इसलिए हम ब्याज दर बढ़ा कर निवेशकों को न रोकें तो यहां से डॉलर निकलना शुरू हो जाएगा. इससे हमारा रुपया और कमजोर हो जाएगा. रुपया कमजोर होने से हमारा आयात और ज्यादा महंगा हो जाएगा और महंगाई इससे भी ज्यादा बढ़ जाएगी.
मित्रों, कुछ लोग कह रहे हैं कि ऐसे दौर में जब महंगाई लगातार बढ़ती जा रही तो सरकार ने क्या सोच कर कई जरूरी चीजों पर जीएसटी बढ़ाने का फैसला कैसे लिया? क्या ये लोगों पर दोहरी मार नहीं है? तो इसका जवाब यह है कि जब जीएसटी की शुरुआत की गई थी तब एवरेज न्यूट्रल रेट 12 फीसदी रखने की बात हुई थी. लेकिन राजनीतिक कारणों से कई राज्यों ने यह मांग रखी कि यह रेट कम होना चाहिए. इसलिए कुछ जरूरी चीजों पर कोई जीएसटी नहीं लगाया गया और कुछ चीजों पर पांच-दस फीसदी टैक्स लगाया गया. लेकिन इससे सरकारी का राजस्व घटने लगा. पहले ही रियल एस्टेट, पेट्रोल जैसे उत्पाद जीएसटी के दायरे से बाहर हैं. इसलिए जीएसटी के जरिये जितने राजस्व का लक्ष्य था वह नहीं आ रहा है. यही वजह है कि सरकार ने जीएसटी दर बढ़ाया है. अगर जीएसटी के जरिये टैक्स नहीं आएगा देश का खर्चा कैसे चलेगा?
मित्रों, भारत के कुछ घनघोर शुभचिंतक यह प्रश्न भी पूछ रहे हैं कि क्या भारत महंगाई की बढ़ी हुई दर न्यू नॉर्मल हो जाएगी? क्या अब यहां महंगाई हमेशा सात-आठ फीसदी या इससे भी ज्यादा बनी रह सकती है? तो हम कहते हैं कि न्यू-नॉर्मल की बात विदेश के संदर्भ में हो रही है. चूंकि वहां महंगाई दो फीसदी के लगभग बनी रहती है इसलिए वहां बढ़ी हुई महंगाई दर को न्यू नॉर्मल के तौर पर देखा जा रहा है. चूंकि चीन से सस्ता सामान आने की वजह से उनके यहां महंगाई कम थी. लेकिन अभी चीन से सप्लाई में दिक्कत आने की वजह से उनके यहां मैन्युफैक्चर्ड सामान महंगा हो गया है. दरअसल आरबीआई ने कोविड के वक्त काफी ज्यादा नोट छाप दिए थे ताकि सरकार को कर्ज लेने में दिक्कत न हो. महंगाई बढ़ाने में इसका भी हाथ था. अब सरकार इस लिक्विडिटी को सोखने की कोशिश कर रही है. इसलिए आगे जाकर महंगाई काबू हो सकती है. ठीक ऐसा ही अमेरिका ने भी कोविड इस समय किया था और अब अमेरिका भी बाजार से डॉलर को सोखने का प्रयास कर रहा है इसलिए वहां भी ब्याज दर बढ़ रहा है और दुनियाभर से लोग डॉलर लेकर अमेरिका की तरफ दौड़ रहे हैं. लेकिन इससे अमेरिका को भी घाटा है क्योंकि उसका भी निर्यात महंगा होता जा रहा है.
मित्रों, हमारे लिए डॉलर की मजबूती और रुपये की कमजोरी नुकसानदेह भी है और फायदेमंद भी है क्योंकि इससे हमारा सामान दुनिया में सस्ता होगा और हमारे निर्यात को फायदा मिलेगा. चीन, बांग्लादेश जैसे देशों ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर दुनिया के बाजार में अपना माल सस्ता रखा और इसका उन्हें फायदा हुआ है. हमें डॉलर की जरुरत है इसलिए हम दुनिया के बाजार में सस्ता माल बेचकर ज्यादा डॉलर कमा सकते हैं. क्योंकि हमें ज्यादा आयात करना पड़ता है और इसके लिए हमें डॉलर की जरूरत पड़ती है. रही बात भारत की स्थिति पाकिस्तान या श्रीलंका जैसी होने की तो भारत की इन देशों से तुलना सरासर बेमानी ही नहीं बेईमानी है. भारत में ऐसी स्थिति कभी नहीं आएगी क्योंकि भारत का घरेलू बाजार काफी मजबूत है और इसकी अर्थव्यवस्था का आकार भी काफी बड़ा है. इसलिए भारत में पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी स्थिति की कल्पना करना नासमझी है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें